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उत्तराखंड में 48 फीसद कम हुई शीतकालीन बारिश, चढ़ा पारा

25_02_2017-rainddनैनीताल : पिछले साल जाड़े की बारिश 48 फीसद कम रही। इससे नौबत सूखे की आ गई। हालात ऐसे ही रहे तो गर्मियों में पहाड़ भी भीषण गर्मी की चपेट में होंगे। मौसम के जानकार पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता में कमी आना मुख्य कारण मान रहे हैं। वहीं ग्लोबल वार्मिंग का असर भी जाड़े की बारिश पर असर डाल रहा है।

राज्य में इस बार शीतकाल के दौरान औसतन सामान्य से 48 फीसद बारिश कम हुई है। दिसंबर से फरवरी तक सामान्य औसत बारिश 104 मिमी होनी चाहिए। 

जाड़े की वर्षा पश्चिमी विक्षोभ पर निर्भर करती है, जो इस बार सामान्य से बहुत कम पहुंचे हैं। जो बारिश के बादल आए भी तो अधिक शक्तिशाली नही थे। यहां का आसमान दो दिन से अधिक इसकी चपेट में नही रह सका। जिस कारण ठंड भी अधिक नही पड़ी। 

अब जाड़े के चंद दिन शेष बचे हैं। इस बीच कोई बड़ा पश्चिमी विक्षोभ नही आने वाला है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार राज्य की जाड़े की बारिश में औसत वर्षा में लगभग 55 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। 

इसका बुरा असर गर्मियों में देखने को मिलेगा। पेयजल किल्लत का सामना करना पड़ेगा। साथ ही पहाड़ों का तापमान आसमान छूने लगेगा। मौसम विभाग के राज्य निदेशक डॉ. विक्रम सिंह का कहना है कि जाड़े की बारिश में जो कमी आई है, अब उसकी भरपाई मार्च-अप्रेल में होने वाली वर्षा पर टिकी हुई है। पश्चिमी विक्षोभ अप्रेल तक सक्रिय  रहता है। इसके बाद मई मध्य अथवा जून से प्री-मानसून शुरू हो जाएगा। 

सिमटने लगी है नमी

आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के प्रर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह का कहना है कि कम होती हरियाली व अनियंत्रित विकास का असर मौसम में पड़ना लाजिमी है। वर्षा कम होने के कारण नमी की मात्रा सिमटने लगी है। 

परिणामस्वरूप पारा अभी से सिर उठाने लगा है। अभी से एक से तीन डिग्री सेल्सियस उपर जाने शुरू हो गए हैं। नमी कम होने का असर क्षेत्रीय वर्षा पर भी पड़ा है।

पहाड़ों को आग से बचाने की होगी चुनौती

गर्मी का कहर बड़ा तो ग्रीष्मकाल में पहाड़ों के जंगलों को आग से बचाने की चुनौती होगी। पिछले वर्ष का उदाहरण सामने है। इसमें बेशुमार जंगल आग की भेंट चढ़ गए थे। लिहाजा वन विभाग को जंगलों को आग से बचाने के लिए अभी से पुख्ता तैयारी करनी होगी।

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