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राम-नाम और अच्छे कर्मों से इंसान मालिक के कर सकता है प्रत्यक्ष दर्शन : पूज्य गुरु जी

बरनावा

सच्चा सौदा की साध-संगत मार्च महीने को भी एमएसजी
महीने के रूप में मनाएगी। 25 मार्च 1973 को सच्चे दाता रहबर पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पूज्य
गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को शाह मस्ताना जी धाम में गुरुमंत्र प्रदान किया। कल वीरवार को
पूज्य गुरु जी ने उत्तर प्रदेश के बरनावा स्थित शाह सतनाम जी आश्रम से ऑनलाइन गुरुकुल के माध्यम से जुड़ी
साध-संगत को 25 मार्च के ऐतिहासिक पलों से अवगत कराया। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि सच्चे दाता रहबर
परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने फरमाया था कि हम थे, हम है और हम ही रहेंगे और उसी से ये एमएसजी
वर्ड (शब्द)और एमएसजी भंडारा बना है। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि जो एम एस जी वर्ड बना है, उसका
कारण ये मार्च का महीना भी है। इस महीने में परम पिता परमात्मा शाह सतनाम जी दाता रहबर ने हमें (पूज्य गुरु
जी), जो अब हम आपके सेवादार है, अब तो बेपरवाह जी इस बॉडी से काम ले रहे है, लेकिन 25 मार्च 1973 में हमें
गुरुमंत्र देकर अपने साथ जोड़ा था। उस दिन शायद महीने का अंतिम सत्संग था। पूज्य गुरु जी ने कहा कि साध-
संगत यह जानना भी चाह रही थी कि, हमें गुरुमंत्र कब मिला था। आपजी ने कहा कि जिस समय हमें गुरुमंत्र दिया
गया था, उस समय हमारी उम्र लगभग साढ़े 5 साल की होगी। थोड़ा-ऊपर नीचे हो सकता है महीने के हिसाब से। तो
उस समय हमें बेपरवाह जी ने शाह मस्ताना जी धाम में अपने पास बुलाकर तेरा वास में गुरुमंत्र दिया था। पूज्य गुरु
जी ने गुरुमंत्र की यादें साध-संगत से साझा करते हुए फरमाया कि शाह मस्ताना जी धाम में जो होल की तरफ  गेट
है। उस तरफ  जगह थी खाली। वहीं पर कनातें लगी हुई थी, बेपरवाह जी का बाया हाथ हाल की तरफ  था और मुखड़ा
पंडाल की तरफ  था। तो वहां पर बैठे थे हम गुरुमंत्र लेने के लिए। उस समय हमारे पिता जी, बापू जी भी हमारे साथ
थे। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हम दोनों ही आए थे। पहले तो बेरियों में बेपरवाह जी से मिले थे, उस समय
बेपरवाह जी ने पूछा था कि ये कौन हैं। फिर उन्हें बताया कि ये ऐसे-ऐसे फ्लां गांव के नंबरदार है। तो फिर परमपिता
जी जब घूम कर के आए तो गुरुमंत्र दिया। यह सत्संग वाले दिन की बात। उस समय थोड़ी साध-संगत होती थी,
इसलिए नाम लेने वाले तेरावास में ही बैठ जाते थे। उस समय एक भाई पहले बैठ के समझाया करता था। पहले वो
समझा रहे थे, फिर बेपरवाह जी आकर बैठे और बैठते ही हमें बुलाया, ''काका तू इत्थे आकर बैठ।ÓÓ (बेटे तू यहां

आकर बैठ) तो फिर हम फादर साहब के साथ आगे आकर बेपरवाह जी के पास आकर बैठ गए। जब हम बेपरवाह जी
के पास आकर बैठे थे तो वो 25 मार्च का दिन था। वो महीने का लास्ट सत्संग था। तो ये खुशी का दिन एम एस जी
बेपरवाह जी ने बना दिया। वहीं पूज्य गुरु जी ने कहा कि कई लोगों एमएसजी का मतलब मैसेंजर ऑफ  गॉड
