Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

धन-धान्य की पूर्ति करती षट्तिला एकादशी

हिंदू धर्म के वेदों, पुराणों और शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का अति महत्वपूर्ण अभिप्राय है और हिंदू पंचांग के मतानुसार प्रन्येक वर्स में 26 एकादशी पड़ती है। जबकि मलमास या अधिमास में इनकी संख्या बढ़कर 28 हो जाती है। हर महीने में 2 एकादशी पड़ती है। हरेक का अपना महत्व है। पद्मपुराण के अनुसार माघ माह, कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी का खास महत्व है।

षट्तिला एकादशी का महात्म्य पुराणों में वर्णित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल जल, तिल जलपात्र और तिल पकवानों का इस दिन विशेष महत्व है। इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराएं। तिल मिश्रित पदार्थ स्वयं खाएं और ब्राह्मणों को भी खिलाएं।

इस दिन छ: प्रकार के तिल प्रयोग होने के कारण इसे षट्तिला एकादशी के नाम से पुकारते हैं। इस प्रकार मनुष्य जितने तिल दान करता है। वह उतने ही सहस्त्र वर्स स्वर्ग में निवास करता है

षट्तिला की कहानी

एक दिन नारद ऋषि ने भगवान् से षट्शिला एकादशी के संबंध में पूछा, वे बोले ‘हे भगवन्! आपको नमस्कार है। षट्तिला एकादशी के व्रत का पुण्य क्या है? उनकी क्या कथा है, सो कृपा कर कहिए।”

तब भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। वह मुझमें बहुत ही श्रद्धा और भक्ति रखती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधन की।

व्रत के प्रबाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण और देवताओं के निमित्त अन्ना-दान नहीं करती थी, अत: मैंने सोचा कि वह स्त्री वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा लेने गया।

ब्राह्मण की पत्नी से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिंड उटाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिंड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिलीं?

तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नादान नहीं करने और मुझे मिट्टी का पिंड देने से हुआ है। फिर मैंने उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं।

स्त्री ने ऐसा ही किया और देव कन्या ने जिस विधि से षट्तिला एकादशी व्रत करने के लिए कहा था उस विधि से स्त्री ने व्रत किया। व्रत के प्रबाव से उसकी कुटिया अन्ना धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानें कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल और अन्नादान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

व्रत और पूजा विधि

माघ का महीना बहुत पावन माना जाता है, इस माह में तप, पूजा और दान का विशेष महत्व है। माघ माह, कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनुष्य भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करना चाहिए। व्रती तो पुष्प, गंध, धूप-दीप और ताम्बूल प्रसाद आदि से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करना चाहिए।

षट्तिला एकादशी के दिन उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी को बनाकर भगवान को भोग लगाएं और रात में तिल से 108 बार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा मंत्र का उच्चारण करते हुए हवन करें।

इस दिन तिल को छ: रूपों में विभाजित कर दान करने से उत्तम फल प्राप्त होता है। परंपरा में इस दिन छ: तरह से तिल का उपयोग बताया गया है

1. तिल का उबटन, 2. तिल का तिलक, 3. तिल से हवन, 4. तिल मिश्रित जल का सेवन, 5. तिल का भोजन और 6. तिल जल से स्नान।

इस प्रकार जो मनुष्य षट्तिला एकादशी का व्रत करता है। भगवान विष्णु की कृपा से उसके सभी पाप कट जाते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस कथन को सत्य मानकर जो षट्तिला एकादशी का व्रत करता है, प्रबु व्रती का निश्चित ही उद्धार करते हैं।

इस व्रत से जहां हमें शारीरिक शुद्धि और आरोग्य प्राप्त होती है, वहीं अन्ना, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे वैसा ही प्राप्त होता है। अत: धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दानादि के कोई भी धार्मिक कार्य संपन्ना नहीं माना जाता है।