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माहवारी स्वच्छता दिवस: एमएचएआई द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से हुआ खुलासा

लॉकडाउन के कारण कई जगह सेनेटरी पैड की अनुपलब्धता ने महिलाओं एवं लड़कियों को डिस्पोजेबल पैड की जगह कपड़े के पैड इस्तेमाल करने पर बाध्य किया है।

रेगुलर सेनेटरी पैड के विकल्प के रूप में कपड़े से बने पैड को भी सामान रूप से प्रचारित किया जा सकता है। जैसे कपड़ों से बने पैड को 4-6 घंटे तक इस्तेमाल किया जाए। पैड बदलने से पूर्व एवं बाद में हाथों की सफाई की जाए।

साफ़ सूती कपड़े से बने पैड ही इस्तेमाल में लिया जाए और पैड को अच्छी तरह धोने के बाद धूप में सुखाया जाए ताकि किसी भी तरह के संक्रमण प्रसार का खतरा कम हो सके।

लॉकडाउन ने सेनेटरी पैड की उपलब्धता को किया प्रभावित

सरकार द्वारा जिलों में स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से कई लड़कियों एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का निर्माण भी बाधित हुआ है जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पॉइंट्स पर पैड की उपलब्धता भी बेहद प्रभावित हुई है।

देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुआ है। अभी सेनेटरी पैड के सिमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा। साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहाँ मजदूरों की कमी की समस्या खड़ी हो सकती है।

एमएचआई ने किया खुलासा

यह खुलासा वाटर ऐड इंडिया एंड डेवलपमेंट सलूशन द्वारा समर्थित मेंसट्रूअल हेल्थ अलायन्स इंडिया(एमएचएआई) द्वारा माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े संस्थानों द्वारा बीते अप्रैल माह में सर्वेक्षण किया गया। एमएचआई भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का नेटवर्क है। सर्वेक्षण में महामारी के दौरान सेनेटरी पैड का निर्माण, पैड का समुदाय में वितरण, सप्लाई चेन में चुनौतियाँ, सेनेटरी पैड की समुदाय में पहुँच एवं जागरूकता संदेश जैसे विषयों पर राय ली गई। सर्वे में देश एवं विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया।

माहमारी के बाद 67% संस्थानों को रोकनी पड़ी सामान्य कार्रवाई

कोविड-19 के पहले माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89% संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क एवं संस्थान के माध्यम से समुदाय तक पहुँच रहे थे। 61% संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरित कर रहे थे। 28% संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे। 26% संस्थान ऑनलाइन एवं 22% संस्थान दवा दुकानों एवं अन्य रिटेल शॉप के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरण कार्य में लगे थे, लेकिन महामारी के बाद 67% संस्थानों ने सामान्य कार्रवाई रोक दी है। कई छोटे एवं मध्यस्तरीय निर्माता सेनेटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हैं जिसमें 25% संस्थान ही निर्माण कार्य जारी किए हैं तथा 50% संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कार्य कर पा रहे हैं।

महिलाओं एवं लड़कियों का फीडबैक भी जरूरी

इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन (ICRW) एशिया की टेक्निकल एक्सपर्ट सपना केडिया कहती हैं कि माहवारी स्वच्छता कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए महिलाओं एवं लड़कियों से भी फीडबैक लेनी चाहिए। इस फीडबैक में मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों एवं सेवाओं की उपलब्धता, पहुंच, लागत, स्वीकार्यता (गुणवत्ता और अन्य स्थानीय कारक) को शामिल करना चाहिए।

नैपकीनकी गुणवत्ता के मानक

  • बाजार से नैपकिन खरीदते समय नैपकिन की सोखने की क्षमता 60 मिलीलीटर से कम लिखी है और प्लास्टिक रहित नहीं लिखा है तो नैपकिन न खरीदें।
  • नैपकिन पर 60 मिलीलीटर पानी दो बार में 5-5 मिनट के अंतराल में धीरे धीरे डालें तथा 10 मिनट के बाद नैपकिन का सूखापन हाथ से देखें। नैपकिन से पानी वापस नहीं निकलता है तो सोखने की क्षमता मानकों के अनुसार है।
  • नैपकिन को छूकर उसकी सतह की पहचान करें कि उसकी सतह कितनी मुलायम है। कहीं पॉलिथीन का अगर प्रयोग हुआ है तो नैपकिन से हवा पास नहीं होगी। अतः ऐसा नैपकीन न खरीदें नहीं तो लाल दाने और खुजली जैसी समस्या सूखेपन के बावजूद हो सकती है।