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अयोध्या मामला : रामलला के वकील ने जन्मस्थान पर हिंदुओं के दावे को सही ठहराया

नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज आठवें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। रामलला के वकील सी एस वैद्यनाथन ने हाई कोर्ट में हुई गवाहियों के ज़रिए जन्मस्थान पर हिंदुओं के दावे को सही ठहराया। वैद्यनाथन ने कहा कि हिन्दू सैकड़ों साल से लगातार वहां पूजा कर रहे हैं। वहां नमाज होते किसी ने नहीं देखी।

वैद्यनाथन ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की खुदाई में मिले सबूत को कोर्ट के सामने पेश कर मस्जिद से पहले मंदिर होने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत भ्रमण पर आए यात्रियों ने अपनी किताब में उस जगह पर भव्य मंदिर की बात कही है। उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में मंदिर के अवशेष मिले हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी एएसआई की रिपोर्ट को सही माना है। बाबरी मस्जिद के नीचे जो स्ट्रक्चर था, उसकी बनावट, उसमें मिली भगवान की तस्वीरें और मूर्तियों से साबित होता है कि वहां पहले से मंदिर था।

वैद्यनाथन ने कहा कि पहले मुस्लिम पक्ष मंदिर के स्ट्रक्चर को ही मना करता था, लेकिन बाद में वो कहने लगे कि स्ट्रक्चर तो था लेकिन वो एक इस्लामिक स्ट्रक्चर की तरह था। वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद गिरने के बाद एक पत्थर के स्लैब मिले जिनमें 12वीं या 13वीं शताब्दी में लिखे एक शिलालेख शामिल हैं। शिलालेख थोड़ा क्षतिग्रस्त है और अंतिम दो पंक्तियां भारी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। शिलालेख का मूल पाठ संस्कृत में है।

वैद्यनाथन ने कहा कि शिलालेखों पर उल्लेख साकेता मंडल में बने मंदिर से है और यह राम के जन्म का स्थान है। वैद्यनाथन कहा कि 1114 ईस्वी से1155 ईस्वी तक 12वीं शताब्दी में साकेत मंडला का राजा गोविंदा चंद्रा था। उस वक़्त अयोध्या उसकी राजधानी था, यहां विष्णु हरि का बहुत बडा मंदिर था। वैद्यनाथन ने कहा कि खुदाई में मिले शिलालेख की प्रामाणिकता को कभी चुनौती नहीं दी गयी, सिर्फ शिलालेख के मिलने की जगह को चुनौती दी गई कि क्या वह विवादित जगह से मिला या नही। उन्होंने कहा कि पत्थर की जिस पट्टी पर संस्कृत का लेख लिखा है, उसे विवादित ढांचा विध्वंस के समय एक पत्रकार ने गिरते हुए देखा था। इसमें साकेत के राजा गोविंद चंद्र का नाम है। साथ ही लिखा है कि ये विष्णु मंदिर में लगी थी ।

वैद्यनाथन ने कोर्ट में पांचजन्य के एक रिपोर्टर की रिपोर्ट को पढ़ा और बताया कि जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया तो जो स्लैब वहां से गिर रही थीं, तब रिपोर्टर ने इसकी तस्वीर भी खींची थी। बाद में पुलिस ने उन स्लैब को जब्त कर लिया था। पत्रकार के दावे का क्रास-एग्जामिन किया गया था। उसने बताया कि यह पत्थर दक्षिणी गुंबद की पश्चिमी दीवार पर लगाया गया था, जबकि वह यह नहीं कह सकता था कि वास्तव में वह पत्थर दीवार पर कहां है। वैद्यनाथन ने कहा कि पत्रकार और डॉ रमेश के क्रोस एग्जामिन से किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं होता कि स्लैब विवादित स्थल पर ही मिला।

वैद्यनाथन ने कहा एक हिन्दू गवाह रामनाथ ने बताया कि अयोध्या में हर रोज़ त्यौहार का माहौल रहता है, रोज़ हज़ारों श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, हज़ारों श्रद्धालु पूरी राम जन्मभूमि की परिक्रमा करते हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने वैद्यनाथन से पूछा कि क्या गवाह ने विवादित स्थल पर मुसलमानों के नमाज पढ़ने के बारे में बात की है ? जस्टिस बोब्डे ने वैद्यनाथन से पूछा कि इस संबंध में हिन्दू गवाहों ने क्या कहा है? तब वैद्यनाथन ने कहा कि वह मुस्लिम गवाहों के बयान को पढ़ेंगे । वैद्यनाथन ने कहा की मोहम्मद हाशिम ने गवाही दी थी कि जिस तरह मुसलमानों के लिए मक्का है उसी तरह हिंदुओं के लिए अयोध्या है । वैद्यनाथन ने बताया की एक मुस्लिम गवाह ने कहा था कि अगर मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाया गया होता तो मुस्लिम उसको मस्जिद नहीं मानेंगे, मस्जिद ज़बरदस्ती कब्ज़े में ली गई जमीन पर नहीं बनाई जा सकती है। वैद्यनाथन ने कहा कि एक मुस्लिम गवाह ने कहा कि हिंदुओं का मानना है कि जन्मस्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ और इसलिए उसकी पूजा करते हैं।

वैद्यनाथन ने बताया कि मुस्लिम गवाह मोहम्मद यासीन ने कहा कि उसने मस्जिद में आखिरी बार नमाज़ को पढ़ते समय देखा था कि उन पत्थरों पर कमल और दूसरी तस्वीर है। जस्टिस बोब्डे ने पूछा कि वह गवाह शिया था या सुन्नी? तब वैद्यनाथन ने जवाब दिया कि वह गवाह सुन्नी था। वैद्यनाथन ने 90 साल के रामचंद्र दास और 91 साल के रामनाथ मिश्रा की गवाही का ज़िक्र किया। वैद्यनाथन ने कहा कि इन गवाही से साफ है कि अयोध्या में रामनवमी मनाई जाती रही है। कार्तिक महीने में पंचकोसी-चौदह कोसी परिक्रमा की जाती है। श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान करते थे।

पिछली 16 अगस्त को वैद्यनाथन ने विवादित ज़मीन के नक्शे और फोटोग्राफ कोर्ट को दिखाए थे। वैद्यनाथन ने कहा था कि खुदाई के दौरान मिले खम्भों में श्रीकृष्ण, शिव तांडव, और भगवान राम के बाल रूप की तस्वीर नज़र आती है। वैद्यनाथन ने कहा था कि मस्जिद में जहां तीन गुम्बद बनाए गए थे, वहां बाल रूप में राम की मूर्ति थी। अप्रैल 1950 में विवादित क्षेत्र का निरीक्षण में कई पक्के साक्ष्य मिले थे, जिसमें नक्शे, मूर्तियां, रास्ते और इमारतें शामिल हैं। परिक्रमा मार्ग पर पक्का और कच्चा रास्ता बना था। वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद में मानवीय या जीव जंतुओं की मूर्तियां नहीं हो सकती हैं। मस्जिदें सामूहिक साप्ताहिक और दैनिक प्रार्थना के लिए होती हैं।