उत्तराखंड की 17वी वर्षगांठ: तरक्की की इबारत में पहाड़ नदारद


ऐसा इसलिए है क्योंकि पहाड़ में अमीरी को दर्शाने वाले ग्राफ स्तंभ देहरादून, हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर सरीखे मैदानी जनपदों के आगे बौने नजर आते हैं। प्रदेश की यह विकास रेखा जब सात पर्वतीय जिलों से गुजरती है तो वह धुंधलाने लगती है। देश-दुनिया के सैलानियों और श्रद्धालुओं को मोहित करने वाले पहाड़ों से वहां के वाशिंदे अब ऊबने लगे हैं। ज्यादातर लोग सुविधाओं के अभाव में मजबूरी में और कुछ बेहतर जिंदगी की चाह में पलायन कर गए। आर्थिक विषमता का यह रूप सूबे की सत्ता पर काबिज रही सरकारों पर सबसे बड़ा सवालिया निशान है।
17 साल बाद उत्तराखंड, राज्य आंदोलन की अवधारणा के उन्हीं प्रश्नों के सामने खड़ा है, जो पलायन, रोजगार, स्वास्थ्य और गुणवत्तापरक शिक्षा से जुड़े हैं। बेरोजगारी चार गुना बढ़ गई है। 81531 हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो गई है। 40 हजार करोड़ से ज्यादा के कर्ज में डूबी सरकार बजट का करीब 70 फीसदी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और ब्याज की अदायगी पर खर्च कर रही है। उसके पास विकास योजनाओं के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। इन कठिन हालातों में उत्तराखंड के संतुलित विकास और उसकी गति को बरकरार रखना बेहद चुनौतीपूर्ण है। तरक्की की सुनहरी इबारत का पहाड़ में लिखा जाना अभी बाकी है।
तरक्की की दास्तां
सकल घरेलू उत्पाद(करोड़ रु. में) -12,621 – 1,95,292
विकास दर(प्रति. में) -12.04 – 7.00
प्रति व्यक्ति आय रु. में) -15,285 – 1,60,795
प्रचलित मूल्य पर -15285 – 1,46,826 बढ़ गए जिंदगी के साल – 2000-01 2011-14
जीवन प्रत्याशा दर- 50 वर्ष – 72(वर्ष)
जन्म दर(प्रति हजार)- 18.5 – 17.8
मृत्यु दर(प्रति हजार)- 7.8 – 6.4
शिशु मृत्यु दर(प्रति हजार जीवित जन्म)- 48 – 34
चार गुना बढ़ी बेरोजगारी
2000-01 – 2017-18
बेरोजगार- 2,70,114 – 843,900
बढ़ी पढ़े-लिखों की तादाद – 2001 – 2011
साक्षरता- 71.60 – 78.8
पुरुष – 83.3 – 87.4
महिला- 59.6 – 70.0
अपर प्राइमरी में बढ़ाना होगा पंजीकरण – 2005-06-2015-16
प्राइमरी- 83.82 – 84.42
अपर प्राइमरी- 47.35- 66.24
सोर्स: नीति आयोग
7277 बस्तियों की बुझनी है प्यास- 2000-01 – 2017-18
पेयजल से जुड़ी बस्तियां- 14875 – 22152
घटती जा रही खेती की जमीन – 2000-01 – 2015-16
रकबा (हैक्टेयर में)- 769944 – 688413
बिजली का उत्पादन बढ़ा तो मांग भी उछली- 2000-01 – 2015-16
उत्पादन (मिलियन यूनिट)-2660.99 – 4942.33
खपत- -2120.92- 10298.14
विद्युतीकृत राजस्व गांव-12863- 15254
औद्योगिक राज्य की ओर कदम – 2000-01 – 2015-16
बड़ी इकाइयां- 191 – 272
पूंजी निवेश (करोड़ में)- 1694.66 – 34925.60
रोजगार- 50802 – 100752
सूक्ष्म, लघु व मध्यम- 17534 – 50407
पूंजी निवेश (करोड़ में)- 148.71 – 9536.28
रोजगार – 59659 – 220880
पहाड़ से बढ़ता पलायन – रुझान (प्रतिशत में)
उत्तराखंड के अंदर -64
उत्तराखंड के बाहर -35
देश से बाहर -01
गरीबी की दर 2004-05 -2011-12
उत्तराखंड 32.7 – 11.30
आल इंडिया 37.2 -21.9
(सोर्स: योजना आयोग, 2013)
सड़कों का विस्तार 2000-01 – 2016-17
कुल लंबाई (किमी में) 25619 -42702
नेशनल हाईवे 526 – 2186
स्टेट हाईवे 1235 – 4521
रेल लाइन 345 – 345
प्रतिक्रिया…
-17 साल का सफर निराशाजनक कतई नहीं है। संभावनाएं अपार हैं। इसके लिए कार्य हो रहा है। हमारी अवस्थापना मजबूत हुई है। बुनियादी सुविधाओं की स्थिति पहले से बेहतर दिखती है। हालांकि इस बात से मैं सहमत हूं कि अभी और काम किया जाना है। विजन 2020 को ध्यान में रखते हुए कार्य शुरू हुआ है, इसके अच्छे नतीजे निकलेंगे। –
हमने बहुत सारे क्षेत्रों में विकास किया है। मगर बहुत सारा काम करना अभी बाकी रहा है। मैं खुलकर यह कहना चाहता हूं कि चाहे किसी की सरकार रही हो, चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बेहतर स्थिति नहीं बन पाई है। अच्छी बात करुं तो राज्य बनने के बाद 37 हजार करोड़ का निवेश होना कोई छोटी मोटी बात नहीं है।
सरकार किसी की भी रही हो, 17 सालों में उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की दिशा में उल्लेखनीय काम नहीं हुआ। सरकार को इस क्षेत्र कार्य करना चाहिए। यही उत्तराखंड की मूल ताकत है, जिस पर फोकस करके सरकार आर्थिक संसाधनों के साथ स्थानीय युवक-युवतियों को रोजगार दे सकती है।