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ये टिकट गिरा सकते हैं विकेट,भाजपा ने आठ में से पांच सीटों पर बाहरियों को दिया टिकट

Lakhimpur/Dev Srivastava: चुनाव का अनाउंसमेंट में हो चुका है। फील्ड तैयार है और खिलाड़ी भी घोषित हो चुके हैं। लेकिन कुछ प्रत्याशियों को लेकर इतना गतिरोध है कि शीर्ष कमान तक हिला हुआ है। ऐसे में यह घबराहट होना आम है कि यह टिकट कहीं विकेट न गिरा दें।

भाजपा ने आठों विधान सभाओं में टिकट बांटे हैं। इनमें से पांच सीटों पर पार्टी ने बाहरियों को तरजीह दी। लखीमपुर सीट से पार्टी ने योगेश को खड़ा किया। योगेश पूर्व में सपा और पीस पार्टी के नेता रह चुके हैं। वह पूर्व महरूम सपा विधायक कौशल किशोर के भांजे और वर्तमान लखीमपुर विधायक उत्कर्ष वर्मा के चाचा हैं। वह पीस पार्टी से लखीमपुर सीट से चुनाव भी लड़ चुके हैं। सपा और पीपा में कामयाबी न मिली तो लोकसभा चुनाव में फतह करने वाली भाजपा का दामन थाम लिया। वर्तमान में जातिगत समीकरण व कई दिग्गजों के सहयोग से टिकट की लड़ाई तो पार कर ली है पर अंदरूनी विरोध के चलते विकेट बचा पाना उनके लिये किसी चुनौती से कम नहीं।
बात करें गोला प्रत्याशी अरविं गिरी की। कुछ समय पहले उन्होने धन्यवाद पार्टी कर राजनीति को अलविदा करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि कुछ महीने बाद वह बैक-टू-पवेलियन हुये। और भाजपा से नई पारी शुरू की। उन पर भी भरोसा जताते हुये पार्टी ने उन्हें गोला सीट से प्रत्याशी घोषित किया है। गिरी का एक पूर्व चुनाव को लेकर पार्टी के अहम पद पर काबिज पदाधिकारी से 36 को आंकड़ा है। ऐसे में समर्थकों के विरोध को भी वह झेल सकते हैं। बसपा छोड़ कर आये बाला प्रसाद अवस्थी को धौरहरा से उतारा गया है जो कि यहां से पूर्व विधायक भी रह चुके हैं। 2012 विस चुनाव में पार्टी ने उन्हें मोहम्मदी सीट पर भेज दिया था। जहां भी उन्होने फतह हासिल की थी। अब कमल के साथ फिर वह धौरहरा से मैदान में हैं। पर कई टिकेट के दावेदारों को पार्टी का यह फैसला रास नहीं आ रहा है। कुछ लोग तो खुलेआम अपना हाल भी बयां कर चुके हैं। कइयों को तो बाहरी को टिकट दिया जाना भी गलत जान पड़ रहा है। यदि सोच न बदली तो यहां से बाला प्रसाद अवस्थी को अपने दम पर चुनाव लड़ना पड़ सकता है। पूर्व बसपा सांसद जुगुल किशोर के बेटे सौरभ सिंह सोनू को मितौली का प्रत्याशी घोषित किया गया है। हालांकि जुगुल किशोर को पार्टी में शामिल करने का विरोध तो जिला इकाई के अधिकतर लोग पहले से करते दिखाई दे रहे थे। चुनाव कंपैनिंग के समय किसी दीगर का साथ न होना आज भी उस बेरूखी को साबित करता है। कमोबेश बाहरी स्थिति से बसपा से निष्काषित रोमी साहनी भी झेल रहे हैं।

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