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अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार के वकील ने जज को ऐसा क्या कह दिया कि मांगनी पड़ी माफी

 

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले पर गुरुवार को 27वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन ने जिरह की। उन्होंने कहा कि 1949 के मुकदमे के बाद सभी गवाह सामने आए। लोग रेलिंग तक क्यों जाते थे? इस बारे में किसी को नहीं पता। एक गवाह ने कहा था कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों वहां पर पूजा करते थे, मैंने किसी किताब में यह नहीं पढ़ा कि वह कब से एक साथ पूजा कर रहे थे? धवन ने एक हिंदू पक्ष के गवाह की गवाही के बारे में बताया कि गर्भगृह में 1939 में वहां पर मूर्ति नहीं थी वहां पर बस एक फोटो थी। मूर्ति और गर्भगृह की पूजा का कोई सबूत नहीं है। शुक्रवार को भी राजीव धवन जिरह करेंगे।

राजीव धवन ने सुनवायी के दौरान सवाल पूछ रहे जज के लहज़े को आक्रामक कहा हालांकि फिर माफी भी मांगी। जस्टिस अशोक भूषण ने 1934 में इमारत के भीतर मूर्ति देखने का दावा करने वाले गवाह पर सवाल किया था। धवन का कहना था कि अविश्वसनीय बयान पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। कोर्ट का कहना था कि चर्चा हर बात की हो सकती है, बात को देखना कैसे है यह कोर्ट का काम है। जस्टिस भूषण ने राजीव धवन से राममूरत तिवारी के गवाह के बयान को पढ़ने को कहा।

तिवारी ने हाईकोर्ट में बयान दिया था कि 1935 में वह 13 साल की उम्र में पहली बार विवादित इमारत में गए थे। वहां उन्होंने इमारत के भीतर एक मूर्ति और भगवान की तस्वीर देखी थी। लेकिन राजीव धवन बयान पढ़ना नहीं चाहते थे। इस पर धवन ने कोर्ट से कहा कि आपका लहज़ा आक्रामक है। मैं इससे डर गया। राजीव धवन के रवैये पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और वकील वैद्यनाथन ने ऐतराज़ जताया। इसके बाद धवन ने तुरंत कोर्ट से माफी मांगी।

उल्लेखनीय है कि राम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले की सुनवायी चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच कर रही है। बेंच के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं। मामले की सुनवायी के 27वें दिन चीफ जस्टिस की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण कोर्ट लंच के बाद सुनवाई के लिए नहीं बैठी। मामले की सुनवायी शुक्रवार को भी जारी रहेगी।

सुनवाई की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को चिट्ठी लिखकर देने वाले तमिलनाडु के प्रोफेसर षणमुगम के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दिया। दरअसल, प्रोफेसर ने राजीव धवन को चिट्ठी लिखे जाने पर खेद जताया। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को नोटिस भेजा था। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हमें इनके लिए कोई सज़ा नहीं चाहिए। हम सिर्फ इस बात को आपके नोटिस में लाना चाहते थे। हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस देश में ऐसा नहीं होना चाहिए। हम इस मामले को बंद करना चाहते हैं।
सिब्बल ने कहा कि हम सिर्फ ये चाहते हैं कि पूरे देश में ये मैसेज जाए कि ऐसा नहीं होना चाहिए। हम इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेना चाहते हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रोफेसर के वकील से कहा कि आप 88 वर्ष के हैं। आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस शर्त पर हम केस बन्द कर रहे हैं और कोई एक्शन नहीं ले रहे कि दोबारा ऐसा न हो।