हाल ही में क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट एकदिवसीय विश्वकप का अंत हुआ। एक ऐसे फाइनल का अंत हुआ जिसने सोशल मीडिया पर खलबली मचा दी। अंपायरिंग पर सवाल उठे , आईसीसी के नियमों का तमाशा बना। जाने माने अंपायर साइमन टॉफेल ने कहा की इस मुकाबले में अंपायर से बड़ी गलती हुई। आपने पढ़ा की नहीं पढ़ा पर मैंने सोशल मीडिया पर एक सवाल पढ़ा । तगड़ा लॉजिक हैं , आगे चल कर इंग्लैंड से जब कोई पूछेगा की आप कितने रनों या विकेट से यह मुकाबला जीते, तो जवाब क्या होगा? हमने ज्यादा बाउंड्री मारी इसलिए हम मैच जीत गए। जो सुनेगा उसका रिएक्शन दिलचस्प होगा, सुनने वालों के दिमाग में बस एक सवाल उठेगा, अच्छा तो आप किस्मत से मुकाबला जीते। क्यूंकि कोई नहीं बता सकता की 14 जुलाई को विश्वकप फाइनल की सबसे बेहतरीन दो टीमों में किसका पलड़ा भारी था। उस मुकाबले में अगर विन प्रेडिक्टर Eng-NZ : 51-49 का ये समीकरण भी दिखा रहा होता तो मैं समझ जाता की ये लोग रॉन्ग नंबर डायल कर रहे हैं। इनकी मशीने खराब है। क्यूंकि जो फाइनल दो बार टाई की देहलीज पर पहुंचा हो उस मुकाबले का विजेता बाउंड्री से सुनिश्चित करना कहा तक जायज है।
अगर बाउंड्री का रोल इतना एहम है तो मैं ऋषभ पंत को भारत कि हार में दोषी नहीं मानता। क्या पता उस मुकाबले में भी बाउंड्री अपना खेल खेल जाती। कई बार मैंने सुना है किस्मत भी उन्हीं का साथ देती हैं जो मेहनत करना जानते हैं। तो क्या न्यूजीलैंड ने इंग्लैंड से कम मेहनत की ? क्या इस हार का पूरा जिम्मा आईसीसी के उन नियमों का है, जिसने बड़े-बड़े खिलाड़ियों को न्यूजीलैंड की हार पर आईसीसी के नियमों के खिलाफ ट्विटर पर लिखने पर मजबूर कर दिया। न्यूजीलैंड के स्टार हरफनमौला खिलाड़ी स्कॉट स्टाईरिस ने लिखा ” बहुत अच्छा काम आईसीसी…….आप एक मजाक हो। ” वहीं 2011 विश्वकप फाइनल में टीम इंडिया के हीरो रहे गौतम गंभीर ने लिखा ” समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस स्तर के खेल का विजेता कैसे बाउंड्री के आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता हैं। यह एक टाई होना चाहिए था। मैं दोनों टीमों को इस रोमांचक मुकाबले को खेलने के लिए बधाई देना चाहता हूँ।”
वर्ल्डकप फ्री का तो हैं नहीं यानि आईसीसी को इसे कराने में पैसे लगाने पड़ते हैं। वसूली फैंस से ही होती हैं तो ऐसा कुछ क्यों करना की धीरे-धीरे आप इस खेल से चिढ़ते जाओ। क्या आईसीसी अपने नियमों के कारण खुद इस खेल की लोकप्रियता कम करते जा रहा हैं। जरूर इंग्लैंड ये मुकाबला जीत गई लेकिन जिस तरह का खेल देखने को मिला लोग अंत तक न्यूजीलैंड के लिए दिल थामे बैठे थे। बात लेकिन पैसो की नहीं ये भावनाओं से जुड़ा खेल हैं और खाँसकर इस विश्वकप की बात अलग थी। पहली बार कोई नई टीम विश्वकप अपने देश ले जा रही थी। दो देश और कुल मिला 6 करोड़ 3 लाख 90 हजार लोग अपने चहिते खिलाडियों के हाथों में चमचमाती ट्रॉफी देखना चाह रहे थे। यकीन मानिए करीबन 6 करोड़ 9 लाख दुआओं से आगे बढ़ रहे इंग्लैंड पर 47 लाख के करीब वाला न्यूजीलैंड भारी पड़ रहा था। बस एक नियम और खराब अंपायरिंग ने विश्व क्रिकेट के सबसे बेहतरीन कप्तान को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि “दुर्भाग्यपूर्ण हैं की मैं ये खेल खेलता हूँ। ”
क्या भविष्य में क्रिकेट फैंस की उत्सुकता , इस खेल के प्रति उनका प्रेम, भरोसा, सच्चाई ये सब इन अजीब नियमों के आगे फिर झुकेगा। क्यूंकि आईसीसी के बड़े टूर्नामेंट्स 4 या 2 सालों के अंतर पर इसलिए कराए जाते हैं ताकि टीमें प्रैक्टिस कर ले और साथ ही आईसीसी यह अनुभव कर सके की उनके नियम कही किसी खिलाड़ी या टीम से नाइंसाफी तो नहीं कर रही। वक्त हर चीज सिखाता हैं और अभी भी आईसीसी के दूसरे सबसे बड़े टूर्नामेंट में एक साल का समय बचा हैं। क्या ऐसे में टी-20 विश्वकप का विजेता फिर से आईसीसी का कोई नियम बनाएगा या खेल के ऊपर नियमों की जीत का सिलसिला जारी रहेगा। ऑस्ट्रेलिया में 2020 टी-20 विश्वकप होना हैं और उसके मुकाबले आपसे साझा कर रहा हूँ