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निर्भया केस : सुप्रीम कोर्ट ने दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका खारिज की, फांसी की सजा बरकरार

 

 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप और हत्या के दोषी अक्षय की फांसी की सजा को बरकरार रखा है। तीन सदस्यीय बेंच ने बुधवार को उसकी पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वही दलीलें दी हैं जो उसने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील में दी थीं।

अक्षय की ओर से वकील एपी सिंह ने कहा था कि पीड़िता का दोस्त मीडिया से पैसे लेकर इंटरव्यू दे रहा था। वो विश्वसनीय गवाह नहीं था। तब जस्टिस भूषण ने कहा था कि इसका इस मामले से क्या संबंध है। तब एपी सिंह ने रेयान इंटरनेशनल केस में स्कूल छात्र की हत्या का उदाहरण दिया था। एपी सिंह ने कहा था कि इस मामले में बेकसूर को फंसा दिया गया था। अगर सीबीआई की तफ्तीश नहीं होती तो सच सामने नहीं आता। इसलिए हमने इस केस में भी सीबीआई जैसी एजेंसी से जांच की मांग की थी ।

एपी सिंह ने तिहाड़ के पूर्व जेल अधिकारी सुनील गुप्ता की किताब का जिक्र किया था, जिसमें इस बात की संभावना व्यक्त की गई है कि राम सिंह की जेल में हत्या की गई थी। ये नए तथ्य हैं, जिन पर कोर्ट को फिर से विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम लेखक की बातों पर नहीं जाना चाहते हैं। ये एक खतरनाक ट्रेंड होगा अगर लोगों ने ट्रायल के बाद किताबें लिखना शुरू कर दिया तो ये सही नहीं होगा। इस बहस का कोई अंत न होगा अगर कोर्ट ऐसी बातों पर ध्यान देने लगेगी।

एपी सिंह ने कहा था कि कलयुग में लोग केवल 60 साल तक जीते हैं जबकि दूसरे युग में और ज़्यादा जीते थे। दिल्ली में वायु प्रदूषण और पानी की गुणवक्ता बेहद खराब है, ऐसे में फांसी की सजा क्यों। एपी सिंह ने कहा था कि पीड़िता लगातार मॉर्फिन के नशे में थी तो उसका आखिरी बयान कैसे संभव हुआ। उससे समय-समय पर 3 बयान लिए गए। उनमें विरोधाभास है। तब कोर्ट ने कहा था कि आप हमें ठोस बात बताएं, हमारे फैसले में कमी बताएं। तब एपी सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी कहा था कि मौत की सजा उचित समाधान नहीं है। अपराधियों को पुनर्वास का मौका मिलना चाहिए। गरीब लोग अपने लिए कानूनी उपाय सही से नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें मौत की सजा दी जाती है। मौत की सजा मानवाधिकारों का उल्लंघन है। और ये भारत विरोधी संस्कृति का लक्षण है। हम दिल्ली में रहते हैं जो प्रदूषण की वजह से वैसे ही गैस चैम्बर बन चुकी है। जिससे लोग मर रहे हैं तो मौत की सजा क्यों? इस पर जस्टिस भानुमति ने कहा था कि आप ठोस व कानूनी तथ्य रखें और बताएं कि हमारे फैसले में क्या कमी थी और क्यों हमें पुनर्विचार करने चाहिए।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने सभी दलीलों और सबूतों को परखने के बाद फाँसी की सजा सुनाई, जो कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना। यह अपराध इतना गंभीर है जिसे भगवान भी माफ़ नहीं कर सकता, इसके लिए सिर्फ़ फाँसी की सजा ही हो सकती है। मेहता ने कहा था कि ऐसे राक्षसों को पैदा कर ईश्वर भी शर्मसार होता होगा। इनसे कोई रहम नहीं होनी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि गैंगरेप के चारों दोषियों मुकेश, अक्षय, पवन और विनय को साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिस पर 14 मार्च 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी । हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जिस पर सुनवाई करते हुए फांसी की सजा पर रोक लगाई थी। 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश, पवन और विनय के रिव्यू पिटीशन को खारिज करते हुए उनकी फांसी की सजा पर मुहर लगाई थी।