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चार धामों में बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास उड़ा देगा आपके होश…

चार धामों में से एक बद्रीनाथ भी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। हर साल यहाँ बड़ी सख्यां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुचते है। बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के अलकनंदा नदी के किनारे स्थित भगवान विष्णु का एक धार्मिक स्थान है। जो कि समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास

बद्रीनाथ मंदिर के बारे में अनेक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु यहा पर कठोर तपस्या कर रहे थे। गहन ध्यान के दौरान भगवान को ख़राब मौसम की जानकारी नही थी। उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी ने बद्री के पेड़ का आकार ग्रहण कर लिया और खराब मौसम से उन्हें बचाने के लिए उन पर फैल गयी। भगवान विष्णु उसकी भक्ति से खुश होकर उसका  स्थान का नाम बदल कर बद्रिकश्रम रख दिया गया।

बद्रीनाथ मंदिर 3 भागो में विभाजित किया गया है. इस गर्भ गृह में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति इस जगह के अंदरूनी हिस्से में बैठी हुई है और जहाँ  सोने की चादर से  छिपी हुई छत है। दूसरे भाग को दर्शन मंडप के नाम से जाना जाता है जिसमे पूजा का कार्य किया जाता है। तीसरे भाग को सभा मंडप कहा जाता है। जो एक बाहरी हॉल है, जहां भक्त भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं। भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिए  सुबह 6:30 बजे मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है

वैदिक भजनों के साथ और  घंटियों की आवाज गूजने के कारण शांत मौहाल बना रहता है। मंदिर के पास बने तपेता कुंड में डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालु तीर्थयात्री पूजा समारोह में शामिल हो सकते हैं।  मंदिर में सबसे पहले महाआरती, अभिषेक, गीतापाठ और भागवत मार्ग, और  शाम पूजा को गीता गोविंद और आरती की जाती हैं।

बद्रीनाथ के मंदिर में बनी बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु की काली पत्थर की प्रतिमा  3.3 फुट लम्बी है। कहा जाता है की इस मूर्ति को विष्णु के स्वयं-प्रकट मूर्तियों में से माना जाता है। भगवान् बद्रीनाथ की यात्रा हर साल अप्रैल में शुरू होती है।