जयपुर। राजस्थान में इन दिनों चुनावी घमासान जोरों पर है। देश के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व बीजेपी यहां अपनी-अपनी पैंठ जमाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। लेकिन बीजेपी में बगावती सुर फूटने से यहां बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। यहां विधानसभा चुनावों से पहले सीएम वसुंधरा राजे के करीबी नेता माने जाने वाले मंत्री सुरेंद्र गोयल ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
गोयल जैतारण विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। सूत्रों के मुताबिक, गोयल के इस्तीफा देने की वजह विधानसभा चुनावों में उनका टिकट कट जाने को बताया जा रहा है। जिस वजह से नाराज होकर गोयल ने यह कदम उठाया। सुरेंद्र गोयल राजस्थान सरकार में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी और भूजल विभाग के मंत्री थे। उन्होंने अपना इस्तीफा प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी को भेजा।
बीजेपी ने गोयल की जगह युवा चेहरे को दी वरीयता
बीजेपी ने इस बार जैतारण विधानसभा सीट से सुरेंद्र गोयल का टिकट काटकर युवा चेहरे अविनाश गहलोत को मौका दिया गया है। कोर कमिटी की सिफारिश के आधार पर भाजपा ने रविवार (11 नवंबर, 2018) की रात उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी। उम्मीदवारों के नामों का ऐलान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी और भूपेंद्र यादव ने किया था। नई लिस्ट के मुताबिक भाजपा ने 12 महिलाओं, 25 नए चेहरों समेत 80 पुराने चेहरों को टिकट दी है। इस तरह भाजपा अब तक नई लिस्ट में से कुल 200 सीटों में से 131 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है।
Rajasthan Minister and #BJP MLA Surendra Goyal resigns from primary membership of BJP pic.twitter.com/FhShpojctx
— ANI (@ANI) November 12, 2018
इससे पहले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने 60 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की प्रस्तावित सूची रखी थी। बताया जाता है कि इस सूची में सभी नाम सीएम वसुंधरा राजे के प्रति समर्पित रहने वाले नेताओं के ही थे। वसुंधरा राजे ने ये लिस्ट पार्टी की चुनावी बैठक के दौरान रखी थी। अमित शाह ने इस लिस्ट को वहीं खारिज कर दिया।
जिसके बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कोर कमिटी से दोबारा लिस्ट बनाने के लिए कहा। अमित शाह का जोर इस बात पर भी है कि टिकट पार्टी के उन जमीनी कार्यकर्ताओं को मिले, जिनका जनाधार भी अच्छा हो।
बता दें कि इस कोर कमिटी में ज्यादातर नेता सीएम वसुंधरा राजे के विरोधी खेमे से आते हैं। वहीं भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भी पांच सालों तक सीएम वसुंधरा राजे की हठ को सहा है। राजे ने प्रदेश अध्यक्ष से लेकर हर महत्वपूर्ण पद पर उस शख्स को काबिज करवाया जो पार्टी से पहले उनका वफादार था। शाह की कोशिश है कि अब प्रदेश में नेताओं को पार्टी से बड़ा बनने से रोका जाए।