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आज का इंसान भौतिकवाद में उलझा, देश व समाज के लिए सोचने की नहीं फुरसत

सिरसा

आज इंसान भौतिकवाद में इस कदर फंसा हुआ है कि उसे अपने आप
के लिए फुरसत नहीं है। परिवार के अलावा देश समाज के लिए सोचने की भी उसे फुरसत नहीं। कई तो परिवार की
तरफ भी ध्यान नहीं देते। सिर्फ और सिर्फ गर्ज, स्वार्थ, लोभ, लालच में उलझे हुए है। जिस कारण अपने आप पर
इंसानों को भरोसा कम होता जा रहा है। जब खुद पर यकीन डगमगाने लगता है तो कोई भी काम धंधा आप करते
हो, पढ़ते हो, खेलते हो, एग्रीकल्चर है, बिजनेस है यानि कोई भी कामधंधा आप करते है, उसपे भी आपके अंदर
एकाग्रता नहीं आती। सफल आप नहीं हो पाते। उक्त वचन शनिवार को पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह
जी इन्सां ने उत्तर प्रदेश के शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा में ऑनलाइन गुरुकुल से जुड़ी साध-संगत को संबोधित
करते फरमाए। इस दौरान साध-संगत पूज्य गुरु जी के पावन वचनों को सुनकर और उनके दर्शन करके लाभान्वित
हुई।
पूज्य गुरु जी ने रूहानी सत्संग में आगे फरमाया कि आज के दौर में आदमी जिंदगी कैसे जिए? भरोसा करना
पड़ता है, पर भरोसे के लायक है कौन ? ये देखने वाली बात होती है, सोचने वाली बात होती है। क्योंकि भरोसे बिना
तो कोई काम चलता ही नहीं। आप रिश्ते-नाते जोड़ते हैं, तो भी भरोसा करना ही पड़ता हैं। या फिर आप जो भी काम

