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साल के इन तीन महीनों में दोगुनी हो जाती है मां बनने की संभावना

 

लखनऊ। विवाह के बाद नारी जीवन के सबसे अद्भुत क्षण वे होते हैं, जब वह एक नन्हें-मुन्ने के अपने गर्भ में आगमन का एहसास करती है। नन्हें शिशु की हरकत वह अपने गर्भ में महसूस करती है और मां बनने के सुखद एहसास से पुलकित हो उठती है। आप भी बच्चा प्लान कर रहे हैं आप के लिए अच्छी खबर है। गर्भधारण करने के लिए साल के तीन महीने बेहद खास होते हैं। इन तीन महीनों में मां बनने की संभावना दोगुनी हो जाती है।

लखनऊ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रुचि खन्ना का कहना है कि आम तौर पर गर्मियों को टैनिंग, छुट्टियों और लंबे समय तक धूप की मौजूदगी के लिए जाना जाता है, लेकिन इनफर्निलिटी की समस्या से जूझ रही महिलाओं के लिए जून, जुलाई और अगस्त के महीने कुछ खास होते हैं, इस दौरान उन्हें इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) साइकिल दोहराने का एक और सुनहरा अवसर मिल जाता है।

डॉ. रुचि के अनुसार विटामिन डी के पर्याप्त स्तर से संपन्न जो महिलाएं आईवीएफ उपचार कराती हैं, उनमें उच्च क्वालिटी के भ्रूण निर्मित होने की संभावना अधिक रहती है और उनके गर्भधारण की संभावना भी दोगुनी हो जाती है। अध्ययन से भी संकेत मिलता है कि विटामिन डी का निम्न स्तर इनफर्टिलिटी का कारण बनते हैं। यह भी पाया गया है कि जो महिलाएं आईवीएफ साइकिल शुरू करने से पहले अधिक समय तक धूप में रहती हैं, उनमें जन्म दर और ट्रीटमेंट का स्तर भी सुधर जाता है जबकि अंडाणु अच्छी तरह परिपक्व हो जाता है।

इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. सागरिका अग्रवाल का कहना है “नींद के तौर-तरीकों के लिए मेलाटोनिन हार्मोन जिम्मेदार होता है जिस कारण गर्मियों में महिलाओं के मां बनने की संभावना अधिक हो जाती है। मेलाटोनिन न सिर्फ सोने और टहलने के तौर-तरीके निर्धारित करता है, बल्कि महिलाओं की फर्टिलिटी को भी बढ़ाता है। यह हार्मोन गर्मी के मौसम में महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सीधे तौर पर प्रजनन टिश्यू को सक्रिय बनाता है। इसका यह भी मतलब होता है कि गर्मियों में पनपने वाले भ्रूण को पहली सर्दी का सामना करने से पहले छह से आठ महीने का वक्त मिल जाएगा।”
आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान महिलाओं को अधिक गोनाडोट्रोफिन हार्मोन की जरूरत पड़ती है, जिसका इस्तेमाल सर्दियों के दौरान अंडाणु निर्माण के लिए ओवरी को उत्प्रेरित करने के लिए किया जाता है। लेकिन गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में प्राकृतिक रोशनी कम होने के कारण आईवीएफ ट्रीटमेंट के सिर्फ 18 फीसदी मामले ही सफल हो पाते हैं।