निकालते है, तो इसका यह अर्थ नहीं है। ये परम पिता जी ने वचन किए थे कि हम थे, हम है और हम ही रहेंगे। 'एमÓ
से मस्ताना जी का नाम, 'एसÓ से बेपरवाह दाता रहबर शाह सतनाम जी महाराज का नाम और 'जीÓ से उनकी बॉडी
यानी पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का नाम है, जिसको मिलाकर बनता है एमएसजी । तो
इसलिए इस नाम को ही हमने एमएसजी रख दिया। ये कोई अलग से नाम नहीं। तो ये साध-संगत के लिए खुशी का
महीना है। क्योंकि साध-संगत चाहती थी कि हर महीना खुशी और सेवा का महीना बन जाए, इसलिए इस महीने का
नाम रखा गया है। इससे अगला महीना यानी अप्रैल, जिसमें बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा
सौदा की नींव रखी थी, वो आ जाएगा और आगे की फिर आगे बताएंगे समय के अनुसार।
– कण-कण में विद्यमान है भगवान
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सतगुरु, मौला, दाता, रहबर से ऐसी कोई जगह नहीं होती, जहां वो नहीं है। जहां तक
निगाह जाती है, वहां तक ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब है और जहां तक निगाह नहीं जाती वहां भी
वो है। आदमी की निगाह अगर उसको देखने के लायक बन जाए तो ना बाहर निगाह दौड़ाने की जरूरत और ना ऊपर,
नीचे, दाएं-बाएं। आँखें बंद करके भी उसे आप अपने अंदर देख सकते हैं। बात है भक्ति करने की, बात है सेवा करने
की। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सेवा और सुमिरन ये हर भगत के गहने होते हैं। जैसे शादी होती है जिसमें दूल्हा
सजता है, दुल्हन सजती है, तो तरह तरह के हार-श्रृंगार किए जाते है। वो अपनी एक रीत है, हमारी संस्कृति है, पूरी
दुनिया में भी अलग-अलग संस्कृति है उसके बारे में। लेकिन उस ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब,
राम, सतगुरु, मौला को रिझाने के लिए जो सबसे बड़े गहने है, उनमें पहला गहना है प्रभु परमात्मा के नाम का जाप
करना और दूसरा उसकी बनाई सृष्टि की सेवा करना। आमतौर पर कहा जाता है गहना वो ही अच्छा होता है जो
अपने साथी को प्रभावित कर दे। उसे आप अच्छे लगें, तो इसी तरह ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब,
राम के लिए ये ही दो गहने हैं जो उसे बहुत ज्यादा अच्छे लगते हैं, बहुत ज्यादा पसंद आते है। तो आप सेवा करे,
सुमिरन करे और परम पिता परमात्मा के बारे में कभी भी ये मत सोचो कि वो आपसे दूर है। जो इंसान हमेशा ये
सोचता है कि प्रभु परमात्मा मेरे अंदर था, है, और रहेगा, यकीनन वो कभी बुरा कमज़् नहीं करता, कभी गलत कमज़्
नहीं करता। बल्कि अच्छे कमोज़्ं से मालिक के प्रत्यक्ष दशज़्नों के काबिल बना जा सकता है। हमेशा से अपने
सतगुरु, मौला को अपने अंदर महसूस कीजिए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सुमिरन से, सेवा से जैसे ही वो आपके
अंदर महसूस होगा, यकीनन वो बाहर भी नजर आने लग जाएगा। ये अलग बात है कि शुरूआत में आपका मन
आपको झांसा दे दे कि ये भ्रम सा पड़ा है, भुलेखा पड़ गया, लेकिन वो हकीकत होती है सेवा करने वालों के साथ,
सुमिरन करने वालों के साथ। लेकिन इसके लिए सबसे पहले इंसान को अपनी पांच या यूँ कह लीजिए की अपनी 7

बुराइयों पर जीत हासिल करनी होगी। उनमें है काम-वासना, क्रोध, लोभ, लालच, मोह, अहंकार और मन और माया।
