Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

जानिए आखिर क्या है वेद, अनंत पीड़ियों से इस वजह से हिंदुओं के लिए है महत्वपूर्ण

वेदों के प्रति भारतीय समाज में उत्कट श्रद्धा है। इस श्रद्धा का सबसे सटीक प्रमाण है की अनादि काल से विद्यानिष्ठ लोगों ने विशुद्ध रूप से में कंठस्थ कर के इसे सुरक्षित रखा है।

वेदों की उत्पत्ति के संबंध में भिन्नता है। कोई कहता है कि ब्रह्मा के मुख से यह निकला है कोई कहता है वेद की प्राप्ति शिव से हुई है ऐसा भी उल्लेख मिलता है की वेद पहले एक था व्यास ऋषि ने यज्ञ विधि से चार भागों में विभाजित किया, ऋग्वेद,सामवेद,यजुर्वेद और अथर्ववेद।
           
वेदों की भाषा क्या थी?इस प्रश्न के उत्तर में समस्त भाषा शास्त्रियों ने कहां है कि विश्व में जितने भाषा परिवार हैं उनमें इंडो यूरोपीय भाषा परिवार सर्व प्रमुख है। इस परिवार के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि विविध भाषाओं का कोई मूल स्रोत अवश्य रहा होगा। जिसे “आदिम भाषा”कहा गया। इस “आदिम भाषा”की सबसे निकटतम भाषा संस्कृत ही है।इसी संस्कृत भाषा में संसार का सबसे पुराना वेद वाङ्गमय आज भी उपलब्ध है।अतः यह सिद्ध होता है कि अंग्रेजी भाषा से भी प्राचीन है संस्कृत भाषा। तभी तो विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ वेद की रचना इस प्राचीन भाषा में हुई। 

काल निर्धारण

वेदों का काल निर्धारण करने का प्रयास किया गया है।वैसे तो भारतीय विश्वास के अनुसार वेदों का काल निश्चित करना असंभव है।क्योंकि यह शिव से जुड़ा हुआ है। फिर भी विद्वानों ने अलग अलग मत प्रतिपादित किए हैं अनेक भारतीय विद्वान 3000 ईशा पूर्व से 400000 वर्ष पूर्व तक बताया है। पाश्चात्य विद्वानों ने इस काल को 1300 ई0पू0 से 7000 ई0पू0 तक माना है। इसमें मैक्समूलर और मैकडोनल ने ही सबसे कम निश्चित किया है (13 मई सदी ईसा पूर्व। 

जो भी हो भारतीय विद्वानों में से आधिको का मत यह है,कि वेद निर्मित काल का निर्धारण असंभव है, क्योंकि संसार के इतिहासकारों में मतैक्य नहीं है। डॉ0 श्रीधर वारनेकर जो वर्तमान संस्कृत विद्वानों में से एक हैं, ने भी कहा है–“वेद के काल के अन्वेषको का अध्ययन और चिंतन अभिनंदनीय है,परंतु उनके निष्कर्ष स्वीकार करने योग्य नहीं है।” अतः हमारी भारतीय परंपरा के अनुसार वेद को सृष्टि के प्रारंभ से ही उत्पन्न हुआ माना जाता है।वारनेकर एक उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं,की कुम्हार मिट्टी का बर्तन गढ़ता है,किंतु उस बर्तन का निर्माण मानस पटल पर पूर्व में ही हो जाता है। 

फिर भी अगर वेदों की काल गणना करनी ही पड़े तो मैं इसे दो भागों में रखना चाहूंगा।पहला वेद-मंत्रों के दृष्टा ऋषियों द्वारा मंत्र दर्शन का काल और दूसरा इन मंत्रों का संपादन या संकलन काल।

मंत्र दृष्टा ऋषियों में गृतसमद,विश्वामित्र,वामदेव,अत्री,भारद्वाज और वशिष्ठ है। इन 6 ऋषियों एवं उनके वंशजों ने ऋग्वेद के दूसरे,तीसरे,चौथे,पांचवे,छठे और सातवें मंडलों का दर्शन किया था। अन्य मंडलों एवं प्रथम मंडल के कुछ सूक्तों का दर्शन वैवस्वत मनु,शिवि,औसीनारा,प्रतर्दन,मधुछन्दा और देवापि आदि ने किया है। उल्लेखित है कि वैवस्वत मनु से लेकर उनके 95 पीढ़ियों के अनेक ऋषि यों ने मंत्रों का दर्शन किया है।यह भी कहा गया है कि यह कार्य 30-32 पीढ़ियों के बाद से आरंभ हुआ।

