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Postmortem करने वालो का असल सच, कोई कहता राक्षस तो कोई नहीं देता बच्चों को स्कूल में दाखिला…

आप सब ज्यादातर लोगो को उनके नाम के बजाये उनके काम से जाना जाता है लोग कहते है वकील साहब डाक्टर साहब और भी कई नामो से और कही न कही लोगो को अच्छा भी लगता है कि मेरी पहचान मेरे नाम से हो रही है.

मगर एक तबका एसा भी है जो ये नही चाहता कि कोई मुझे लोग मेरे काम से जाने इन अक्सर हम इन लोगो को नज़रंदाज़ कर देते है मानो इनकी कोई जरूरत ही नही हो हमे. मै बात कर रहा हु निचले स्तर पर काम करने वाले लोगो कि .

मगर आज मै सबको न ले कर सिर्फ एक इंसान के बारे में ही आप लोगो को बताऊंगा ये है वो इंसान जो  मरे हुए लोगो का इलाज करते है.

जी है मरे हुए लोगो का इलाज करने वाले लोगो कि  बात कर रहा हु ये वो लोग है जो postmortem करते है ये स्टोरी उन लोगो के ही बारे में है जिनके बारे में हम ज्यादा कुछ नही जानते है और अक्सर लोग इनको नज़र अंदाज़ कहते है तो चेलिये मै आपको इन लोगो कि जिंदगी के बारे में बताती हूँ यह जो भी बाते मे आप लोगो को बताने जा रहीं हूँ वो मेरी इन लोगो से कि हुई बात-चीत पर आधारित है.

क्यों नहीं होती Postmortem करने वाले की जिन्दगी आम

Postmortem करने वाली आदिम कि जिंदगी कोई जादा अच्छी नही मानी जाती एक काम करने वाले से मैंने जब पूछा कि ये काम क्यों करते हो तो उन्होंने कह कि मै पढ़ा लिखा नही हूँ और मेरे पिता भी यही काम करते थे.

ये पूछने पर कि जिस दिन पहली बार postmortem  किया उस दिन केसा लगा तो उसने कह कि वो पुरे 2 दिन तक खाना नही खा पाया था. और उसको कई दिनों तक नींद नही आई मै आपको बता दू कि इन लोगो को एक postmortem के लिए सिर्फ कुछ रूपये ही मिलते है लगभग 350 से 400 रुपए ये पूछने पर कि लोगो का व्यवहार केसा होता है तो आप यकीन नही करने कि जो बात उसने बताई वो आपको शाएद सही ना लेगे उनहोंने कह कि हम मनो राक्षस कि तरह से देखा जाता है और कोई भी हमे या हमारे परिवार के व्यक्ति को अपने यह नही बुलाते न ही आने देते है 

नहीं होता बच्चों का एडमिशन

कुछ लोगो को तो लगता है कि हम लोग इंसानों का मांस खाते है जबकि ऐसा नही है भले ही मै ये काम करता हूँ मगर हमे भी दुःख होता है लोगो के मरने पर व्यक्ति ने मुझे ये भी बताया कि मै अपने बच्चो को इस काम से दूर रखना चाहता हूँ ताकि वो एक अच्छा काम कर सेक मेरे पूछने पर कि स्कूल वालो का आपके प्रति केसा व्यवहार है तो पता चला कि उसने अपने बच्चो का ADMISSIN करने में भी काफी दिक्कत का सामना करना कोई भी स्कूल उनके बच्चो को इस लिए दाखिला नही दे रह था कि उनके पिता लोगो का postmortem करते है.

क्या ये बच्चों के साथ अन्याय नहीं जहाँ एक तरफ केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार सभी सर्व शिक्षा के बारे में बात क्र अरेहं है वही इन बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा…

उनकी ये समस्या सुनने के बाद मैंने पूछने पर कि क्या आप ये काम छोड़ कर कुछ और करना चाहते है तो जवाब में मुझे ये बात पता चली जो एक ज़िम्मेदार व्यक्ति कि तरह मिला उसने कह कि बस हमे थोड़ी इज्जत चाहिए और ये काम किसी न किसी को तो करना ही पड़ेगा लोग ये नही समझते कि हम भी काम ही करते है. अपने परिवार का पेट पलने के लिए…

अपने काम के बारे में बात करने पर उसने बताया कि कभी कभी इसे लोगो कि बॉडी आती है जिनको पहचानना मुश्किल होता है और आसी लाशो को कोई आम इंसान देखे तो उसको उलटी आ जाये.

हादसों मे एक दिन में करना पड़ता है कई Postmortem

मुझे ये भी पता चला कि कही दुर्घटना होने पर या रेल हादसा होने पर इन लोगो  को एक ही दिन में कई सरे लोगो का postmortem करना पड़ता है. पूछने पर कि क्या रात को नींद आती है इसे काम को तो उसने बताया कि शुरुआत में काफी दिक्कत होती थी सोने में मुझे खुद से ही घिन्न आती थी जिन हाथो से मै लोगो के शरीर को काटता था उस्सी से एक निवाला उठा कर खाना बहुत मुश्किल हुआ करता था मगर अब तो आदत हो गयी है. 

बातो-बातो में उसने ये भी बताया कि मेरे गाव के लगो ये जानते है कि मर अस्पताल में सफाई का काम करता हु अगर उन लोगो को  मेरे असली काम का पता चले तो शयद वो लोग हमसे बात भी न करे…

ऐसी कई बाते है जो मै जानती हु मगर बता नही सकती, कुछ समजा के चलते और कुछ कई वजहों से मगर कही ना कही ये वो तबका है जो अपनी पूरी लगन से काम में लगा हुआ है फिर भी समाज से ठुकराया हुआ है ये आपसे और हमसे किसी भी तरह से अलग नही है. भले ही हमे इनका काम अच्छा न लगे और मगर समाज को बनाने और सुधरने में ये भी अहम भूमिका निभा रहे है और इनकी हमसे येही मांग है कि हमे समाज में अपनाया जाये…

हमे कोशिश करनी होगी कि एक नाली साफ करने वाले को लाशो कि चिर फाड़ करने वाले को और एसे ही तबके  के लोगो को अपने काम करने पर गर्व हो और उन्हें अगर कोई उनके काम से जाने तो उन्हें भी वकील और डॉ कि  तरह सम्मान महसुसू हो