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बाबरी विध्वंस के नायकों ने भाजपा को सींचा था अपने खून से, आज हैं गायब

 

छह दिसम्बर 1992, यह भारतीय इतिहास का वह दिन है, जिसने भारतीय जनता पार्टी को संजीवनी देने का काम किया। आज की भाजपा जिस ट्रैक पर चलती दिखाई दे रही है, यह बाबरी विध्वंस के नायकों की ही देन है। छह अप्रैल 1980 को बनी भारतीय जनता पार्टी ने 12 साल बाद बाबरी विध्वंस का ऐसा फायदा उठाया कि बाद के सालों में पार्टी ने देश के कई राज्यों और केंद्र में चार बार अपनी सरकार बनाई।

बाबरी विध्वंस के 27 साल होने के बाद भी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा राम मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़ती दिखाई दी। बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी को राम मंदिर आंदोलन से एक अलग चमक मिली थी। जब भाजपा ने जब अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था तो मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी।

लेकिन, राम मंदिर आंदोलन के रास्ते साल 1989 के चुनाव में 9 साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी दो से बढ़कर 85 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा ने साल 1992 में बाबरी विध्वंस में कई नायक बनाए। बाद के सालों में इन नायकों ने अपने खून और पसीने से पार्टी को जवान किया। आज यह पार्टी काफी बड़ी हो गई है।

हालांकि जिन नायकों ने पार्टी को जवान कर बड़ा किया, बाबरी विध्वंस के 27 साल बाद वही ज्यादातर नायक पार्टी से साइडलाइन कर दिए गए हैं। इन नायकों में कुछ ऐसे भी नाम हैं जिन्होंने पार्टी के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमा भारती आदि ऐसे नाम हैं जो आज नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने बौने हो गए हैं या कर दिए गए हैं।

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को बीजेपी ने आज मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया है। वहीं कल्याण सिंह को पार्टी ने राज्यपाल बनाकर उनका वजूद लगभग कम कर दिया है। आडवाणी ने साल 1990 में राम मंदिर के पक्ष में देश में माहौल बनाया था। सोमनाथ से अयोध्या के लिए उनकी रथ यात्रा से आंदोलन को धार मिली थी।

उनके आंदोलन के ही कारण देश के कई शहरों और गांवों से लोग अयोध्या में कारसेवा करने के लिए पहुंचे थे। तब देश भर में ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा गूंजा था। आडवाणी उस दौर में सबसे बड़े हिंदुत्व का चेहरा माने जाते थे। बाबरी विध्वंस के दौरान आडवाणी अयोध्या में ही थे, हालांकि आज वह पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में हैं।

वहीं, बाबरी विध्वंसके समय कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। कारसेवक जब मस्जिद तोड़ रहे थे तो कल्याण सिंह की पुलिस मूकदर्शक बन एक तरह से कारसेवकों को समर्थन दे रही थी। इसके बाद यूपी की कल्याण सरकार को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया था। फिलहाल वह राजस्थान के राज्यपाल बनाकर सक्रिय राजनीति से दूर किये जा चुके हैं।

मुरली मनोहर जोशी आज न सरकार में हैं और न ही उनका कुछ पता है। विनय कटियार और उमा भारती भी कहां गायब हैं उनका भी पता नहीं चल रहा है। बीच-बीच में भले ही ये तीनों नेता सामने आकर कोई बयान दे जाते हैं लेकिन सक्रिय राजनीति से ये लगभग गायब हो चुुके हैं।