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बुद्ध पूर्णिमा की ये एक पौराणिक कथा आपको बताएगी जीवन के बंधन का महत्व

आज बुद्ध पूर्णिमा है, आज के दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। गौतम बुद्ध के जीवन का हर प्रसंग एक सीख के समान हैं जो कि इस जीवन की सच्चाई को दर्शाता हैं।

आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे ही प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं जो जीवन के बंधनों के बारे में बताता हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

गौतम बुद्ध जयंती की पौराणिक कथा

एक बार एक चरवाहा अपनी गाय को रस्सी से बांधकर जंगल की ओर ले जा रहा था। मगर गाय थी कि जंगल की ओर जाने को तैयार नहीं थी। तभी वहां से गौतम बुद्ध निकले। बुद्ध ने देखा कि चरवाहा गाय को जंगल की ओर ले जाने की कोशिश करता, तो गाय दूसरी ओर भागती।

गाय की हरकतों से झुंझलाकर चरवाहा कभी पूरा दम लगाकर उसकी रस्सी खींचता तो कभी उसकी पिटाई भी करता। दोनों के बीच चलती कश्मकश देखकर बुद्ध सोचने लगे कि गाय है, चरवाहा है और रस्सी भी है, लेकिन तीनों में तारतम्य बिलकुल नहीं है।

चरवाहे और गाय की कशमकश देख वे भी वहीं ठहर गए। बुद्ध ने गांव के लोगों से पूछा, ‘यह गाय इस चरवाहे के साथ क्यों है?’ लोगों ने जवाब दिया कि इसमें कौन सी बड़ी बात है! ये गाय इस चरवाहे के साथ ही बंधी है।

फिर बुद्ध ने पूछा कि अगर ये गाय इस चरवाहे के साथ बंधी है तो फिर ये चरवाहे के साथ क्यों नहीं है? लोग सोचने लगे। बुद्ध फिर बोले, ‘अगर यह गाय भाग जाए, तो बताइए कि चरवाहा उसके पीछे भागेगा या नहीं?’ इस पर लोग बोले कि चरवाहे को गाय के पीछे भागना ही पड़ेगा।