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नई दुनिया में छपना, मतलब…. पत्रकारिता की डिग्री पाना था! news in hindi

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प्रदीप द्विवेदी. आजादी के बाद नई दुनिया की पत्रकारिता ने वास्तव में एक नई दुनिया दिखाई थी. यह महज अखबार नहीं था, पत्रकारिता की संपूर्ण पाठशाला थी.

नई दुनिया ने सही और स्तरीय हिंदी लिखने के साथ-साथ तथ्यात्मक खबरें लिखने पर भी ध्यान दिया.

बीसवीं सदी में सत्तर का दशक नई दुनिया का स्वर्णकाल था, जब नई दुनिया में छपना, मतलब…. पत्रकारिता की डिग्री पाना था.

अस्सी के दशक में जनसत्ता के नए भाषाई तेवर के बाद प्रस्तुतीकरण में बड़े बदलाव आए.

नई दुनिया ने देश को सैकड़ों संपादक, समाचार संपादक दिए हैं, तो एकलव्य पत्रकारों का तो हिसाब ही नहीं है.

नागपुर से प्रकाशित लोकमत समाचार  के संपादक विकास मिश्र ने- सृजन का आंगन रहा है नई दुनिया, में जो कुछ लिखा है, उसे पढ़ कर अनेक पत्रकारों को नई दुनिया का वह स्वर्णयुग याद आ जाएगा.

अभिमनोज उन पत्रकारों में से हैं, जो बिहार से भोपाल फिर  इंदौर पहुंचे, यहां नई दुनिया में पत्रकारिता की, पत्रकारिता समझी और पत्रकारिता की बुलंदियां हासिल की. नवभारत के कई संस्करणों के वर्षों संपादक रहे अभिमनोज इस वक्त पलपल इंडिया डॉट कॉम में संपादकीय अध्यक्ष हैं. नई दुनिया के उन दिनों को याद करते हुए वे लिखते हैं…. नई दुनिया, इंदौर…. इस संस्थान से मैंने तो बहुत कुछ सीखा है… अविस्मरणीय है!

वरिष्ठ पत्रकार डाॅ प्रकाश हिन्दुस्तानी लिखते हैं- मैंने पत्रकारिता की शुरुआत नई दुनिया से की और इस बात का मुझे फक्र है कि मैंने श्री राजेंद्र माथुर, श्री राहुल बारपुते और श्री अभय छजलानी जैसे वरिष्ठों से पत्रकारिता की शिक्षा पाई. धन्यवाद विकास मिश्र जी.

वरिष्ठ संपादक राजेश बादल लिखते हैं- राजेंद्र माथुर ने मुझे गढ़ा, बाबा याने राहुल बारपुते ने सोचने की दृष्टि दी और डॉक्टर रणवीर सक्सेना ने पत्रकारिता में सांख्यिकी के मायने समझाए.

Source : palpalindia
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