पीठ ने पाया कि एडमिट कार्ड डाउनलोड करते समय अजय ने जन्मतिथि 11 जुलाई, 1998 दी थी, जबकि उसकी वास्तविक जन्मतिथि 10 जुलाई, 1998 है। पीठ ने पाया कि डाउनलोड करते हुए ही अजय को अपनी गलती का पता चल गया था। लिहाजा उसने संबंधित अथॉरिटी को इससे अवगत करा दिया था। इस दौरान वह लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और मेडिकल परीक्षा में शामिल हुआ और सभी परीक्षाओं में वह सफल रहा। लेकिन उसे जन्मतिथि को सुधारने की इजाजत नहीं दी गई और यूपीएससी ने उसके चयन को रोक दिया। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यूपीएससी को अजय के चयन का रास्ता साफ करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जब अभ्यर्थी ने चयन की सभी प्रक्रियाओं में हिस्सा लिया और उनमें सफल रहा, ऐसे में यह देखना जरूरी है कि अभ्यर्थी की गलती में कितनी गंभीरता है। भूलवश हुई मामूली गलतियों के आधार पर किसी को ऐसी सजा नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट पीठ ने अभ्यर्थी की ओर से पेश सतेंद्र त्रिपाठी और परमानंद की इस दलील को स्वीकार किया कि छोटी-छोटी गलतियों के लिए अभ्यर्थियों को चयन से नहीं रोका जा सकता। शीर्ष अदालत ने यूपीएससी से कहा कि उसे भूलवश हुई इस तरह की गलतियों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। वह भी तब जब इस गलती से अभ्यर्थियों को कोई फायदा न पहुंच रहा हो। यूपीएससी ने कहा कि अगर इस तरह की इजाजत दी गई तो याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी। जवाब में पीठ ने कहा कि हमें ऐसे आवेदनों पर विचार करने में कोई परेशानी नहीं है।