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जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित,जानिये इस आतंकी की पूरी कहानी

तारीख 1 मई 2019। दिन बुधवार। जब पूरी दुनिया मजदूर दिवस की बात कर रही थी, तभी संयुक्त राष्ट्र की ओर से आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मौलाना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की खबर आई। यह खबर भारत के लिए लू के थपेड़ों के बीच ठंडा पानी मिलने जैसी थी। बीते 10 बरसों में भारत मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में चार बार विफल हो चुका था। हर बार अड़ंगा पड़ोसी मुल्क चीन ने लगाया, जिसके पाकिस्तान के साथ गहरे आर्थिक-राजनीतिक ताल्लुकात हैं। वही पाकिस्तान, जिसने मसूद और उसके आतंकी संगठन को पनाह दे रखी है। 

भारत के लोग पिछले 25 बरसों से मसूद अजहर का नाम सुन रहे हैं। हम आपको बता रहे हैं मसूद का पूरा कच्चा चिट्ठा कि वह कहां से निकला, किन आतंकी संगठनों के साथ रहा, भारत का कितना नुकसान किया और आखिरकार उस पर क्या फैसला हुआ। 

#. हेडमास्टर का बेटा, जो मदरसे से आतंक की तालीम की ओर मुड़ गया 
मसूद पर आईं रिपोर्ट्स बताती हैं कि उसका जन्म 10 जुलाई 1968 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर में हुआ था। कुछ अन्य रिपोर्ट्स में उसके पैदाइश की तारीख 7 अगस्त 1968 भी बताई जाती है। अजहर के पिता अल्लाह बख्श शब्बीर एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर थे। उनका डेयरी और पॉल्ट्री का भी कारोबार था। शब्बीर के कुल 11 बच्चे हुए, जिनमें मसूद तीसरा था। 8वीं तक पढ़ने के बाद मसूद ने मेनस्ट्रीम स्कूल छोड़ दिया और जामिया उलूम मदरसे में दाखिला ले लिया। 1989 में मसूद इसी मदरसे से ग्रैजुएट हुआ और उसे आलिम बना दिया गया। 

#. जिसे टीचर बनाया गया, वह आतंकी कैसे बन गया 
इस मदरसे का आतंकी संगठन ‘हरकत-उल-अंसार’ (HUA) से गहरा नाता था। यह आतंकी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी और हरकत-उल-मुजाहिदीन के मिलने से बना था, जो अफगानिस्तान के सक्रिय आतंकी संगठन थे। वहीं, HUA का कश्मीर में ज़्यादा दखल था। HUA ने मसूद को उर्दू भाषा की अपनी पत्रिका ‘साद-ए-मुजाहिद्दीन’ और फिर अरबी भाषा की पत्रिका ‘सावत-ए-कश्मीर’ का संपादक भी बनाया। 

कुछ वक्त बाद मसूद HUA का जनरल सेक्रटरी बन गया। इस समय तक उसकी हैसियत आतंकियों की भर्ती करने, चंदा इकट्ठा करने और इस्लाम के प्रचार के लिए दुनियाभर में यात्राएं करने की हो गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इन कामों के लिए मसूद ब्रिटेन, सऊदी अरब और मंगोलिया जैसे तमाम देशों में गया। 

#. पर अफगानिस्तान से निकले आतंकी संगठनों के गुर्गों की निगाह भारत पर कैसे पड़ी 
अफगानिस्तान में तमाम आतंकी संगठन सोवियत यूनियन की सेना के खिलाफ लड़ रहे थे। इन्हें पैसा और हथियार मुहैया कराने की जड़ें अमेरिका से जुड़ती हैं। 1989 में सोवियत-अफगान युद्ध खत्म होने पर इन आतंकी संगठनों को अस्तित्व बचाने के लिए नई लड़ाई चाहिए थी। यही वह वक्त था, जब भारत के कश्मीर में हिंसक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुए और अफगानिस्तान से निकले इन आतंकी संगठनों ने पूरे दक्षिण एशिया को चपेट में ले लिया। 1994 में कश्मीर में जो आतंकी हमले हुए, उनमें इस संगठन का बड़ा हाथ था। 

#. 1994 में पहली बार पुलिस की पकड़ में आया मसूद अजहर 
1993-94 के बरसों में इंडियन आर्मी ने कश्मीर में ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन’ (HUM) को कुचलकर रख दिया था। नवंबर 1993 में HUM के सरगना नसरुल्लाह मंसूर लंगरयाल को अरेस्ट किया गया। अगले साल फरवरी 1994 में HUM के सेक्रटरी मौलाना मसूद अजहर और सज्जाद अफगानी को भी इंडियन आर्मी ने कश्मीर के अनंतनाग में धर लिया। उस समय मसूद पुर्तगाली पासपोर्ट के ज़रिए बांग्लादेश के रास्ते कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने आया था। इस समय तक मसूद आतंकी संगठनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो चुका था, इसलिए उसकी गिरफ्तारी के साथ ही उसे छुड़ाने की कवायद भी शुरू हो गई। 

