अभी अभी: भूवैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा, केदारनाथ धाम में फिर से आ सकती है महाप्रलय!


प्रो. बिष्ट ने कहा कि वर्ष 2013 के महाविनाश से सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। केदारपुरी हो या गौरीकुंड-पैदल मार्ग सभी जगह अवैज्ञानिक ढंग से ग्लेशियर द्वारा लाए गए हिमोढ़ या गाद (मोरेन) के ऊपर और एवलांच शूट (ग्लेशियरों के तीव्रता से बहने वाला मार्ग) के मुहाने पर निर्माण कार्य चल रहा है। यह विस्फोटक स्थिति है और आपदा को दोबारा आमंत्रित करने जैसा है।
प्रो. बिष्ट ने दो दिन पूर्व केदारनाथ का भ्रमण किया। वहां से लौटने के बाद उन्होंने अमर उजाला को बताया कि केदारपुरी दोनों तरफ पहाड़ियों से ग्लेशियर द्वारा लाए गए मोरेन पर बसी है। केदारनाथ से रामबाड़ा तक की प्रकृति समान है। मोरेन मिट्टी और कंकड़ का मिश्रण होता है। इनके बीच तगड़ा जुड़ाव नहीं होता है। जब इसमें पानी का रिसाव होता है तो यह लूज मैटरियल बह जाता है। इसका नतीजा भूस्खलन के रूप में सामने आता है।
प्रो. बिष्ट ने सरकार को केदारपुरी में एवलांच शूट के मुहाने पर निर्माण कार्य रोकने का सुझाव दिया है। वहीं, हिमोढ़ मेें अस्थायी निर्माण कार्य करने की सलाह दी है। जून 2013 में मचे जल प्रलय के बाद विभिन्न संस्थानों ने केदारनाथ क्षेत्र में अध्ययन किया। सभी ने अपने शोध रिपोर्ट में यह उल्लेख किया कि बारिश ने नुकसान की तीव्रता बढ़ाई है। इससे केदारनाथ सहित निचले क्षेत्र में व्यापक जान-माल की क्षति हुई। रामबाड़ा भी मोरेन पर बसा था, जिसका आपदा के बाद नामोनिशान मिट गया।
केदारनाथ में जियोलॉजिस्ट की सुझावों पर काम हो रहा है। अलबत्ता, स्टडी रिपोर्ट्स का अध्ययन कर रहा हूं ताकि केदारनाथ में सुरक्षित निर्माण कार्य कराया जा सके।