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मधुमेह जैसी घातक बीमारी को अब मात देगा ‘शुगर राइस’

 

मीरजापुर। जिले के विकास खंड जमालपुर को यूं ही धान का कटोरा नहीं कहा जाता। दरअसल इस क्षेत्र में पैदा किए जाने वाले धान जीआर 32, आदमचीनी, ठाकुर भोग, काला नमक 1, पूसा 1, बादशाह भोग, राम अजवाइन जैसी प्रजाति के खुशबूदार चावल की मांग अब भी गोवा, महाराष्ट्र छत्तीसगढ़, उत्तराखंड सहित पश्चिम बंगाल में है। यहां के किसानों की खूबी है कि उन्हें देश-प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान संस्थानों से धान के बीजों की नई प्रजाति के शोध के बारे में जैसे ही जानकारी मिलती है तो उक्त धान को मंगाकर तुरंत धान की नर्सरी तैयार करने में जुट जाते हैं।

विकास खंड जमालपुर के उत्तर में वाराणसी व पूरब में चन्दौली जनपद की सीमा पर स्थित ग्राम सरसा-देवरिया के किसान नन्दलाल चौबे, गजानंद चौबे, रामआसरे चौबे, सहजनी के उदित नारायण सिंह ने मणिपुर में पैदा होने वाले धान की प्रजाति चखाओ के काला धान (शुगर राइस) की खेती की है। इन किसानों का कहना है कि चखाओ प्रजाति का चावल शुगर जैसी घातक बीमारी को मात देने का माद्दा रखता है। रासायनिक उर्वरकों के बगैर सहजनी व सरसा-देवरिया गांव में काला धान (शुगर राइस) की खेती एक-एक एकड़ भूमि पर प्रयोग के तौर पर शुरू की गई।

किसानों ने बताया कि कटाई-मड़ाई के बाद (शुगर राइस) काला धान का उत्पादन प्रति बीघा 8 से 10 क्विंटल हुआ। रोपाई के समय जैविक खाद के रूप में सिर्फ सड़े हुए गोबर की खाद का इस्तेमाल किया गया। उत्पादन के बाद धान की कीमत बाजार में 500 रुपये प्रति किलो है। काला धान (शुगर राइस) की नर्सरी डालने व रोपाई के बाद 140 से 150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसके पौधे अन्य धानों के पौधों से इतने बड़े होते हैं कि पौधों में बाली आने पर खेत में लेट जाने का खतरा रहता है। यही कारण है कि रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है।