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जानिये आखिर आज के दिन ही क्यों मनाई जाती है गंगा दशहरा, ये है कथा

आज गंगा दशहरा है. जी हाँ, कहते हैं ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग में हबने वाली गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इस कारण से इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है. 

पको बता दें कि इस वर्ष गंगा दशहरा 12 जून दिन बुधवार को मनाया जा रहा है यानी आज और गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने की घटना मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या नगरी से जुड़ी है. जी हाँ, आज हम आपको बताते हैं गंगा अवतरण की कथा.

गंगा अवतरण की कथा 

सूर्यवंशी श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था. उनके पूर्वजों में एक चक्रवर्ती सम्राट थे महाराजा सगर. उनकी दो रानियों में से केशनी से एक पुत्र असमंजस था तो दूसरी रानी सुमति से 60 हजार पुत्र थे. असमंजस का पुत्र अंशुमान था. महाराजा सगर के सभी पुत्र दुष्ट थे, उनसे दुखी होकर राजा सगर ने असमंजस को राज्य से निकाल दिया. उनका पौत्र अंशुमान दयालु, धार्मिक, उदार और दूसरों का सम्मान करने वाला था. 

राजा सगर ने अंशुमान को ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया. ऐसे भस्म हो गए राजा सगर के 60 हजार पुत्र – इस बीच राजा सगर ने अपने राज्य में अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया, जिसके तहत उन्होंने अपने यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, जिसे देवताओं के राजा इंद्र ने चुराकर पाताल में कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया. 

इधर राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े की खोज कर रहे थे, लाख प्रयास के बाद भी उन्हें यज्ञ का घोड़ा नहीं मिला. पृथ्वी पर घोड़ा न मिलने की दशा में उन लोगों ने एक जगह से पृथ्वी को खोदना शुरू किया और पाताल लोक पहुंच गए. घोड़े की खोज में वे सभी कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था.

घोड़े को मुनि के आश्रम में बंधा देखकर राजा सगर के 60 हजार पुत्र गुस्से और घमंड में आकर कपिल मुनि पर प्रहार के लिए दौड़ पड़े. तभी कपिल मुनि ने अपनी आंखें खोलीं और उनके तेज से राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए.