देहरादून: दीपों का त्योहार खुशियां मनाने के लिए है, बीमारियों और मुश्किलों को बढ़ाने के लिए नहीं। लेकिन, अगर आप पटाखों का इस्तेमाल करेंगे तो तय है कि परेशानी बढ़ेगी। आतिशबाजी का शौक आपका स्वास्थ्य बिगाड़ सकता है। वहीं उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के गांवों में अलग तरह से दिवाली मनाई जाती है। यहां के गांवों की परंपरा है कि ये लोग बूढ़ी दीपावली मानते हैं। साथ ही यहां के लोग ईको फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं।
जौनसार-बावर में प्रदूषण रहित दिवाली मनाई जाती है। क्षेत्रवासी आतिशबाजी करने के बजाए चीड़ व भीमल की लकड़ी की मशाल जलाकर गांव के पंचायती आंगन में होलियात निकालते हैं। साथ ही ढोल-दमाऊ की थाप पर हारुल के साथ परंपरागत तांदी-नृत्य कर दीपावली का जश्न मनाते हैं।
दिवाली के लिए चल रही है तैयारी
बूढ़ी दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। इस बार गांव वालों ने फैसला किया है कि वह इस परंपरा को तोड़ देंगे। सभी लोग देश के साथ ही 30 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने का निर्णय लिया है।
इन दिनों दिवाली के लिए जोरशोर से तैयारियां चल रही हैं। अपनी अनूठी परपंरा के लिए देश-दुनिया में विख्यात जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार को मनाने का अंदाज निराला है। देशभर में लोग दीपावली का त्योहार एक साथ मनाते हैं, लेकिन यहां इसके ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है।
जौनसार-बावर में पर्यटन नगरी हनोल, अणू, रायगी, मैंद्रथ व हेडसू समेत पांच गांवों के लोग देशवासियों के साथ पिछले कई वर्षों से नई दीपावली मनाते आ रहे हैं। इसके अलावा बावर व देवघार खत समेत क्षेत्र के करीब 50 गांवों के लोग भी पिछले चार-पांच साल से देशवासियों के साथ ही दीपावली मना रहे हैं। जबकि, जौनसार, कांडोई-बोंदूर व कांडोई-भरम क्षेत्र के दो सौ से ज्यादा गांवों में दीपावली के ठीक एक माह बाद दीपावली मनाने का रिवाज है। इनमें खत बाना के लोग भी शामिल हैं।