ये सात ऐसे हैं जो परम पिता परमात्मा, सतगुरु के दशज़्नों के आगे सबसे बड़ी दीवार बनते हैं, सबसे बड़ी रुकावट
बनते हैं। जब तक इंसान इन्हें नहीं कंट्रोल करता, अंदर बाहर उसके दशज़्न होना असंभव है और इन्हें कंट्रोल करने
के लिए सेवा में मन लगा के रखो, सुमिरन करते रहो, आप कोई भी बिजनेस, व्यापार काम धंधा अपना करते है,
करते हुए भी सुमिरन करते रहो, तो यकीनन जो आत्मा और परमात्मा के बीच की जो दीवार है वो धीरे-धीरे टूट
जाएगी और फिर रोकने वाला कोई नहीं होगा। फिर आप होंगे और आपका ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम होगा।
इस कलयुग में यहां बुराई का बोलबाला है। यहां देखना गलत है, बहुत सारी चीजें आदमी गलत देखता है, गलत
सुनता है, यहां तक की बोलता भी गलत है। खान-पान में भी जहर आ गया है, तो नेचुअरली सोच में भी जहर आ
जाता है।
– नंबरबाजी ने घरों को भी बर्बाद किया हुआ है
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आज पूरे समाज में नंबरों का चक्कर है। हर कोई नंबर बनाना चाहता है। हमें तो नहीं
लगा कि कोई जगह इससे अछूती होगी। चाहे वो छोटा घर भी क्यूं ना हो और चाहे बड़ा दफ्तर ही क्यों ना हो। नंबरों
का चक्कर बहुत बड़ा है। हर आदमी चाहता है कि काम करूं तो मेरा नाम होना चाहिए, इसलिए वो दूसरों को अपने
साथ जोड़ता है। उनसे पूछकर अपने नंबर बनाता है और उनके नाम तक नहीं लेता। तो ये नंबरबाजी ने घरों को भी
बर्बाद किया हुआ है। समाज में भी ये घातक है, क्यूंकि दूसरे के कंधे पर पैर रखकर लोग आगे निकल जाते हैं और वो
अपना कंधा सहलाता रह जाता है। तो कभी भी नंबरबाजी नहीं होनी चाहिए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आप उस


परमपिता परमात्मा को खुश करना चाहते हैं तो दिमाग में ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब, परमात्मा
का ही ख्याल होना चाहिए। कहीं आप सोचते होंगे कि मैं इस आदमी को खुश कर लूंगा तो मेरा राम मेरे पर खुश हो
जाएगा। ठीक है वचनों पर रहते हुए किसी की मदद करना, दीन-दुखियों का सहारा बनना, किसी भी दिव्यांग का
साथ देना, ये भगवान तक जाने के रास्ते हैं, पर चापलूसी करके या आप सोचें कि किसी बंदे को खुश करके चापलूसी
के दायरे में, उसकी वाह-वाह करके, उसकी बड़ाई करके, आप परमात्मा तक पहुंच जाएंगे तो आप अपना जीवन
बर्बाद कर रहे हैं। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि इंसान को भगवान ने आजाद बनाया है, गुलाम नहीं। इसलिए
इंसान को आजादी से सोचना चाहिए और सूफियत में, रूहानियत में मुरीद गुलाम होता है सिर्फ  अपने ओउम, हरि,
अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु, राम का। बीच में और किसी का नहीं। इसलिए कौन क्या है, उसके बारे में ना सोचें, वो
उसके कर्म होंगे, तो आपने तो अपने कर्मोंं को सही करना है, आपने अपने अच्छे कर्म बनाने हैं। जो कोई भी आगे बढ़
रहा है उससे खुश हो जाओ, पर उसका मतलब ये नहीं कि आप पीछे रह जाओ।  आप भी आगे बढऩे के लिए जोर
लगाओ, आगे बढऩे की कोशिश करो। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि रूहानियत में आगे बढऩे के लिए
