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क्या है यूनिफार्म सिविल कोड, क्यों मचा है बवाल, क्या इसके लागू होने से खत्म हो जाएगी मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले साल तीन तलाक पर दिए ऐतिहासिक फैसले के बाद से ही देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा जोरों पर हैं। इसे लागू करने को लेकर कई दल और महिला संगठन सरकार से मांग भी कर रही हैं। वहीं कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं और ऐसा मान रहे हैं कि इससे उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार पर चोट पहुंचेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड में ऐसा क्या है जो इस पर इतनी चर्चा हो रही है। क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता छीनता है? क्या इसके लागू होने से भारत में लोगों की धार्मिक आजादी खत्म हो जाएगी? क्या देश के पर्सनल लॉ बोर्ड समाप्त हो जाएंगे? या फिर इस कानून को लेकर देश में राजनीति हो रही है… आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब…!

क्या छिन जाएगा लोगों का धार्मिक अधिकार?

ऐसा नहीं है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से लोगों को अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का अधिकार छिन जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड का पक्ष लिया गया है, लेकिन ये डायरेक्टिव प्रिंसपल हैं। यानी इसे लागू करना या न करना पूरी तरह से सरकार पर निर्भर करता है। भारत के ही एक राज्य गोवा में कॉमन सिविल कोड लागू है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 कहती हैं कि किसी भी वर्ग को अपनी धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों को मानने की पूरी आजादी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने से हर धर्म के लोगों को सिर्फ समान कानून के दायरे में लाया जाएगा, जिसके तहत शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले शामिल होंगे। ये लोगों को कानूनी आधार पर मजबूत बनाएगा।

क्या मुस्लिमों के हक छीनता है यूनिफार्म सिविल कोड?

यूनिफार्म सिवल कोड यानी समान नागरिक संहिता सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है और न ही ये मुसलमानों को हिन्दू बनाने की साजिश है। इसका धर्म से लेना-देना नहीं है। यूनिफॉर्म सिविल कोड सीधा-सीधा जुड़ा है देश के हर नागरिक के अधिकारों से, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौध, जैन, ट्रास्जेंडर, लेस्बियन, गे आदि सभी लोग शामिल हैं।

दरअसल, मार-पीट, जमीन-जायदाद आदि के मुद्दे IPC और CrPC से सुलझाये जाते हैं। शादी-विवाह, तलाक, मां-बाप की जायदाद में हिस्सा हर चीज के लिए कानून है। पर इसमें पेच है। धार्मिक पेच… हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन धर्म के लोग शादी-विवाह , तलाक, मां-बाप की जायदाद में हिस्सा के लिए कानून का सहारा ले सकते हैं। लेकिन इस्लाम अनुयायियों के लिए कानून थोड़ा सा अलग है। इससे हिन्दू-मुसलमान या किसी और धर्म को दिक्कत नहीं है। दिक्कत है तो सिर्फ महिलाओं को…।

इस्लाम में औरतों की शादी, तलाक और उसके बाद हलाला प्रक्रिया कर फिर से शादी को लेकर बड़े पुराने किस्म के कानून हैं। इन रुढिवादी कानून को आज के ज़माने में लागू करना औरतों की तौहीन है। इन्हीं कानून के विरोध में देश का एक बड़ा वर्ग लंबे समय से समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग कर रहा है, लेकिन बहुत सी महिलाएं इसके खिलाफ भी हैं।

यूनिफॉर्म सिविल कोड आखिर है क्या?

समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। यह कानून देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। ऐसे में अगर यह कानून भारत में लागू होता है तो मुस्लमानों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी।

इतना ही नहीं महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे। जब-जब सिविल कोड को लेकर बहस छिड़ी है, विरोधियों ने यही कहा है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है। इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

क्यों है जरूरी?

  1. विभिन्न धर्मों के विभिन्न कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। कॉमन सिविल कोड लागू होने से न्यायालयों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के निपटारे जल्द होंगे।
  2. सभी के लिए कानून में एकसमानता से एकता को बढ़ावा मिलेगा।
  3. मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी।
  4. भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष देश की है। ऐसे में कानून और धर्म का एक-दूसरे से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।
  5. सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार होना जरूरी है। इस कानून के आने से धार्मिक भेदभाव खत्म होगा।
  6. हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से राजनीति में भी बदलाव आएगा या यू कहें कि वोट बैंक और ध्रुवीकरण की राजनीति पर लगाम लगेगी।

भारत में क्यों है कि पर्सनल लॉ?

भारत में अगल-अगल धर्मों के मसलों को सुलझाने के लिए पर्सनल लॉ बनाया है। इस कानून के तहत शादी, तलाक, परिवार जैसे मामले आते हैं। भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई के लिए अपने अलग कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।

क्या है इसका इतिहास?

महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव और अत्याचार को कम करने के लिए 1993 में कई कानूनों में संशोधन किया गया। जिसके कारण धर्मनिरपेक्ष और मुस्लिम समाज के बीच की खाई और गहरी हो गई। जबकि इस मामले पर कई मुसलमानों ने विरोध किया। उनका मानना था कि इस फैसले से मुस्लिम संस्कृति नष्ट हो जाएगी। गौरतलब है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर ब्रिटिशकाल से ही विवाद चल रहा है।

इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता

एक तरफ जहां भारत में सभी धर्मों को एक समान कानून के तहत लाने पर बहस जोरों पर है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया,  सूडान, तुर्की और मिस्त्र जैसे कई देश इसे लागू कर चुके हैं।