बीमारियां तो तकलीफ देती हीं हैं, ज्यादातर इलाज के लिए भी तकलीफ से हीं गुजरना होता है; चाहे वह कड़वी दवा हो या दवा की सुई! सर्जरी या शल्य चिकित्सा का तो कहना हीं क्या! उसमें तो दर्द, तकलीफ और डर का पारावार हीं नहीं!
शरीर के किसी अन्य भाग में शल्य चिकित्सा तो फिर भी दिल और दिमाग को स्वीकार करने में उतनी तकलीफ नहीं होती है. बात जब सिर के अंदर दिमाग या मस्तिष्क पर शल्य प्रक्रिया की होती है तो डॉक्टर और रोगी दोनों के लिए मुश्किल काफी अलग स्तर पर, काफी ज्यादा रहता है. ऐसे में रोगी के दर्द और चिंता को समाप्त करने के लिए, बेहोशी और शल्य प्रक्रिया के तरीके और तकनीक काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
हाल के वर्षों में शल्य प्रक्रिया की बेहतर समझ और तकनीक के साथ – साथ, बेहोशी के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उपकरणों और दवाओं के बेहतर होने से, सिर और दिमाग की बेहतर शल्य चिकित्सा संभव है. कुछ विशेष दवाओं और तकनीकों की मदद से रोगी को पूरी तरह से बेहोश किये बिना भी उसके दर्द को शून्य किया जा सकता है और साथ में उसके डर और घबराहट को भी नियंत्रित किया सकता है. इस तकनीक की आवश्यकता दिमाग की ऐसे सर्जरी में ज्यादा महसूस होती है जब हम दिमाग के उस हिस्से पर सर्जरी कर रहे होते हैं जो शरीर के महत्वपूर्ण गतिविधि जैसे समझना, बोलना, हाथ या पाँव की गतिविधि को नियंत्रित करता है. ऐसे में दिमाग की सर्जरी के तुरंत बाद रोगी को समझने, बोलने, हाथ या पाँव को हिलाने (हाथ या पाँव की कमजोरी) में तकलीफ हो सकती है जिससे जीवन पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है. तो सर्जरी और बेहोशी के आधुनिक और बेहतर तरीकों की मदद से रोगी के दर्द और चिंता को शून्य करने के प्रक्रिया के दौरान उसके होश को कायम रखने की जरुरत महसूस होती है ताकि उसके समझने, बोलने, हाथ या पाँव को हिलाने की क्षमता का लगातार जांच किया जा सके उस पर निगरानी रखा जा सके और यदि समझने या बोलने के हिस्से पर असर की थोड़ी सी भी शंका होने पर सर्जरी को रोका या बदला जा सके.
इस तकनीक से ख़ास दवाओं का उपयोग कर रोगी के दर्द और घबराहट को नियंत्रित किया जाता है पर उसकी समझ, बोलने की क्षमता – जिसे सामान्य भाषा में हम “होश” कहते हैं; उसे कायम रखा जाता है साथ में अपने शरीर को नियंत्रित करने, हाथ पाँव हिलाने की क्षमता को भी कायम रखा जाता है और उनकी लगातार जांच और निगरानी की जाती है. बेहोशी तथा सर्जरी के इन तकनीकों को सम्मिलित रूप से अंगरेजी में अवेक क्रैनिओटोमी कहते हैं – हिंदी में जागृत मस्तिष्क शल्य क्रिया कहा जाता है.
