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महंत परमहंस रामचन्द्र दास ने कहा था, श्रीराम मंदिर निर्माण मेरी अंतिम अभिलाषा

 

 

अयोध्या। श्रीराम मन्दिर आंदोलन के प्रमुख संत और श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास के जीवन के तीन उद्देश्यों में से एक पर आज फैसला आ गया। वर्ष 1949 से सक्रिय परमहंस ने वर्ष 1975 मेंं दिगंबर अखाड़ा के महंत का पद संभालते वक्त अपने जीवन के तीन उद्देश्यों की चर्चा की थी। उन्होंने कहा था, “मेरे जीवन की तीन ही अभिलाषाएं हैं। पहली- राम मन्दिर, कृष्ण मन्दिर, काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण। दूसरी- इस देश में आमूल-चूल गोहत्या बन्द हो। तीसरी-भारत मां को अखंड भारत के रूप में देखना। इसके लिए मैं जीवन भर संघर्ष करता रहा हूं और आगे जीवित रहा तो भी संघर्ष करता रहूंगा। मरने पर मैं मोक्ष नहीं चाहूंगा। मेरी अब एक ही कामना है, जो मैं कह चुका हूं।” सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ करके दिवंगत परमहंस का एक सपना पूरा कर दिया है।

महंथ परमहंस रामचंद्र दास का भगीरथ प्रयास

परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज ने श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना के लिए 1950 में जिला न्यायालय में प्रार्थनापत्र दिया। अदालत ने उस प्रार्थना पत्र पर अनुकूल आदेश दिए। निषेधाज्ञा जारी की। मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने अपील रद्द कर दी।

पूजा-अर्चना बेरोक-टोक जारी रखने के लिए जिला न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर दी। इसी आदेश के कारण आज तक श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामलला की पूजा-अर्चना होती चली आ रही है।श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के 77वें संघर्ष की शुरुआत अप्रैल, 1984 की प्रथम धर्म संसद (नई दिल्ली) में हुई। अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ।

दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या में परमहंस रामचन्द्र दास जी की अध्यक्षता में 77वें संघर्ष की कार्य योजना के संचालन के लिए हुई प्रथम बैठक में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। परमहंस जी यज्ञ समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गए। जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जन-जागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक राम-जानकी रथ यात्रा का कार्यक्रम भी इसी बैठक में तय हुआ था। उत्तर प्रदेश में भ्रमण के लिए अयोध्या से भेजे गए 06 राम-जानकी रथों का पूजन परमहंस जी महाराज के द्वारा अक्टूबर 1985 में सम्पन्न हुआ था। इनकी ही अगुवाई में जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज ने श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना की।

ताला खुलवाने को किया संघर्ष

दिसम्बर 1985 की द्वितीय धर्म संसद उडुपी (कर्नाटक) में परमहंस की अध्यक्षता में हुई। 08 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुलने पर महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आन्दोलन, ताला तोड़ो आंदोलन में बदलने की घोषणा की। इतना ही नहीं, उनकी इस घोषणा ने सारे देश में सनसनी फैला दी कि 08 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा।’

पहली फरवरी 1986 को ही खुल गया ताला

परिणाम स्वरूप पहली फ़रवरी 1986 को ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुम्भ के तृतीय धर्मसंसद में शिला पूजन एवं शिलान्यास का निर्णय लिया गया था। इस अभिनव शिलापूजन कार्यक्रम ने विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया। फिर अप्रैल, 1989 में परमहंस जी महाराज को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित कर दिया गया।

06 दिसम्बर 1990 को पूरा हुआ एक स्वप्न

परमहंस जी महाराज की दृढ़ संकल्प शक्ति के परिणामस्वरूप ही निश्चित तिथि, स्थान एवं शुभ मुहूर्त 09 नवम्बर 1989 को शिलान्यास हुआ। 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा के समय हजारों कारसेवकों का उन्होंने नेतृत्व व मार्गदर्शन भी किया। 02 नवम्बर 1990 को परमहंस जी का आशीर्वाद लेकर कारसेवकों ने जन्मभूमि के लिए कूच किया था। उस दिन हुए बलिदान के वे स्वयं साक्षी थे। बलिदानी कारसेवकों के शव दिगम्बर अखाड़े में ही लाकर रखे गए थे। अक्टूबर 1982 में दिल्ली की धर्म संसद में 06 दिसम्बर की कारसेवा के निर्णय में आपने मुख्य भूमिका निभाई। स्वयं अपनी आंखों से उस ढांचे को बिखरते हुए देखा था। यह घटना उनका एक स्वप्न पूरा होने जैसा था।

वर्ष 2000 में बने मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष

अक्टूबर 2000 में गोवा में केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक में पूज्य परमहंस जी महाराज को मन्दिर निर्माण समिति का अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक की चेतावनी सन्त यात्रा का निर्णय पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी का ही था। 27 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री से मिलने गए सन्तों के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व भी आपने ही किया।

रसायन कहकर आत्मदाह की दी थी धमकी

मार्च 2002 के पूर्णाहुति यज्ञ के समय शिलादान पर अदालत द्वारा लगायी गई रोक के समय 13 मार्च को परमहंस की इस घोषणा ने सारे देश व सरकार को हिला कर रख दिया कि ‘अगर मुझे शिलादान नहीं करने दिया गया तो मैं रसायन खाकर अपने प्राण त्याग दूंगा।’

गोरक्षपीठाधीश्वर के साथ मिलकर बनाई थी योजना

आन्दोलन को तीव्र गति से चलाने के लिए सितम्बर, 2002 को केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की लखनऊ बैठक में परमहंस जी की योजना से ही गोरक्ष पीठाधीश्वर महन्त अवैद्यनाथ जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण आन्दोलन उच्चाधिकार समिति का निर्माण हुआ।