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#independenceday2018: एक ऐसी लड़की जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर, बचाई थी 359 लोगों की जान

15 अगस्त इस दिन की याद आते ही उन शहीदों के प्रति श्रद्धा से मस्तक अपने आप ही झुक जाता है जिन्होंने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपनी आहुति दे देती थी. वहीं उन सैनिकों और उन जाबांज देशभक्तों की भी याद आती है जिन्होने अपनी जान पर खेलकर अपनो की जान बचाई थी. चाहे वो नीरजा भनोट हो या फिर रंजीत कत्याल.स्वतंत्रता दिवस के इस पावन महीने में हम आपको उन जांबाजों की कहानियां सुनाने जा रहे हैं जिनको आपका मन सलाम करने को करेगा…

नीरजा भनोट की कहानी

आपको सोनम कपूर की फिल्म “नीरजा” तो अच्छे से याद होगी. जो एक ऐसी बहादुर लड़की पर बनी थी जिसने 359 लोगों को आतंकियों के चंगुल से बचाया था बिना अपनी जान की परवाह किए. जिसने डर को भी डरने के लिए मजबूर कर दिया. उसके हौसले, जुनून के सामने एक बड़ी घटना ने भी अपने घुटने टेक दिए.

359 लोगों की जान बचाई

23 वर्षीया नीरजा भनोट एक जिन्दादिल लड़की थी, जिसने 359 लोगों को आतंकवादियों के चंगुल से बचाया था. उस वक़्त नीरजा पैन एम एयरलाईन में वरिष्ठ फ्लाइट अटेंडेंट के तौर पर तैनात थी.5 सितम्बर, 1986 यही वो तारीख है, जब नीरजा निःसंकोच, निडरता से अपनी आखिरी सांस तक अपने कर्तव्य के साथ खड़ी रही. 5 सितबंर को पैन एम 73 विमान कराची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर खड़ा था, जहां पाइलट का इंतजार किया जा रहा था.तभी अचानक सुरक्षा गार्ड के वेश में 4 आतंकवादी विमान के अंदर घुस आए और विमान पर कब्जा कर लिया. उस वक़्त विमान में करीब 400 यात्री थे.

विमान को आतंकियों के चंगुल से छुड़वाया

विमान में पायलट न होने के कारण आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव डाला कि वह विमान में पायलट जल्द से जल्द भेजे. लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने इससे इन्कार कर दिया.आतंकवादियों ने तभी नीरजा और विमान में मौजूद बाकी क्रू मेंबर्स को सभी यात्रियों के पासपोर्ट लेने को कहा, ताकि वे किसी अमेरिकन को मारकर पाकिस्तानी सरकार पर दबाव डाल सकें. इस बात से सचेत होकर नीरजा ने विमान में मौजूद अमेरिकन यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर, बाकी सबके पासपोर्ट आंतकियों को दे दिए.

विमान मे नहीं था पायलट 

इसके बाद आंतकियों ने एक ब्रिटिश नागरिक को गनपॉइन्ट पर लिया और विमान के गेट के सामने खड़ा कर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि अगर पायलट नहीं भेजा गया तो वह उसे ज़िन्दा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन नीरजा ने यहां अपनी समझदारी, सूझबूझ दिखाते हुए आतंकियों से बात कर, उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया.जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा था, वैसे-वैसे विमान का ईंधन भी ख़त्म हो रहा था. 17 घंटे बीत चुके थे, नीरजा को अंदाजा था कि ईंधन कभी भी ख़त्म हो सकता है.

आतंकियों ने कर दिया था छलनी

जब चारों तरफ अंधेरा हो गया, नीरजा ने विमान के सभी आपातकालीन दरवाजे खोल दिए.तभी सारे यात्री उन दरवाज़ों से अपनी जान बचाने के लिए कूदने लगे. वहीं दूसरी ओर आतंकियों ने भी अंधेरे में ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी. नीरजा चाहती, तो वह भी बाहर आ सकती थी, लेकिन अभी भी कई यात्री विमान में मौजूद थे. तभी पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान की घेराबंदी कर चुके थे, जिसमें कमांडो ने तीन आतंकियों को मार गिराया.

नीरजा को अशोक चक्र से सम्मानित किया

नीरजा की मौत उस समय हुई, जब वह तीन बच्चों को लेकर आपातकालीन दरवाजे की तरफ जा रही थी, तभी चौथा आतंकी नीरजा के सामने आ गया. तीनों बच्चों को बचाने के लिए नीरजा ने अपनी जान की परवाह नहीं की. उन तीनों को उस आतंकी के चंगुल से बचाया, लेकिन तब तक आतंकी ने कई गोलियों से नीरजा को छलनी कर दिया था.नीरजा के इस अतुल्य साहस की बदौलत उन्हें भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया. तो वहीं पाकिस्तान ने भी नीरजा के साहस को सलामी देते हुए तमगा-ए-इन्सानियत से नवाज़ा.