कभी भी सोर्स को मत ढूंढो। हालांकि सोर्स होते हैं दुनियादारी में बहुत सारे, जिसका सहारा लेकर आगे बढ़ा जाता है।
लेकिन राम-नाम के यहां सिर्फ  एक ही सोर्स है वो है सुमिरन और सेवा। अपने विचारों का शुद्धिकरण। जैसे ही

विचार शुद्ध हो जाएंगे, तो फिर तो देर ही नहीं लगती आमने-सामने होने में, रूबरू होने में। तो विचारों का
शुद्धिकरण बेहद जरूरी है। अपने विचारों पर कंट्रोल करना बहुत जरूरी है। जरा सी चीज देखकर आप ललचा जाते
हैं। जरा से सुख के लिए, क्षणिक आनंद के लिए आप परमानंद को ठोकर मार रहे हंै। जिव्हा का स्वाद है, इंद्रियों के
भोग-विलास का स्वाद है, ये क्षणिक होता है, परमानेंट नहीं होता है और ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम के दर्श-
दीदार उसकी भक्ति का जो आनंद है वो परमानंद है। जो कभी कम होता ही नहीं। हमेशा बना रहता है। इस जहान में
ही नहीं अगले जहान में भी बरकरार रहता है। तो क्या आपका दिल नहीं चाहता कि जिव्हा के स्वाद के लिए कितनी
दुनिया मर गई, इंद्रियों के भोग-विलास के स्वाद के लिए कितनी दुनिया मर गई, तो जो परमानंद है, जो कभी कम
ही नहीं होता, क्यों ना एक बार जिदंगी में उसको चख कर तो देख लें। कितनी चीजें आप टेस्ट करते रहते हो। जिसको
जैसा उपलब्ध होता है वो उसको खाने की कोशिश करता है। पर किस लिए, जिव्हा के स्वाद के लिए, आपकी संतुष्टि
के लिए, तो जरा सोचिए उस ओउम में, राम में, उसकी भक्ति में  उसकी औलाद यानी सृष्टि की सेवा में जो परमानंद
है वो कैसा होगा। जरा सोच के देखिए आप। तो वो परमानंद की प्राप्ति के लिए आप जरूर, जरूर कोशिश किया करें।
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि जितने भी पकवान हैं वो इंसान बाहर से लेकर आता है और पैसा भी लगाता है।
लेकिन हैरानीजनक बात है कि आपको परमानंद के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता तथा कोई धर्म, जात,
मजहब नहीं बदलना पड़ता। कई बार लोग सोचते हैं कि शायद इस धर्म में रहकर परमानंद जल्दी मिल जाएगा तो
जी नहीं, ऐसा नहीं है। भगवान के लिए सभी धर्म, जात, मजहब एक हैं। क्योंकि हमारी जात सभी की एक ही है। हम
सब एक कुटुंब है। यह हमारे पवित्र वेदों, सनातन धमज़् में पुरातन समय से यह लिखा हुआ मिलता है कि जितना भी
संसार है वो एक कुटुंब है। यानी एक परिवार है। तो आप एक परिवार की तरह हंै और जैसे ही सुमिरन करते हैं तो
प्रभु ये नहीं देखता है कि किस जात का है, किसने कैसे कपड़े पहने है। हालांकि सफाई रखनी चाहिए। अच्छे कपड़े
पहनो, कोई रोक-टोक नहीं है। लेकिन परमात्मा देखता है कि ये तन रूपी कपड़ा है, इसमें जो आत्मा रूपी जीव रहता
है वो कितना पवित्र है। उसकी कितनी बात आप सुनते हैं और इस तन को कितना पवित्र कर लिया आपने पवित्र
आत्मा से मिलके।  तो आपके विचार शुद्ध होंगे, आपके अंदर-बाहर पवित्रता आएगी, तो मालिक आपसे कभी दूर
नहीं होता। ये तो आपके आंखों का भ्रम है। आपके मन का छलावा है, तो इससे यूं लगता है कि मालिक हमसे दूर है।
जी नहीं, वो कभी अपनी औलाद से छोड़ो, पूरी सृष्टि से दूर जाता ही नहीं। वो तो कण-कण जरेज़्-जरेज़् में रहने वाला
है। वो ओउम, वो राम, वो अल्लाह, वाहेगुरु सतगुरु, मौला। कोई जगह ऐसी नहीं, कोई तिनका ऐसा नहीं जहां वो ना
