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समाजवादी पार्टी मिशन 2024 की तैयारी में जुट गई है। सहयोगियों के साथ छोड़ने के बाद पार्टी मुखिया की बदली चाल

समाजवादी पार्टी  वे पहली बार बिना चुनाव तीन दिन से लखनऊ से बाहर हैं और विभिन्न जिलों में जनसभाएं कर रहे हैं। वे भाजपा की खामियां गिना रहे हैं और अपनी ताकत की थाह भी ले रहे हैं।  पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि चुनावी रणभेरी बजने से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदेश के विभिन्न जिलों में एक-एक जनसभा करेंगे। विधानसभा चुनाव में सत्ता से दूर रहने के बाद सपा को लोकसभा उपचुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में पार्टी संगठनात्मक इकाइयां भंग कर नए सिरे से पुनर्गठन की तैयारी में जुटी है। इस बीच विधानसभा चुनाव के दौरान सहयोगी रही सुभासपा, महान दल जैसे सहयोगी सपा शीर्ष नेतृत्व पर कई तरह के आरोप लगाए और गठबंधन से अलग हो गए। प्रसपा भी सक्रिय है। ऐसे में सपा शीर्ष नेतृत्व में बदलाव साफ दिख रहा है। वह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नई रणनीति से सक्रिय हो गए हैं।


कन्नौज और आजमगढ़ के बाद अखिलेश तीन दिन से लखनऊ से बाहर हैं। नोएडा, मथुरा होते हुए उन्होंने सोमवार को औरैया में जनसभा की। इन तीनों जिलों की जनसभाओं में चुनावी मुद्दे उठाए। गांव, गरीब और युवाओं को साधने की कोशिश की। युवाओं से जुड़े मुद्दे को बार-बार दोहराकर वाहवाही लूटी। डॉ. लोहिया के साथ डॉ. आंबेडकर को भी जोड़ा और संविधान बचाने की दुहाई दी। कुल्हड़ की चाय पीने से लेकर चाट खाने के  लिए सामान्य दुकानों पर रुके। यह पूरा घटनाक्रम अनायास नहीं है। इसके सियासी निहितार्थ हैं। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि वे बारी-बारी से हर जिले में जनसभा करेंगे और लोगों की समस्याएं उठाएंगे। प्रदेश की सियासी नब्ज पर नजर रखने वाले सपा अध्यक्ष की सक्रियता को भविष्य की रणनीति के तौर पर देख रहे हैं। सपा से सहयोगियों के बिछड़ने के बाद कई क्षेत्रीय दल संपर्क में हैं। ये दल अलग-अलग इलाकों में सक्रिय भूमिका में हैं।