डायमंड किंग सावजी ढेलकिया की सफलता की कहानी काफी दिलचस्प है। ढोलकिया का जन्म अमरेली जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। पढ़ाई में मन ना लगने और पारिवारिक दबाव के चलते वह 13 वर्ष की उम्र में ही सूरत भाग गए और एक छोटी से फैक्ट्री में काम करने लगे। पांच-छह महीने में बाद जब वह वापस घर पहुंचे तो उनके पिता ने पढ़ने के लिए समझाया, लेकिन इन्हें पढ़ाई से डर लगता था। जिससे यह फिर सूरत चले गए और इसी तरह दो-तीन बार किया।
ढोलकिया बताते हैं मां उन्हें अक्सर समझाती और इमोशनली ब्लैकमेल करती थी। इसके बाद एक दिन उन्होंने ठान लिया कि अब अच्छा आदमी बनना है। उन्होंने बताया कि एक दिन स्वामी नारायण संप्रदाय के एक साधु के पास गए। उनका परिवार पिछली कई पीढ़ियों से स्वामी नारायण सम्प्रदाय का अनुयाई है। उन्होंने साधु से पूछा कि वह उनका जीवन खुशहाल बनाने के लिए कुछ उपाए बताएं। इस पर साधु ने सकाम भक्ति के तहत 108 नामों का एक मंत्र बताया और उसे 11 लाख बार जाप करने के लिए कहा और कहा कि इतना करने के बाद कोई भी कुछ करना चाहे तो कर सकता है।
साधु के इस उपाय को करने के बाद ढोलकिया के अंदर एक बड़ा आत्म विश्वास जागा कि वह अब कुछ भी कर सकते हैं। इसी ध्येय के साथ अब वह फिर से नौकरी करने सूरत के चले आए। यहां एक हीरा कंपनी वह हीरा घिसने का कार्य करने लगे। नौकरी में तरक्की मिलने और अच्छे अनुभव के बाद मैंने खुद का व्यापार खड़ा करने का निर्णय लिया। जैसे-तैसे अपना हीरा कारोबार शुरू तो कर लिया। लेकिन उसे बढ़ाने के लिए मुझे कर्ज लेना पड़ा। हालांकि उन्हें चाचा से कर्ज मिल गया। इसके बाद उन्होंने अपनी मेहनत से व्यापार को इस मुकाम तक पहुंचाया।