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अयोध्या मामला : रामलला के वकील ने कहा-मंदिर को लेकर सबूत पर नहीं किया जा सकता शक

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की 36वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। जिसमें राम लला के वकील ने अदालत को बताया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नीचे एक विशाल संरचना के अस्तित्व लेकर ऐसे सबूत मौजूद हैं जिनपर शक नहीं किया जा सकता है। उत्खनन सामग्री से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यहां पर एक मंदिर मौजूद था।

हिन्दू पक्ष ने अपनी दलीलें आज पूरी कर लीं। हिन्दू पक्ष की ओर से वकील सीएस वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, पीएस नरसिम्हा, सुशील जैन और पीएन मिश्रा ने अपनी दलीलें रखीं।

शुक्रवार (चार अक्टूबर) को मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन अपनी दलीलें देंगे। शुक्रवार को सुनवाई शाम पांच बजे तक चलेगी। पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्ष से चार अक्टूबर को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए कहा था।

अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच कर रही है। बेंच के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे़, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि एएसआई की खुदाई से साफ है कि विवादित ढांचे के नीचे एक विशालकाय मंदिरनुमा ढांचा था। उन्होंने ढांचे के नीचे ईदगाह होने की मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज किया। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि ये कैसे साबित होगा कि ढांचे के नीचे जो खंभों के आधार मिले थे, वो एक ही समय के हैं? वैद्यनाथन ने कहा कि रिपोर्ट में इसका जिक्र है कि 46 खम्भे एक ही समय के हैं। पहले मुस्लिम पक्ष खाली जगह पर मस्जिद निर्माण की बात कह रहा था। अब वो ईदगाह पर मस्जिद निर्माण की बात कह रहे हैं। खुदाई में मिली कमल की आकृति, सर्कुलर श्राइन, परनाला सब वहां मन्दिर की मौजूदगी को साबित करते हैं। ये सब संरचना उत्तर भारतीय मंदिरों की खासियत है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपने जिन सरंचनाओं का जिक्र किया है वो बौद्ध विहार में भी तो हो सकती हैं। आप कैसे ये साबित करेंगे कि वो बौद्ध विहार न होकर मन्दिर ही होगा। वैद्यनाथन ने कहा कि ये जगह हमेशा हिंदुओं के लिए पवित्र रही है। बौद्धधर्मियों के लिए ये कभी अहम नहीं रही। ये साबित करता है कि वहां मंदिर ही था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने वैद्यनाथन से कहा कि आस्था और विश्वास अपने आप में एकदम अलग तर्क है, अलग बहस का विषय है। लेकिन हम यहां पुख्ता सबूतों की बात कर रहे हैं जिनसे मन्दिर की मौजूदगी साबित हो सके। तब वैद्यनाथन ने कहा कि भारत में इतिहास प्राचीन परम्पराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित रहा है। हालांकि इसको दर्ज करने का तरीका पश्चिम से अलग है, पर इसके चलते हमारी प्राचीन सभ्यता पर आधारित इतिहास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने वेद, स्मृति, श्रुति का हवाला दिया। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने उन्हें टोका कि हम वेद, स्मृति, श्रुति इन सब पर सवाल नहीं उठा रहे। हमारा ये कहना है कि हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाहियां ये साबित नहीं कर पाई हैं कि 1934 से पहले वहां नियमित पूजा होती रही है। तब वैद्यनाथन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े को सेवादार की हैसियत से केस दायर करने का कोई अधिकार नहीं, क्योंकि राम जन्मस्थान को ख़ुद न्यायिक व्यक्ति का दर्ज़ा हासिल है।

वैद्यनाथन के बाद पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की ओर से पूर्व सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को भी दस मिनट में अपनी बात रखने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि पुराने दस्तावेजों से ये साफ है कि इस जगह को जन्मस्थान के तौर पर जाना जाता था। रंजीत कुमार के बाद पी नरसिम्हा ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने स्कंद पुराण का हवाला दिया। नरसिम्हा ने कहा कि स्कंद पुराण में भी जन्मस्थान का जिक्र है और हिंदुओं का ये अगाध विश्वास रहा है कि यहां दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुरातत्व विभाग के सबूत भी हमारे विश्वास की ही पुष्टि करते हैं। नरसिम्हा ने कहा कि स्कंद पुराण इस्लाम के उदय से पहले (610 ईस्वी से पहले) का लिखित ग्रंथ है। इसमें राम जन्मस्थान का जन्मस्थान के रूप में जिक्र है। ये दर्शाता है कि इस्लाम के उदय से बहुत पहले से ही इस जगह को हिंदू राम जन्मस्थान के तौर पर मानते रहे हैं। नरसिम्हा के बाद निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि हम विवादित ज़मीन के बाहरी और भीतरी हिस्से को अलग-अलग करके नहीं देख रहे हैं। चूंकि विवाद अंदरूनी हिस्से में जन्मस्थान को लेकर है इसलिए हमने इसको लेकर दावा किया, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम किसी हिस्से को छोड़ रहे हैं।

सुशील जैन ने कहा कि ये दावा कि हिंदुओं ने दिसम्बर 1949 में मस्जिद के अंदर मूर्ति रखी, ग़लत है। मुस्लिम पक्ष ने समस्या बढ़ाने के लिए ये कहानी बनाई है। सुनवाई के दौरान बीस मिनट के अंदर दो हिन्दू पक्षकारों की दलील समेटने के बाद जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि निर्मोही अखाड़े के वकील के पास महज डेढ़ घंटे का समय है तब निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सुनवाई 20-20 मैच की तरह चल रही है। चीफ जस्टिस ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि आप कैसी बातें कर रहे हैं। हमने आपको 4-5 दिन विस्तार से सुना है फिर भी आप इस तरह की बातें कर रहे हैं। आप इसकी तुलना 20-20 मैच से कर रहे हैं। इसके बाद सुशील जैन ने अपने बयान के लिए खेद जताया।