धंधा करते है, कोई भी साजो सामान खरीदते है, उसमें भी तो भरोसा ही होता है, यकीन करना पड़ता है। हमारी
ज्ञान इंद्रिया किसी प्रकार से नहीं बता पाती कि वाक्य ही ये सामान, कपड़ा, लत्ता इतने समय चलेगा। तो भरोसा
पहले खुद पर आना जरूरी होता है। बहुत सारे बच्चे आज के समय में डबल माइंड, ट्रिपल माइंड,यानि पता नहीं
कितनी प्रकार की सोच में उलझे रहते है। जब तक आपको आपके ऊपर विश्वास नहीं, जब तक आपके अंदर
आत्मबल नहीं, आत्म विश्चास नहीं तो कभी भी आप सफलता हासिल नहीं कर पाता
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इंसान जिसके लायक होता है। इंसान को अपने आप पर विश्वास करना चाहिए, पर
कैसे? अपने आप पर यकीन आए तो कैसे आए? विल पॉवर, आत्मबल वो एक ऐसी शक्ति है, अगर उसको बढ़ा
लिया जाए तो खुद पर भी यकीन आने लगता है और फैसले भी आप बेधड़क होकर ले सकते है। अदर वाइज
डगमगाता रहता है आपका यकीन। ये सही है, वो सही है। माइंड में चलता रहता है। लेकिन अगर इंसान के अंदर
विल पॉवर, आत्मबल होगा। तो वो सही प्रकार से सोच पाएगा। पूज्य गुरु जी ने बताया कि विल-पॉवर, आत्मबल
सब के अंदर रहता है। इसे बाहर से नहीं खरीदना पड़ता। इसे अपने अंदर से पैदा
करना है और अपने अंदर से पैदा करने के लिए गुरुमंत्र, नाम शब्द,कलमा, मैथ्ड ऑफ मेडिटेशन, युक्ति, विधि,
तरीका। वो ही एक ऐसा है जिसकी वजह से आपके अंदर का यकीन मजबूत होगा, आत्मबल आएगा और आत्मबल
के द्वारा ही आप सही फैसला ले पाएगे। कई बार जो एक्सीडेंट होते हैं वो डबल माइंड के कारण भी हो जाते है।
इसलिए आत्मबल हर क्षेत्र में जरूरी है और उसके लिए सुमिरन जरूर करें, भक्ति, इबादत करे।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि प्रभु-परमात्मा की भक्ति के लिए कोई पैसा, चढ़ावा, नोट, वोट, धर्म, जात, मजहब
नहीं छोड़ना होता। ना ही कुछ ऐसा देना होता। आप अपने घर-परिवार में रहते हो, घर संसार में रहते हो, अपने
धर्म-जात, मजहब में रहते हुए, बस ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम को याद कीजिए, इससे
आत्मबल बढ़ता जाएगा और जैसे-जैसे आत्मबल बढ़ेगा वैसे-वैसे ही आपको अपने पर भरोसा आएगा और यकीन
मानो ये भरोसा ही आपको बहुत सारी बीमारियों से बचा लेगा। विल पॉवर, आत्म विश्वास आदमी के अंदर होना
चाहिए और हैरानी है कि वो सबके अंदर है। लेकिन इंसान के दिमाग तक आने में देर लगती है। इंसान को अपने
आत्मबल को बुलंद रखना चाहिए
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि इंसान को विश्वास और दृढ संकल्प लेकर चलना चाहिए तथा कभी घबराना नहीं
चाहिए। वहीं पूज्य गुरु जी ने कहा कि अगर मुश्किलें ना आए तो आसानी का पता कैसे चलेगा और दुख ना आए तो
सुख का पता कैसे चलता। किसी ने संत से पूछा कि अनामी में, निजधाम में, सचखंड, सतलोक में ऐसा क्या है कि
वहां ना सुख है, ना वहां दुख है। तो वहां जाकर क्या करना है। फिर संत ने कहा कि अगली बात तो सुन लें। तो फिर
आदमी ने कहा कि बताओ। तो संत ने कहा कि वहां परमानंद है, ऐसा सुख है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती,
वहां सुख-दुख इसलिए नहीं कि दुख के बिना सुख की अनुभूति नहीं। इसलिए वहां परमानंद है। परमानेंट रहने वाली
चीज। यानि परम आनंद। परम पिता परमात्मा के दर्श-दीदार का, उसकी रूहानी शक्तियों का, उसकी रूहानी पॉवर
का, वहां हमेशा बहार छाई रहती है या यूं कहें कि तुफान छाया रहता है। इसलिए सुख में आत्मा नाचती रहती है

