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अखिलेश के नेतृत्व ने समाजवादियों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया?

2012 मुलायम शिवपाल की सपा ने विधानसभा में 224 सीटें जीतीं, मुख्यमंत्री बने अखिलेश, और 2017 में 47 सीटों पर पहुंचा गए। 2009 में सपा के 23 सांसद थे। अखिलेश ने कड़ी मेहनत की। इतनी मेहनत कि मुलायम और शिवपाल को बाहर का रास्ता दिखाया और 2014 में 5 सीट लाए। अब जब पानी सिर के ऊपर लगने लगा तो2019 में मरता क्या न करता। अखिलेश ने मायावती से हाथ मिलाया और एक बार फिर पूरे 5 सीटों पर जीत दर्ज की। बदायूं और कन्नौज भी हार गए।

2019 के चुनाव परिणामों को देखकर अगर आपको लगता है कि राहुल गांधी का सबसे ज्यादा कटा है तो आप भोले हैं। सबसे ज्यादा गर्त में समाजवादी पार्टी गई है। आप राहुल का लाख मजाक उड़ा लीजिए लेकिन कांग्रेस पार्टी ने पिछले चुनावों से बेहतर प्रदर्शन किया है। राहुल के नेतृत्व में पार्टी ने एमपी छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार बनाई है। लेकिन 2012 से 2019 तक सपा निरंतर गर्त में ही गई है।

पांच सितारा होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्विटर को ही राजनीति का अखाड़ा समझने वाले अखिलेश ने क्या अपने दम पर कोई चुनाव जिताया है? अगर जिताया हो तो बताइए। बीजेपी के बाद यूपी में सबसे मजबूत कैडर वाले अखिलेश कभी किसी मुद्दे पर सड़क पर उतरे दिखाई दिए हों तो बताइएगा।

अखिलेश नेता नहीं हैं। औऱ न ही उनके पास कोई अमित शाह है। मुलायम के पास कम से कम शिवपाल तो थे। जो पीछे से जमीन मजबूत करने का काम करते थे। कुर्सी तो विरासत में मिल जाती है लेकिन नेतृत्व क्षमता विरासत में नहीं मिलती। ये बात जवानी कुर्बान करने वाले युवाओं को समझ लेना चाहिए।

चुनावों में किसी भाजपा नेता ने कहा था कि सपा मतलब ‘समाप्त पार्टी’ सत्य ही कहा था। अखिलेश सपा को समाप्त करके ही रहेंगे। बाकी 5 साल के लिए ट्विटर पॉलिटिक्स फिर से मुबारक।

नोट-

1. सपा कार्यकर्ताओं को चाहिए कि परिवर्तन की मांग करें। (इस पर हंसना नहीं है।)

2. युवाओं पर44 लाठीचार्ज से इतर अखिलेश की कोई राजनैतिक उपलब्धि मिले तो जरूर बताइएगा।

News credit – गौरवश्याम पांडेय