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मोहन भागवत से मौलाना कलीमुद्दीन की मुलाकात पर मुस्लिम समाज में चर्चा तेज

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत से मुंबई में एक प्रोग्राम के दौरान मौलाना कलीमुद्दीन सिद्दीकी की मुलाकात की खबरें इन दिनों काफी चर्चा में है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात के बाद मोहन भागवत की किसी बड़े मुस्लिम धर्मगुरु से यह दूसरी मुलाकात है।

इस मुलाकात के बाद दोनों तरफ से किसी भी तरह की कोई जानकारी मीडिया को नहीं दी गई है, लेकिन मुस्लिम समाज में इस मुलाकात को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है और इसके कई मायने भी निकाले जा रहे हैं।

मौलाना कलीमुद्दीन सिद्दीकी का संबंध मुजफ्फरनगर जिला के फुलत शरीफ से है। यह वही सरजमीन है, जहां शाह वालीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी के साथ-साथ बहुत सारे मुस्लिम विद्वान पैदा हुए। काबिलेजिक्र है कि मौलाना कलीमुद्दीन सिद्दीकी का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। वे सिर्फ मुसलमानों के सामाजिक मुद्दों को लेकर के जद्दोजहद करते रहते हैं और इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए काम करते हैं।
मौलाना कलीमुद्दीन और भागवत की मुलाकात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानों के प्रति आने वाली नरमी और सोच में परिवर्तन के तौर पर देखा जा रहा है। सरसंघचालक मोहन भागवत के जरिए मुसलमानों के संबंध में पिछले कुछ दिनों में दिए गए बयानों को देखा जाए तो इसमें कोई शक नहीं है कि संघ मुसलमानों के प्रति काफी नरम रवैया अपना रहा हैं।

सरसंघचालक ने पिछले दिनों मुसलमानों को लेकर कई ऐसे बयान दिए हैं, जिसको लेकर मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में उनकी काफी सराहना की जा रही है। हिंदुओं और मुसलमानों के डीएनए को एक बताने, मॉब लिंचिंग की निंदा करने और मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने वालों को करारा जवाब देने जैसे कई बयान हैं। संघ की सोच में आने वाले परिवर्तनों को सामने रखकर ही शायद मौलाना ने भागवत से मुलाकात करने का फैसला किया है।

उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत ने पिछले दिनों अपने एक भाषण में मुस्लिम बुद्धिजीवियों से आह्वान किया था कि वे मुसलमानो में कट्टरपंथी सोच रखने वाले लोगों को समझाने का काम करें। उनका कहना था कि मुस्लिम समाज में व्याप्त कट्टरता को समाप्त करने के लिए बुद्धिजीवियों को अपना रोल अदा करना चाहिए। भागवत के इस बयान के बाद मौलाना की मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
आने वाले दिनों में इस मुलाकात के क्या नतीजे निकलते हैं, इस बारे में कहना अभी उचित नहीं है। लेकिन अगर मौलाना चाहेंगे तो वे इस मुलाकात के बारे में मुस्लिम समाज से बात कर आरएसएस के प्रति नरम रवैया के बारे में चर्चा करके माहौल को साजगार बना सकते हैं।

मौलाना कलीमुद्दीन सिद्दीकी का मुसलमानों पर काफी अच्छा प्रभाव है। उनकी बातें मुसलमानों में समझी और मानी जाती हैं। इसके अलावा विदेशों में भी खासतौर से मुस्लिम देशों में भी मौलाना को काफी मान-सम्मान दिया जाता है और वहां पर भी उनकी बातों को सुना जाता है। मौलाना ने इससे पहले पूर्व सरसंघचालक केसी सुदर्शन से भी मुलाकात की थी।

सुदर्शन कुरान शरीफ से कुछ आयतों को निकाले जाने की बात करते थे, लेकिन जब मौलाना की उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने केसी सुदर्शन को कुरान शरीफ के बारे में बताया और अध्ययन करने की भी सलाह दी थी। इसके बाद सुदर्शन कुरान पर टिप्पणी करने से बचने लगे थे।

मौलाना से जुड़े कुछ करीबी लोगों का मानना है कि मौलाना ने भागवत से मुलाकात के दौरान उनको इस्लाम की शिक्षाओं से अवगत कराया होगा और यह बताया होगा कि इस्लाम का जो कट्टरपंथी चेहरा दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है, वह सही नहीं है। बल्कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है और इसकी वजह से किसी अन्य धर्म को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है।

मौलाना के इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने का तरीका बहुत ही सादा है। उनके ऊपर कभी भी इस्लाम धर्म अपनाने के लिए किसी भी व्यक्ति ने जोर-जबरदस्ती करने या लालच देने का आरोप अभी तक नहीं लगाया है। मौलाना जाकिर नायक के तरीके से बिल्कुल भिन्न तरीका अपनाते हैं और सीधी-सादी जबान में लोगों से बात करते हैं। उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। शायद इसीलिए उनका मान-सम्मान बहुत ज्यादा जाता है।

मौलाना का परिवार काफी पढ़ा लिखा है। खुद मौलाना ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीएससी किया था और उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त किए थे, मगर उन्होंने इसके बजाए धर्म प्रचार के रास्ते को अपनाया। उनकी पत्नी काफी पढ़ी-लिखी हैं और उन्होंने कुरान शरीफ को हिफ्ज (कंठस्थ) किया हुआ है। मौलाना मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मौलाना अली मियां नदवी से काफी प्रभावित थे। अली मियां नदवी के ही कहने पर उन्होंने इस रास्ते पर चलना शुरू किया।