जिंदगी में अच्छे और बुरे पल आते हैं। कभी आप प्रसिद्धि पाते हैं तो कभी उतार का सामना करते हैं। दोनों ही तरह की स्थितियों में आपको संयत रहना चाहिए।
पतझड़ के मौसम में जब आप किसी पेड़ को बिना पत्तों के खड़ा देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे इस पेड़ से उसका सबकुछ छिन गया है। इसी पेड़ पर वसंत में नई कोंपलें फूटती हैं और फिर बहार आती है। जब ग्रीष्म का मौसम आता है तो पेड़ पर नई पत्तियां आ जाती हैं।
अलग-अलग तरह की परिस्थितियों में एक वृक्ष लगातार संयत बना रहता है। वह मौसमों के बीच से गुजरता चला जाता है। प्रतिकूलताओं के बीच पेड़ अपनी जड़ों से अपना रिश्ता बनाए रखता है। पतझड़ में पेड़ के पत्ते हल्के लाल, केसरिया, पीले या सुनहरे हो जाते हैं।
पतझड़ में भले ही पत्तियों का रंग बदल जाए लेकिन पेड़ अपना स्वभाव नहीं बदलता। आंधी, तूफान और बरसात में भी एक पेड़ अपनी जिम्मेदारियां निभाता रहता है। इस पेड़ के नीचे जीवन के रंग भी बदलते रहते हैं। कभी इसके नीचे छोटे बच्चे अपना खेल खेलते हैं तो कुछ समय बाद वे गुड्डे-गुड़ियों का खेला रचाते हैं।
फिर बच्चों के माता-पिता इसी पेड़ पर उनके लिए झूला बांध देते हैं। बच्चे गर्मियों की दुपहरी में इस पेड़ की छांह में बैठकर पढ़ाई पूरी करते हैं। इस तरह पेड़ जीवन के अच्छे और बुरे दोनों पलों का साक्षी होता है।
पीढ़ियां आती हैं और जाती हैं लेकिन पेड़ अपना धर्म निभाता रहता है। वह अपना काम कभी नहीं छोड़ता। यह पेड़ कभी भेदभाव नहीं करता। उसके पास किसी भी जाति का व्यक्ति क्यों न चला जाए वह अपनी छाया से सभी को राहत देता है।
यह पेड़ उन सभी को शिक्षा देता है जो आध्यात्मिक राह पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। इस रास्ते पर बढ़ते हुए सफलता हमारे दिमाग में जगह बनाने लगती है लेकिन हमें फिर भी ध्यान में बने रहना चाहिए। हमें पेड़ की तरह किन्हीं भी परिस्थितियों से प्रभावित हुए अपना काम करते रहना चाहिए।
मेडिटेशन या ध्यान हमें अपने भीतर की ऊर्जा और प्रकाश से रूबरू होने का मौका देता है। हमारे दिमाग में उठने वाले तरह-तरह के विचार इस प्रकाश की तरफ ले जाने वाली राह की बाधा है। हमें उन व्यवधानों से बचना चाहिए।
अगर हम इस पेड़ की तरह जीना सीख लें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास तरह-तरह के मौसम आते और जाते रहेंगे लेकिन जड़ों से यानी हमारे मूल्यों से हमारा रिश्ता टूटेगा नहीं।
हम बड़े होते जाएंगे लेकिन अपने भीतर के प्रकाश और आवाज से हमारा रिश्ता हमेशा कायम रहेगा। हमारे जीवन में किसी भी तरह की स्थितियां क्यों न आ जाएं हमारे अपने भीतर की आवाज से संवाद टूटेगा नहीं।
जीवन में आने वाली कठिनाइयां ही नहीं बल्कि हम रोजमर्रा की चीजों से भी घबरा जाते हैं। डर जाते हैं। एक दिन हम सौभाग्य का आनंद लेते हैं लेकिन जैसे ही दुर्भाग्य हमें नजर आता है तो हमारे भीतर चिंता पैदा हो जाती है। यह जीवन में होता है कि कभी हम अच्छा काम करते हैं और प्रमोशन वगैरह हमें मिलता है लेकिन कभी हमारी नौकरी मुश्किल में भी आ जाती है।
लेकिन इन दोनों ही तरह की स्थितियों में हमें एक-समान रहना चाहिए। जीवन में किसी भी तरह का हिचकोला क्यों न आए हमें घबराना नहीं चाहिए। हमें अपने भीतर की आवाज और प्रकाश से जुड़े रहना चाहिए।
नाम और प्रसिद्धि के रास्ते में तो बहुत उतार-चढ़ाव आते ही हैं। किसी दिन अखबार में हमारी तस्वीर छपती है कि हमने फलां अवॉर्ड जीत लिया है या हमारी सेवाओं की तारीफ होती है या हम किसी खेल में चैंपियन हो जाते हैं तो अगले ही दिन किसी दुर्घटना के कारण भी हमारी चर्चा में रहते हैं।
पलक झपकते ही हम अच्छे दिनों से बुरे दिनों की जकड़ में पहुंच जाते हैं। हमें लगातार अप्रभावित बने रहना चाहिए और हमारा ध्यान अपने भीतर की ऊर्जा पर ही लगाना चाहिए।
हम अपने दिमाग के कारण विभिन्ना तरह की स्थितियों में फंसते हैं। जब भी किसी स्थिति में फंसने के बाद हमें राह नजर नहीं आती है तो हम तरह-तरह के करतबों में लग जाते हैं।
हम सोचते हैं कि कोई व्यक्ति हमारी मदद कर देगा या फिर कोई चमत्कार हो जाएगा और हम इस स्थिति से बाहर आ जाएंगे। जितना ज्यादा हम सोचते जाते हैं हमारी चिढ़ और खीझ बढ़ती जाती है। समय के साथ यह खीझ बढ़ती जाती है।
धीरे-धीरे हम सही तस्वीर देख भी नहीं पाते हैं। तब यह संभव है कि हम गलत रास्ता चुन लें और गलतफहमियों में पड़ जाएं। हमें तो इस बात का प्रयास करना चाहिए कि जीवन के उतार-चढ़ावों में हम पेड़ की तरह संयत बने रहेंगे। हम अपना काम करते रहेंगे क्योंकि मौसमों का आना-जाना तो लगा ही रहेगा। हमें कभी भी अपना रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए।