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राजनीतिक विमर्श में नीतीश कुमार को मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा देखा जाने लगा

2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती नहीं है। अचानक विपक्षी दलों में जान आ गई है और राजनीतिक विमर्श में नीतीश कुमार को मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा देखा जाने लगा है। इस घटना से अति उत्साहित हो रहे भाजपा विरोधी राजनीतिक विश्लेषकों ने तो नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनने और अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा और नरेंद्र मोदी की विदाई के सपने देखने भी शुरू कर दिए हैं। लेकिन इस अति आशावाद के सामने अभी अनेक चुनौतियां हैं और अगर नीतीश कुमार को मोदी को चुनौती देनी है, तो उन्हें उन तमाम उलझनों को सुलझाना होगा, जो अब आने वाले दिनों में उनके सामने आने वाली हैं।

उधर जिस तरह पार्थ चटर्जी प्रकरण के बाद ममता बनर्जी भाजपा और मोदी को लेकर नरम हुई हैं, और दिल्ली में शराब नीति को लेकर पड़े सीबीआई छापों के बाद अरविंद केजरीवाल 2024 में नरेंद्र मोदी के मुकाबले खुद को घोषित कर रहे हैं, उससे विपक्षी जमात में भ्रम और बढ़ रहा है। नीतीश कुमार को सबसे पहले 2024 लोकसभा चुनावों तक बिहार में महागठबंधन और उसकी सरकार को न सिर्फ एकजुट बनाए रखना होगा, बल्कि अपने कामकाज से उन तमाम आरोपों और आशंकाओं को भी गलत साबित करना होगा, जो विरोधियों खासकर भाजपा द्वारा लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही उन्हें कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने और उनके बीच अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिए दोनों मोर्चों पर काम करना होगा। जहां कांग्रेस अभी राहुल गांधी से आगे सोचने को तैयार नहीं दिखती, वहीं ममता बनर्जी को साधना भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है। शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, स्टालिन, चंद्रशेखर राव, और वामदलों के साथ-साथ नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू और मायावती को क्या नीतीश कुमार किसी बड़े विपक्षी मोर्चे का हिस्सा बना सकेंगे। यह एक बड़ा सवाल है। अगर नीतीश कुमार इन सब चुनौतियों से निपट सकते हैं तो निश्चित रूप से वह 2024 में भाजपा के सामने एक चुनौती पेश कर सकेंगे। इसके लिए उन्हें अपने सियासी कौशल और उदार मन से काम लेना होगा और केसी त्यागी जैसे अपने किसी पुराने सिपहसालार को दिल्ली में राजनीतिक मेल मिलाप की जिम्मेदारी देनी होगी।