जब बीमारी का कारण (कोइ गाँठ या घाव या आघात), दिमाग के ऐसे हिस्से के पास होता है जहाँ से समझने – बोलने की क्षमता और हाथ – पाँव का नियंत्रण होता है, तो शल्य चिकित्सा के लिए जागृत मस्तिष्क शल्य क्रिया का उपयोग किया जा सकता है. ऐसे रोगी अक्सर मिर्गी के दौरे या बेहोशी, बोलने में तकलीफ के शिकायत के साथ आते हैं. एम आर आई और ई ई जी में दिमाग के उस हिस्से की स्थिति को देखा जा सकता है. तब चिकित्सकों तथा शल्य चिकित्सा कर्मियों का दल – जिसमें शल्य चिकित्सक और बेहोशी करने वाले चिकित्सक के साथ शल्य गृह के तकनीकी सहायक और सेवक – सेविकाएं शामिल होते हैं, जागृत मस्तिष्क शल्य क्रिया की योजना बनाते हैं. इसके लिए रोगी को पहले बतलाया तथा समझाया जाता है. शल्य क्रिया के दौरान शल्य क्रिया दल के सदस्य रोगी से संवाद स्थापित करते रहते हैं तथा रोगी स्थिति के अनुसार शल्य क्रिया के फैसले लेते रहते हैं. इस तरह सुरक्षित और सम्पूर्ण शल्य क्रिया द्वारा गाँठ या घाव को पूर्णतः या अधिक से अधिक निकाला जाना संभव हो पाता है. ऐसे घाव या बीमारी का श्रोत कई बार एम आर आई में तो दिख जाते हैं (कई बार ठीक से नहीं भी दिखते हैं – सिर्फ ई ई जी से इनके बारे में ज्ञात हो पाता है जो स्पष्ट नहीं होता है) पर सर्जरी के दौरान माइक्रोस्कोप से देखने के बावजूद सामान्य मस्तिष्क पदार्थ और रोग से प्रभावित मस्तिष्क पदार्थ में अंतर करना असंभव रहता है. ऐसे में उपकरणो तथा तकनीकों और विधियों की मदद से एम आर आई और ई ई जी में इंगित मस्तिष्क के रोगी हिस्से को निकालने की कोशिश की जाती है और जरूरी हिस्से को हर हाल में सुरक्षित रखने की कोशिश की जाती है. इसके लिए जागृत मस्तिष्क शल्य चिकित्सा विधि द्वारा रोगी के सहयोग से साहलय चिकित्सा की दिशा तथा सीमा निर्धारित किया जाता है तथा चिकित्सा के कारण होने वाले हानि और क्षति को कम से कम किया जाता है जिससे रोगी को आगे का जीवन जीने में सुविधा होती है तथा संभव असुविधाओं को कम से कम किया जाता है.
पिछले दिनों डॉ मनीष कुमार द्वारका नई दिल्ली में ने मिर्गी के एक रोगी के ईलाज के लिए ऐसे हीं तकनीक का उपयोग किया. वर्षीया रोगी को एकाएक मिर्गी के झटके पड़ने लगे थे. एम् आर आई में दिमाग के बांयी ओर मस्तिष्क के उस भाग में जहाँ से आवाज – बोलने का नियंत्रण और हाथ का नियंत्रण होता है – लगभग उसी के ऊपर – गाँठ था जिसमें रक्त संचार बहुत ज्यादा था. शल्य चिकित्सक और बेहोशी करने वाले चिकित्सक के साथ शल्य चिकित्सा कक्ष के कर्मियों के दल ने तैयारी शुरू किया. रोगी को शल्य चिकित्सा के बारे में समझाया गया ताकि वह सहयोग कर सके. रोगी माता की भक्त थी सो उसे पूरी सर्जरी “जय माता की” की कहते रहने के महत्त्व को समझाया गया और ऐसा नहीं होने की स्थिति में रोगी को पूरी तरह बेहोश करने और शल्य प्रक्रिया को बदलने की योजना को समझाया गया. इस बात के महत्त्व को शल्य क्रिया कक्ष के हर सदस्य को समझना जरूरी है क्यूंकी आपात स्थिति में हर किसी के सहयोग की जरुरत होती है. शल्य क्रिया के प्रारम्भ से हीं रोगी बहुत अच्छा सहयोग किया और शल्य चिकित्सा दल के सभी सदस्य चुस्ती और फुर्ती से काम किये और शल्य क्रिया सफल हुई. मस्तिष्क का रोगी गाँठ पूरी तरह से निकाला गया और रोगी को किसी भी प्रकार की क्षति या हानि नहीं हुआ उसके शरीर की कोइ भी प्रक्रिया बाधित नहीं हुई.
ऐसे चिकित्सा प्रक्रिया में चिकित्सकों के अलावा चिकित्सा दल के बाकी सदस्यों का मिल जुलकर काम करना और रोगी की समझदारी और सहयोग उपयोगी और वांछित है.