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डिफाल्टर कम्पनियों के निदेशकों की सूची रद्द करने के खिलाफ हाईकोर्ट का जवाब तलब 

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबन्धित डिफाल्टर कम्पनियों के निदेशकों की सूची को रद्द करने तथा अन्य कम्पनियों के डायरेक्टर बनने पर रोक लगाने के खिलाफ याचिकाओं पर भारत सरकार व कार्पोरेट कम्पनियों के निबन्धक से जवाब मांगा है। याचिकाओं को सुनवाई के लिए 7 अगस्त को पेश करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने मनोरमा गुप्ता व सैकड़ों अन्य याचिकाओं पर दिया है। याची अधिवक्ता ने केंद्र सरकार द्वारा जवाब न दाखिल करने पर कोर्ट का ध्यान खींचा तो कोर्ट ने भारत सरकार को याचिकाओं पर तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने समय दिया है। मालूम हो कि कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने 209032 डिफाल्टर कम्पनियों का पंजीकरण निरस्त करने की कार्यवाही की और इनके बैंक खाते सीज कर दिए।
केंद्र सरकार ने 106578 निदेशकों को 12 सितम्बर 2017 को अयोग्य घोषित कर दिया। ये वे कम्पनियां हैं जिन्होंने पिछले तीन वर्षों के वार्षिक रिटर्न नहीं जमा किये थे। इन कम्पनियों के निदेशकों को 5 साल के लिए दूसरी कम्पनियों का निदेशक बनने पर रोक लगा दी गई है। भारत में 13 लाख कम्पनियां पंजीकृत हैं। फर्जी कम्पनियों के बन्द होने के बाद इस समय लगभग 11 लाख कम्पनियां एक्टिव हैं। बन्द कम्पनियों के निदेशकों के दूसरी कम्पनी का निदेशक बनने पर लगी रोक को व्यवसाय के अधिकार के खिलाफ करार देते हुए हटाये जाने की मांग की गयी है।