इन दोनों तथ्यों को स्वीकार आ जाए तो यह मानना पड़ेगा की वैवस्वत मनु का काल 12 करोड़ 4 लाख 91हजार 101 बी0सी0से शुरू हुआ था अतः वैदिक मंत्रों के दृष्टा ऋषि 12 करोड़ बस पूर्व से ही विन विन भिन्न-भिन्न मंत्रों का दर्शन करते रहे हैं,जो गुरु-शिष्य,पिता-पुत्र परंपरा के आधार पर आगे की पीढ़ियों तक आते रहे। इन ऋषियों का उल्लेख त्रेता काल तक हुआ है, अतः इनका कॉल अगर त्रेता के अंत तक भी मानते हैं तो मंत्रों का दर्शन काल 8लाख67हजार 101 बी0सी0तक चलता रहा मानना होगा।अतः वैदिक मंत्रों का दर्शन काल 12 करोड़ वर्ष पूर्व से 8लाख वर्ष तक माना जाना चाहिए।

इन मंत्रों का भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा जो दर्शन किया गया था।उनके वंशज या शिष्य इसे कंठाग्र करके एक दूसरी पीढ़ी को देते रहे।किंतु द्वापर में कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने इन मंत्रों का संकलन किया।वह असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान थे। उन्होंने वैदिक सूक्तों को संहिता के रूप में संग्रह किया, उनके द्वारा संकलित वैदिक संहितायें चार हैं।

“ऋग्वेद,सामवेद,यजुर्वेद और अथर्ववेद”इनके अतिरिक्त उन्होंने सूत,चारण व मगधो में चली आती हुई राजवंशों की अनुश्रुतियों को भी संकलित किया जो पुराण कहे जाते हैं।जिस प्रकार वेदों में ऋषि वंश की श्रुति संग्रहित है उसी प्रकार पुराणों में राजवंशों की अनुश्रुति संग्रहित है। वेदव्यास का काल अगर महाभारत की समाप्ति तक मानते हैं, और यह स्वीकारते हैं कि महाभारत काल अर्थात द्वापर के अंत तक वैदिक संहिताओं और पुराणों का संकलन हो चुका होगा,तो वैदिक काल गणना के आधार पर इसे 3101 ईशा पूर्व अथवा आज से 5096 वर्ष पूर्व का मानना चाहिए।

पाश्चात्य विद्वानों द्वारा की गई काल गणना के अनुसार महाभारत काल 1400ई0पूर्व में था, इस विचार को भारतीय विद्वान भी न जाने क्यों समर्थन देते चले आ रहे हैं जबकि वैदिक गणना का आधार हमारे पास है साथ ही वैदिक काल गणना के साथ मेल करने पर यह खरी भी उतरती है, जाहिर है कि जानबूझकर पाश्चात्य विद्वानों ने वैदिक काल का निर्धारण गलत किया है, और हमारी भारतीय संस्कृति को विकृत करने का प्रयास किया है

कहने का तात्पर्य यह है कि वेद अनादि काल से कंठस्थ कर अविकृत रखे गए हैं, यह सृष्टि के साथ ही अर्थात प्रथम मनु के काल से ही उदभूत हैं इसकी भाषा संस्कृत है जोकि वेदों की तरह ही प्राचीन है। विद्वान बताते हैं कि वेदों की भाषा कुछ ऐसी है कि इसे बदला नहीं जा सकता।

भारत में जब से अंग्रेजों का आगमन हुआ एक साजिश के तहत वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद का कार्य शुरू हुआ।अनुवाद जानबूझकर ऐसे किए गए कि वेदों के मूल-तत्व,मूल-अर्थ,एवं मूल-भाव को ही जड़ से समाप्त कर दिया गया। प्रस्तुत आलेख का मूल उद्देश्य यह प्रकट करना है कि ऐसी साजिश कब से,किसके द्वारा,और कैसे-कैसे की गई ?