और दुख का तो एहसास ही नहीं और सुख का एहसास कैसे हो। इसलिए वो जगह परमानंद है और हैरानी है कि वो
भी आपके अंदर है। आप देख सकते है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक संत हुए है महाराज पीपा नाम से, जो झालावाड़, भीलवाड़ा साइड के हंै। उनकी
एक वाणी आती है जिसमें कहा गया है कि जो ब्रह्मांड में है वो शरीर में है। जो खोजे सो पावे। यानि गुरुमंत्र तो
सबने ले लिया, अभ्यास कौन कर रहा है। क्लास तो सारे अटेंड करते है, लेकिन टीचर, मास्टर, लेक्चरर की सुनता
कौन है, फिर रिविजन कौन करता है और सीरियस कौन है कि मैंने मेरिट हासिल करनी है। तो मेरिट वाले मैरिट ले
जाते है, जो क्लास में पीछे खेलते रहते है वो घर में मुंह लटका के आ जाते है यानि फेल हो जाते है। तो इसमें
प्रोफेसर, लेक्चरर की तो कोई गलती नहीं होती। संत, पीर, फकीर, गुरु, लेक्चरर, टीचर, मास्टर सबको पढ़ाते हैं,
सबको सिखाते हैं, अब डिपेंड करता है आप पर कि आप अमल कितना करते है। संत-पीर फकीर आत्मबल बढ़ाने
की शिक्षा देते है। ताकि आपके अंदर आत्मविश्वास आ जाए और आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है। कोई भी
सफलता, चाहे वो कोई भी बीमारी का इलाज हो, या बिजनेस, व्यापार में लाभ हो, या शारीरिक तंदुरूस्ती हो, या
शारीरिक मजबूती हो, वो सब आत्मबल से आता है।
पूज्य गुरु जी ने पढ़ाई करने के तरीकों के बारे में बताते हुए फरमाया कि जब बच्चे पढ़ने बैठते है तो उन्हें
एकाग्रचित होकर बैठना और पढ़ना चाहिए। और ये सोचकर बैठा करें कि मैं जो भी लेसन याद करूंगा वो 100
प्रतिशत माइंड में बैठेगा ही बैठेगा। लेकिन बच्चे बुक खोलते ही कहते है कि इतना बड़ा, ये तो नहीं याद होगा। यानि
नकारात्मक सोच बना लेते है। जिस कारण 90 परसेंट तो उनके दिमाग से प्रश्न पहले ही उड़ जाता है। फिर वो प्रश्न
याद नहीं होता, क्योंकि बच्चे के माइंड ने पहले ही इनकार कर दिया है। अगर बच्चे बुक खोलते ही यहीं सोचेंगे कि
मैं इसे 90-95 प्रतिशत तो पक्का पढ़कर याद कर ही लूंगा। तो 100 पर्सेंट याद हो जाएगा। ये थ्योरी है आत्मबल
की, आत्म विश्वास की। कैसा आपको सोचना चाहिए, कैसे आपके अंदर भावना होनी चाहिए, तो बेहर जरूरी है
अपने विल पॉवर, आत्मबल को बढ़ाने की।
आत्मबल के लिए हमारे सभी धर्मों में, वेदों में बताया गया है कि अगर सच्चे संत-पीर, फकीर से एक शब्द (गुरुमंत्र)
भी मिल जाए तो आत्मबल तो क्या उसके सहारे परमात्मा को भी पाया जा सकता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि
कुछ लोग पढ़कर कढ़ जाते हंै। कहते है कि पांच शब्द से ही होता है, तीन शब्द से ही होता है, लेकिन इतिहास
गवाह है कि अगर परमात्मा चाहे और अपने फकीर को निगाह दे दे तो वो संत-पीर फकीर अपने आशीर्वाद से भी
आदमी का पार उतारा कर सकता है, उसका भला कर सकता हैं। इतिहास में दर्ज है कि हमारे संत, ऋृषि, मुनी,
पैगंबर, गुरु साहिबानों ने अपने आशीर्वाद से ही लोगों का बेड़ा पार कर दिया। शब्द दिया ही नहीं। मालिक का भेजा
हुआ संत तो बोल के ही लोगों के काज संवार देता है। संत तरीका बता दें और आगे शिष्य बिना किसी रोक-टोक
किए उसपर अमल कर लें उसका भला जरूर होता है।
पूज्य गुरु जी ने कहा कि आपको गारंटी देते है कि संत कभी किसी का बुरा करने की प्रेरणा ना तो डायरेक्ट तरीके से
देते हैं और ना ही कभी इनडायरेक्ट तरीके से देते हैं। अगर कोई सच्चा संत है तो वो ऐसा कभी नहीं कर सकता।

क्योंकि जो परम पिता परमात्मा से प्यार करते है वो परमात्मा की सृष्टि को, परमात्मा की बनाई इंसानियत को
अपनी औलाद मानते हैं। पूज्य गुरु जी ने उदारण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार सौ में से 90 लोग तो पक्का
ऐसे होंगे जो अपने बच्चों का बुरा नहीं सोचते। कलियुग है और 10 का इसमें हम कुछ कह नहीं सकते। लेकिन
परमात्मा तो कभी किसी का 100 परसेंट बुरा नहीं करते और संत भी 100 परसेंट ही कभी किसी का बुरा नहीं
सोचते। ये सच्चाई होती है। संत-पीर फकीर आत्मबल को जगाने के लिए जो तरीका बताते हैं, युक्ति बताते हैं,
बिना क्यों, किंतु, परंतु किए राम का नाम जपो। सबसे बेगर्ज प्रेम करो, दीन-दुखियों की मदद करों। सृष्टि की सेवा
करो, लेकिन पहले घर से इसकी शुरुआत करो। अपने मां-बाप, बुजुर्गों की सेवा में ध्यान भी रखो और फिर आस-
पड़ोस में सेवा करो। फिर आत्मबल भी बढ़ेगा और चेहरे पर नूर और अंदर शरूर भी जरूर आएगा।