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दिव्यांगता के मामले में सेना की विभिन्न यूनिटें एक दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी न थोपें: विजय पाण्डेय

लखनऊ दिनांक:04.10.2021

प्रेस-नोट
दिव्यांगता पेंशन के मामले में विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा सिर्फ यह कह देना की बीमारी सेना से संबंधित नहीं है, दिव्यांगता पेंशन नकारने का आधार नहीं हो सकता, क्योकि इससे संपूर्ण-सत्य सामने नहीं आता, संदेहास्पद स्थिति का लाभ पीड़ित को ही मिलेगा

लखनऊ, देहरादून के स्थायी निवासी और अस्थायी रूप से लखनऊ में रहने वाले सूबेदार मेजर नारायण सिंह खंडवाल को सेना कोर्ट लखनऊ की खण्डपीठ न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव एवं अभय रघुनाथ कार्वे ने सोलह वर्ष बाद पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन देने का आदेश भारत सरकार को दिया l याची के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय और गिरीश तिवारी रहे l मामला यह था कि याची 1968 में पहाड़ी युद्ध में महारत रखने वाली सेना गोरखा रायफल में भर्ती हुआ और अट्ठाईस वर्ष देश की निष्ठापूर्वक सेवा करने के बाद डिस्चार्ज हुआ, उसके बाद 1998 में दुबारा डिफेंस सिक्योरिटी कार्प्स में भर्ती हुआ और सात वर्ष की नौकरी के बाद वहां से ब्लड सुगर की बीमारी के कारण मेडिकल आधार पर बगैर दिव्यांगता पेंशन दिए सेना द्वारा डिस्चार्ज कर दिया गया l
डिस्चार्ज होने के बाद याची द्वारा पी०सी०डी०ए० (पेंशन), एड्जुटेंट जनरल ब्रांच, नई दिल्ली और रक्षा-सचिव भारत सरकार के सामने अपील किया, लेकिन उसे सिरे से यह कहत्ते हुए ख़ारिज ख़ारिज कर दिया गया कि, ब्लड शुगर एक आनुवांशिक बीमारी है इसलिए उसके लिए सेना उत्तरदायी नहीं नहीं है, दूसरे याची पेंशन योग्य सर्विस पूरी कर चुका है इसलिए उसको दिव्यांगता पेंशन नहीं दी सकती l


उसके बाद याची ने सेना कोर्ट लखनऊ में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय और गिरीश तिवारी के माध्यम से ओरिजनल अप्लिकेशन नंबर 131/2021 दायर किया जिसमें उसके अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यदि यह मामला पहले ही निर्धारित किया जा चुका है तो सरकार के पास याची की दिव्यांगता पेंशन नकारने का कोई औचित्य नहीं है, दोनों पक्षों की दलील और दस्तावेजों में उपलब्ध विशेषज्ञ चिकित्सकों की ओपिनियन का अवलोकन करने के बाद खण्ड-पीठ ने कहा कि सिर्फ यह कह देना की बीमारी सैन्य-सेवा से संबंधित नहीं है, इसलिए याची को लाभ नहीं दिया जा सकता, यह संपूर्ण सत्य नहीं हो सकता, इसलिए खण्ड-पीठ इससे सहमत नहीं हो सकती, क्योंकि दिव्यांगता अट्ठाईस वर्ष की नौकरी के बाद आयी है, इसलिए यदि इस बिंदु पर कोई भी संदेह उत्त्पन्न होता है तो उसका लाभ याची को ही मिलेगा, न कि सरकार को, इसलिए याची पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन पाने का हकदार है, न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव एवं अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने सरकार द्वारा पारित सभी आदेश निरस्त करते हुए, भारत सरकार को निर्देशित किया कि चार महीने के अंदर आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए अन्यथा आठ प्रतिशत व्याज भी याची को देना होगा l