#. 1995 में विदेशी पर्यटकों ने अपनी जान की कीमत चुकाई 
जुलाई 1995 में खुद को अल-फरान बताने वाले कुछ लोगों ने जम्मू-कश्मीर घूमने आए 6 विदेशी पर्यटकों को किडनैप कर लिया। इन 6 में से दो ब्रिटिश, दो अमेरिकी, एक जर्मन और एक नॉर्वे का नागरिक था। किडनैपर्स ने इन पर्यटकों के बदले मसूद अजहर और उसके अलावा 20 और आतंकियों को छोड़ने की मांग रखी। जब भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने इन किडनैपर्स की बात नहीं मानी, तो 13 अगस्त 1995 को नॉर्वे के नागरिक ऑस्ट्रो की सिर कटी लाश पहलगाम में बरामद हुई। इसके बाद दोनों अमेरिकी नागरिक किडनैपर्स की गिरफ्त से भागने में कामयाब हो गए, लेकिन बाकी तीन पर्यटकों का कुछ पता नहीं चला। मई 1996 में गिरफ्तार किए गए एक आतंकी ने बताया कि उन तीनों को गोली मार दी गई थी। 

#. 1999 में अपने मंसूबे में कामयाब हो गए आतंकी 
मसूद के हिरासत में रहते समय पुलिस और सेना के कई अफसरों ने उससे पूछताछ की थी। PTI की एक रिपोर्ट में पुलिस अधिकारी अविनाश मोहनाने के हवाले से बताया गया था कि मसूद से पूछताछ बहुत मुश्किल नहीं थी। पहली बार में जब उसे एक थप्पड़ जड़ा गया, तो उसने सब कुछ उगलना शुरू कर दिया। इसके बाद भी उसे ज़्यादा टॉर्चर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी और वह आसानी से आतंकी संगठनों के बारे में जानकारी दे देता था। मसूद के साथ अरेस्ट हुए सज्जाद अफगानी को 1999 में जेल से भागने की कोशिश करते समय गोली मार दी गई थी। लेकिन, मसूद को छुड़ाने की कोशिश अब भी जारी थी। 

दिसंबर 1999 में हरकत-उल-मुजाहिदीन (HUM) के आतंकियों ने काठमांडू एयरपोर्ट से दिल्ली आ रहे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 को हाइजैक कर लिया। आतंकी इस फ्लाइट को अमृतसर, लाहौर और दुबई होते हुए अफगानिस्तान के कंधार ले गए। इस फ्लाइट में कुल 178 लोग थे, जिनकी सलामती के बदले आतंकियों ने मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्तफाक अहमद जरगर को छोड़ने की मांग की। इसके अलावा भारत में बंद 35 अन्य आतंकियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग भी की गई। 7 दिनों की सौदेबाजी के बाद उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने लोगों को बचाने के लिए तीन मुख्य आतंकियों- मसूद, सईद शेख और मुस्तफाक को छोड़ दिया। उस समय मसूद HUM का ही हिस्सा था। 

#. रिहाई के बाद मसूद ने आतंकी संगठन बनाया, लादेन से भी मदद मिली थी 
31 दिसंबर 1999 को कंधार में रिहा होने के बाद मसूद अलकायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन से मिलने गया, फिर एक महीने बाद जनवरी 2000 में पाकिस्तान चला गया। पाक आने के बाद मसूद ने HUM से खुद को अलग कर लिया। फिर कराची की एक मस्जिद में मसूद ने सैकड़ों हथियारबंद आतंकियों के साथ अपना खुद का आतंकी संगठन बनाया- ‘जैश-ए-मोहम्मद’ (JEM)। इस नाम का शाब्दिक अर्थ है मोहम्मद की सेना। 

JEM कश्मीर में सक्रिय सबसे खतरनाक आतंकी संगठनों में से एक है। यह ज़्यादातर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से ऑपरेट करता है और इसका मकसद जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना है। JEM को बनाने में मसूद को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI, अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबानी आतंकियों, ओसामा बिन लादेन और कई पाकिस्तानी सुन्नी संगठनों से मदद मिली थी। 