रहता हो। आपके शरीर के कण-कण में वो विराजमान है। पर कितनी हैरानी की बात है कि आप शरीर के भोग-
विलास में पड़े हुए हंै। शरीर के रसों-कशों में उलझे हुए हैं और आत्मा रूह रूपी जो जीव आपके अंदर आपको आवाज
देता है उसकी आप सुनना पसंद नहीं करते। उसको आप देखना पसंद नहीं करते। हालांकि हर किसी के अंदर एक
आवाज आती है। जिसे आत्मिक आवाज कहते हैं, रूह की आवाज कहते हैं, जमीर की आवाज कहते हैं। वो हमेशा
आपको जब भी आप कोई पहली बार बुरा कमज़् करता है, वो रोकती है, मत कर, गलत है, पर आपका मन जो है आगे
से क्या जवाब देता है, सारी दुनिया कर रही है, तेरे एक बदलने से क्या फर्क पड़ता है। बस फट्टी पोंछके रख दी है इस

मन ने इंसान की। जैसे ही आपने ये सोचा, आप वचनों से गिर जाते हैं और जो खुशियों का हकदार आपको बन जाना
चाहिए था उससे वंचित हो जाते हैं। तो आपके अंदर परमानंद है। अमृत है, हरि रस है और उसको पीने के लिए कोई
पैसा पाई नहीं, कोई चढ़ावा नहीं, बस सुमिरन कीजिए, सृष्टि की सेवा कीजिए।
– एक-दूसरे का जरूर करें सत्कार
पूज्य गुरु जी ने भारतीय संस्कृति के लिए प्रेरित करते हुए फरमाया कि एक-दूसरे का सदा सत्कार करें। जितनी भी
साध-संगत, बच्चे हैं, बड़ों का सत्कार जरूर करें। सुबह उठकर अपने मां-बाप के पैरों के हाथ लगाकर तो देखो। वो
बद्दुआ नहीं देंगे। जरूर उनके दिल से, दिमाग से दुआएं निकलेंगी और ये धमोज़्ं में लिखा है कि निकली हुई दुआ
मालिक जरूर मंजूर करते हैं। पूज्य गुरु जी ने कहा कि आप भक्ति करते हो, सेवा करते हो, सही जगह पर हो, वचनों
के पक्के हो, कोई आपको बद्दुआ भी दे देगा तो वो आपके पास भी नहीं आएगी। यानी वो आपके ऊपर असर नहीं
करेगी। तो बिना वजह से बद्दुआ से ना डरा करो। बल्कि दुआएं इक्कठी करो। जितनी दुआएं आपके पास होगी उतने
चेहरे पर रौनक होगी, उतनी खुशियां होंगी। उतनी अंदर-बाहर शांति होगी। इसलिए दुआएं जरूर इक_ी करो। वहीं
पूज्य गुरु जी ने मां बाप से भी आह्वान किया कि उन्हें भी चाहिए कि वो अपने बच्चों को जरूर आशीष और
आशीर्वाद दें। जब बिना किसी स्वार्थ के आशीष दी जाती है तो भगवान उसको जरूर सुनता है। भगवान से हमेशा
अच्छा मांगा करो, बुरा कभी नहीं मांगना चाहिए। कई बार इंसान तंग आकर भगवान से बुरी चीज मांग लेता है तो
उनको ऐसा नहीं करना चाहिए। जो भी दीन-दुखी मिले उसकी मदद करनी चाहिए। उसमें पशु-पक्षी भी क्यूं ना हो।
अगर कोई पशु बीमारी से तड़प रहा है और आप उसके पास से गुजर रहे हैं तो उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। अगर
किसी का भला करने के लिए थोड़ा समय देना भी पड़ जाए तो देना चाहिए। लेकिन सावधानी जरूर रखनी चाहिए।
क्योंकि आजकल के समय में लोग ठगी के लिए भी ऐसा बहाना बना लेते हैं। इसलिए सभी को सचेत भी रहना
चाहिए। इसलिए परम पिता जी के वचन है कि ''रहना मस्त और होना होशियार चाहिएÓÓ, पर भी जरूर अमल
जरूर करना चाहिए। यानी भला करते समय मस्त रहो, लेकिन थोड़ी सी होशियारी भी जरूर रखो। ताकि किसी के
चंगुल में ना फंस जाएं। आज का टाइम ऐसा है कि अगर भला करना भी पड़ता है तो सोच समझ के करना पड़ता है।
परम पिता जी के वचन है कि भला करने वाले भलाई किए जा, परवरदिगार मिलेंगे।