Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

झमाझम बारिश से खुश हुए किसान, तेज होगी फसल बुआई

मेरठ। मानसून में हुई देरी देश के अधिकांश किसानों के लिए चिंता का विषय बनी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानसून के दस्तक देने के बाद किसानों के चेहरे खिल उठे। किसानों ने कहा कि झमाझम बारिश के रूप में खेतों में सोना बरसा है। अब खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई अब किसान आसानी से कर सकेंगे।

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विवि के प्रोफेसर डॉ. आरएस सेंगर ने बताया कि देश के अधिकतर राज्यों में मानसून की बारिश में देरी हुई जिसके चलते खरीफ फसलों की बुवाई पिछड़ती चली गई। हालांकि कुछ राज्यों में सामान बारिश हुई, लेकिन इसके बावजूद भी धान मूंग उड़द और कपास की बुवाई के लिए बहुत कम समय बचा था। इस कारण किसानों को चेहरे मायूस थे, क्योंकि मानसून की देरी से उनकी आय पर प्रभाव पड़ सकता था

बारिश नहीं होने से कम हुई बुआई

डॉ. आरएस सेंगर का कहना है कि कृषि मंत्रालय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले साल इस वक्त तक करीब 588.11 लाख हेक्टेयर के रकबे में खरीफ फसलों की बुवाई हो गई थी। मगर इस साल अभी तक सिर्फ 499.87 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। मानसून में देरी की वजह से मूंग, सोयाबीन, धान और कपास समेत सभी खरीफ फसलों की बुवाई पिछड़ गई है। पिछले साल खरीफ फसलों की बुवाई काफी अच्छी हुई थी। धान की बुवाई समय पर की जा चुकी थी। इसी प्रकार सोयाबीन की बुवाई करीब 92.36 लाख हेक्टेयर में की गई थी, लेकिन इस साल अब तक सिर्फ 2.1 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई है। इसके साथ ही मूंग की बुवाई 3.4 लाख हेक्टेयर के रकबे में हुई थी, लेकिन इस साल 12.14 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंची है। इसके अलावा कपास की बुवाई भी काफी पिछड़ गई है। खरीफ सीजन की प्रमुख फसल बाजरा की बुवाई में भी काफी कमी आई है। अगर पिछले साल की बात करें तो करीब 25.32 लाख हेक्टेयर जमीन में बाजरा बोया गया था, लेकिन इस साल अभी तक सिर्फ 15.74 हेक्टेयर जमीन में भी बाजरा की बुवाई की जा सकी है।

डॉ. आरएस सेंगर के मुताबिक, केंद्रीय रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में चावल के उत्पादन की बात करें तो पिछले साल की तुलना में 8.21 प्रतिशत कमी आ सकती है, मक्का में करीब 11.86 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। लेकिन ज्वार के उत्पादन में 1.07 प्रतिशत सुधार होने की संभावना है। अगर गन्ना उत्पादन की बात करें तो इसमें करीब 21.987 की कमी आने का अनुमान है। लेकिन हाल ही में हुई बारिश से ऐसा लगता है कि उत्पादकता में कुछ सुधार होगा। अनुमान लगाए जा रहे नुकसान की भरपाई काफी हद तक हो सकेगी।

तिलहन की बुआई में देरी

इस सीजन में पिछले साल करीब 126.13 लाख हेक्टेयर जमीन में तिलहन की बुवाई हुई थी लेकिन इस साल करीब एक से 12.55 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की बुआई हो पाई है। इसके अलावा दलहन फसलों की बुवाई 53.35 लाख हेक्टेयर में हुई थी जो कि इस साल 52.49 लाख हेक्टेयर तक पहुंची है।

कम बारिश से खेती प्रभावित हुई है

10 जुलाई तक अभी तक 11 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में ही धान की बुवाई हुई थी जबकि सामान्य स्थिति में अब तक यह 11.6 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होना चाहिए था। इसके साथ-साथ ज्वार बाजरा जैसे मोटे अनाजों की बुवाई मानसून में देरी के कारण प्रभावित हुई है। देश के कई राज्यों में बारिश की कमी के चलते किसान कम समय में पकने वाली फसलों की बुवाई कर रहे हैं उन्हें उम्मीद है कि शायद मानसून की रफ्तार तेज होगी और खेती की मिट्टी में नमी बढ़ पाएगी जिससे वह बुवाई बढ़ा सकें कुछ प्रमुख राज्यों के मानसून का खरीफ फसलों की बुवाई की स्थिति पर पड़ने वाले असर का आकलन भी किया गया है

उत्तर प्रदेश राज्य में मानसून ने इस बार एक हफ्ते पहले यानी कि 13 जून के आसपास ही दस्तक दे दी थी। लेकिन इसका असर सिर्फ पूर्वी यूपी तक ही सीमित होकर रह गया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मानसून बारिश का अभी तक बेसब्री से इंतजार था। यहां के किसान अभी तक बारिश को लेकर आकाश की ओर टकटकी लगाए बैठे थे। इस सीजन में अब तक मानसूनी बारिश नहीं होने से धान और गन्ने की खेती भी पिछड़ रही थी। किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवेल और पंपिंग मशीनों का सहारा लेना पड़ रहा था। आसमान से बरस रही तपिश से हरे चारे की फसल करने वाले किसानों के अरमानों पर पानी फिर गया था। चारे की फसल की बुवाई देरी से होने के कारण पशुपालकों को भी महंगे दामों में चारा और दाना खरीदना पड़ रहा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published.