#. फिर शुरू हुआ जैश-ए-मोहम्मद का भारत को घाव देने का सिलसिला 
JEM बनाने के बाद मसूद ने पहला बड़ा हमला किया अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर। इस हमले में 38 लोगों की जानें गई थीं। इसके दो महीने बाद दिसंबर 2001 में मसूद ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर भारत की संसद पर हमला किया। इस हमले में भारत के 8 जवान शहीद हुए थे। इस मामले में अफजल गुरु समेत चार आतंकी गिरफ्तार हुए थे, जिनमें से अफजल को 2013 में फांसी दे दी गई थी। अफजल को हमलावरों को सामान पहुंचाने का दोषी पाया गया था। 

2014 में भारत में लोकसभा चुनाव से पहले मसूद अजहर ने पाकिस्तान में एक सभा में धमकी दी थी कि उसके पास 300 आत्मघाती हमलावर हैं और अगर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तो वह भारत पर हमला बोल देगा।

25 दिसंबर 2015 को जब पीएम मोदी ने बिना किसी पूर्व योजना के पाकिस्तान जाकर उस समय के अपने समकक्ष नवाज शरीफ से मुलाकात की, तो मसूद बिलबिला उठा। इस मुलाकात के ठीक सात दिन बाद भारत के पंजाब में बने पठानकोट एयर बेस पर हमला किया गया। इस हमले में 9 जवानों और एक सिविलियन की मौत हो गई थी। इस हमले की ज़िम्मेदारी यूनाइटेड जिहाद काउंसिल ने ली थी, जबकि हमले में जैश-ए-मोहम्मद का नाम भी आया था। 

सितंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के उड़ी में भारतीय सुरक्षाबलों पर हमला किया गया, जिसमें 19 जवानों की मौत हो गई थी। भारत सरकार की तरफ से इस हमले का शक भी जैश-ए-मोहम्मद पर जताया गया था। 

14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सुरक्षाबलों की एक बस को विस्फोटक लदे वाहन से उड़ा दिया गया था। इस हमले में 40 से ज़्यादा जवान शहीद हो गए थे। इस हमले की ज़िम्मेदारी खुद जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। 

#. पाकिस्तान ने बैन लगाने के नाम पर किया था मज़ाक 
जनवरी 2002 में जब परवेज मुशर्रफ भारत आ रहे थे, तब जैश ने इस यात्रा का विरोध किया था। विरोध में जैश ने मार्च 2002 से सितंबर 2002 के बीच इस्लामाबाद, कराची, मुरी और बहावलपुर में कई आत्मघाती हमले कराए। इसके बाद पाकिस्तानी सरकार ने जैश को आतंकी संगठन घोषित कर दिया। इसके बाद मसूद ने अपने आतंकी संगठन का नाम बदलकर ‘अल-रहमत ट्रस्ट’ कर दिया था। मुशर्रफ से भन्नाए इस संगठन ने दिसंबर 2003 में मुशर्रफ पर जानलेवा हमला भी कराया था। इसके जवाब में पाकिस्तानी हुकूमत जैश पर टूट पड़ी। नतीजा यह निकला कि मसूद ने पाकिस्तान सरकार से समझौता कर लिया। समझौता यह कि जैश पाकिस्तान के अंदर हमले नहीं कराएगा और बदले में उसे पर्दे के पीछे से ISI से भरपूर सपॉर्ट मिला। 

#. मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने में चीन क्यों अड़ंगा लगा रहा था 
27 फरवरी 2019 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव रखा। यह चौथा मौका था, जब चीन ने भारत के मसूद संबंधी प्रस्ताव में अड़ंगा लगाया था। असल में UN में करीब 193 देश हैं और पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। संयुक्त राष्ट्र में कोई अहम फैसला तभी लिया जा सकता है, जब पांचों स्थायी सदस्य सहमत हों। ऐसे में चीन के असहमति जताने पर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित नहीं किया जा सकता था। 

मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए UN में ISIL और अलकायदा प्रतिबंध समिति या 1,267 प्रतिबंध समिति बनाई गई थी। यह कमिटी दुनियाभर के आतंकियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करती है और उन्हें बैन करने या छूट देने संबंधी फैसले लेती है। 

चीन अभी तक मसूद को इसलिए बचा रहा था, क्योंकि चीन अपने शहर काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक इकॉनमिक कॉरिडोर बना रहा है। CPEC नाम का यह कॉरिडोर PoK और बलूचिस्तान जैसे कई संवेदनशील इलाकों से गुजरता है। इसे आतंकियों से मुक्त रखने के लिए चीन मसूद मुद्दे पर पाकिस्तान की मदद कर रहा था। इसके अलावा चीन भारत को अपना आर्थिक और राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानने और अपने देश में मुस्लिमों पर लगाए प्रतिबंधों को बिना दिक्कत जारी रखने के लिए भी मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने में अड़ंगा लगा रहा था। हालांकि, दुनियाभर के तमाम देशों के दबाव में आखिरकार चीन झुका और मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया। 

newssource:NBT