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महाराष्ट्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, 30 घंटे में साबित करना होगा बहुमत

 

महाराष्ट्र विधानसभा में बुधवार को फ्लोर टेस्ट कराने का सुप्रीम आदेश

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। देवेंद्र फडणवीस की सरकार को कल यानी बुधवार शाम पांच बजे तक बहुमत साबित करना होगा। महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराया जाएगा, जिसका लाइव प्रसारण होगा। प्रोटेम स्पीकर ही सभी विधायकों को शपथ दिलाएंगे। 27 नवंबर की शाम पांच बजे तक फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। जस्टिस एनवी रमना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी पक्षों को संवैधानिक नैतिकता का ख्याल रखना चाहिए।

कोर्ट ने पिछले 25 नवम्बर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 25 नवम्बर को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल के सचिव की लिखी चिट्ठी और दस्तावेज़ सुप्रीम कोर्ट को दिए थे, जिसमें विधायकों के हस्ताक्षर वाला सूची का समर्थन पत्र भी था।

तुषार मेहता ने कहा था कि 24 अक्टूबर से 9 नवम्बर तक राज्यपाल सरकार बनाने के लिए पार्टियों का इंतजार कर रहे थे कि वो दावा करें। सबसे पहले राज्यपाल ने भाजपा को बुलाया, फिर शिवसेना, फिर एनसीपी लेकिन कोई नही आया। 12 नवम्बर को राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

मेहता ने कहा था कि अजित पवार ने 54 विधायकों के समर्थन पत्र दिया था, जिसे गवर्नर के पास दिया गया था। इस पत्र में पवार ने खुद को एनसीपी विधायक दल का नेता बताया था। तुषार मेहता ने कोर्ट को राज्यपाल का फडणवीस को शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित करने वाला पत्र कोर्ट को सौंपा था। इसके मुताबिक राज्यपाल को भरोसा था कि फडणवीस के पास 170 विधायकों का समर्थन हासिल था और इनमे सभी 54 एनसीपी विधायक शामिल थे। मेहता ने कहा था कि राज्यपाल के पास समर्थन पत्र था तो उन्होंने सरकार बनाने के लिए बुलाया। ये राज्यपाल का काम नहीं है कि वो जांच कराए कि इनके पास बहुमत कैसे आया?

भाजपा की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा था कि एक पवार हमारे साथ हैं और दूसरे ने इस कोर्ट में याचिका दायर की है। ये उनका पारिवारिक मामला है, इससे हमें कोई लेना देना नहीं है। ये मामला कर्नाटक मामले से बिल्कुल अलग है। तब सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सरकार के पास बहुमत है या नही, इसका पता केवल फ्लोर टेस्ट यानि बहुमत परीक्षण से चल सकता है।

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि विधायकों के पत्र में यह कहीं नहीं है कि वे किसे समर्थन कर रहे हैं। तब रोहतगी ने कहा था कि समर्थन का पत्र संलग्न है। रोहतगी ने कहा कि मेरा सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश जारी कर सकता है, इस पर मेरा जवाब है कि नहीं। रोहतगी ने कहा था कि अब जो होगा विधानसभा के फ्लोर पर होगा लेकिन राज्यपाल पर आरोप क्यों? उन्होंने भी तो फ्लोर टेस्ट के लिए ही कहा है। फ्लोर टेस्ट कब होगा, यह तय करने का अधिकार राज्यपाल को है। इसे कोर्ट को तय नहीं करना चाहिए।

अजित पवार की ओर से मनिंदर सिंह ने कहा था कि 22 नवम्बर को मैंने एनसीपी विधायक दल के नेता के रूप में फैसला लिया था। उस समय उसके उलट कोई फैसला नहीं हुआ था।

शिवसेना की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि 22 नवम्बर को शाम 7 बजे गठबंधन की घोषणा की गई, ऐसे में राज्यपाल 24 घंटे इंतजार नहीं कर सकते थे? हमारे पास 154 विधायकों का हलफनामा है। हमारे पास इस बात का मूल हलफनामा है कि अजीत पवार को एनसीपी को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं था। वो एनसीपी का हिस्सा नहीं थे।

सिब्बल ने कहा था कि राज्यपाल के फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है और ये बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था। तुषार मेहता ने कहा था कि संवैधानिक सवाल पर आदेश देने की जरूरत नहीं है। सवाल हॉर्स ट्रेडिंग का नहीं है, सवाल स्थिरता का है।