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लेखकों व सरकार के बीच टकराव हर दौर में रहा है : नासिरा शर्मा

हिंदी की प्रख्यात लेखिका और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नासिरा शर्मा का मानना है कि 1947 में आजादी के बाद से लेकर अभी तक सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं।img_20170120091345

उनकी लेखनी का प्रमुख उद्देश्य हिंदू और मुसलमानों के बीच भेदभाव को कम करना है। वह मानती हैं कि लेखकों और सरकार के बीच टकराहट हमेशा से रही है। यह टकराहट किसी विशेष पार्टी या सरकार के साथ नहीं है। 
नासिरा ने एक साक्षात्कार में कहा, “पहले हम लोग एक सूत्र में थे, लेकिन अब दो फाड़ हो चुके हैं। मैंने अपनी लेखनी के जरिए इसी मुद्दे को उठाया है। सच यह है कि आतकंवादियों को लेकर इस्लाम का नकारात्मक रूप दिखाया जाता है। मेरी सोच यह है कि जब कर्बला की जंग सामने लाएंगे, तो जो उसके मूल्य हैं, उस पर ज्यादा चर्चा होगी। तब शायद लोगों को शांति मिले।”
उन्होंने कहा, “लेखक यह सोचकर नहीं लिखता कि वह कहां का रहने वाला है या उसका धर्म क्या है। वह इसकी बजाय उत्पीड़न को बाहर लाने की कोशिश करता है। मुझे लगा कि हिंदू और मुसलमान का एक बड़ा तबका पीड़ा से गुजर रहा है। उसको हटाने की कोशिश मुझे कलम के जरिए करनी चाहिए।”
नासिरा (68) कहती हैं, “आज के दौर में महिलाओं को समर्थन मिल रहा है, जिससे हमने खुद को बदला है और अपना हक पहचाना है। मेरे उपन्यास में भी इसी तरह का ताना-बाना बुना हुआ है। इसे पढ़ना बहुत मुश्किल है, लेकिन जो लोग इसे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें इसे पढ़कर बहुत मजा आता है।” 
वह कहती हैं, “हमारे यहां फसाद तो 1947 से होते आ रहे हैं। बात साफ है, जिन्हें पाकिस्तान जाना था वे चले गए, उसके बाद फसाद होने का कोई मतलब नहीं बनता, लेकिन फिर भी हो रहे हैं। मोदी सरकार से लोग इसलिए थोड़ा घबराए हुए हैं, क्योंकि उनके दिमाग में गुजरात दंगे की घटनाएं हैं। कुछ सरकारें अधिक मुखर नहीं थीं, लेकिन मोदी सरकार काफी मुखर है और हर बात बेबाकी से कहती है तो इससे लोगों में दहशत है। वे सामने न कहें, लेकिन अंदर से घबराए हुए हैं।” 
देश में हो रहे दंगों पर लेखिका कहती हैं, “दंगे तो हर वक्त होते हैं। अगर तुम तारीख देखोगी तो यह इसी सरकार में नहीं हुए हैं। हर सरकार के दौर में ऐसा होता है। कहीं छिपके होता है तो कहीं खुलके होता है। सरकार और लेखकों के बीच हमेशा टकराव रहा है, जो पूरी दुनिया में है। लेखक अपनी सरकार से कुछ सवाल-जवाब चाहते हैं। यह उनके लेखन में भी सामने आया है। लेखकों में भी दो धड़ें होते हैं जो एक ही मुद्दे पर अलग-अलग राय रखते हैं और यही हमारे हिंदुस्तान की बहुत बड़ी खूबी है।”
नासिरा अंग्रेजी प्रकाशनों की तुलना में हिंदी को महत्व नहीं मिलने की बात पर काफी बेबाक राय रखती हैं। वह कहती हैं, “अंग्रेजी का बाजार बहुत बड़ा है, लेकिन हिदी का बाजर हिंदी भाषी क्षेत्रों में ही है। हिंदी वाले खुद ही पक्षपाती हो जाते हैं। प्रकाशक पुस्तक की कवर तक का ध्यान नहीं करते। यह एकतरफा नहीं, चौतरफा समस्या है। इसे लेकर प्रकाशकों की पीठ पीछे बुराई करने की जरूरत नहीं है, बल्कि सभी को एक साथ बैठकर बात करनी चाहिए।”
नासिरा हिंदी पाठकों की संख्या कम होने के सवाल से भी सहमत नहीं हैं। वह कहती हैं, “हिंदी के पाठक कम नहीं हो रहे हैं। मेरी किताबें बिकती हैं, मेरी पुरानी किताबें रीप्रिंट भी होती हैं। समस्या यह है कि नए लेखक बहुत बड़ी तादाद में उभरकर आए हैं।”
अपनी पुस्तक के अनुवाद के विषय में वह कहती हैं, “अनुवाद बहुत बड़ा इंसानी पुल है जो एक इंसान को दूसरे इंसान तक पहुंचाता है और बताता है कि यहां क्या हो रहा है। इसका विषय बहुत जटिल ही नहीं है, बल्कि अनुवादकों को अनुवाद करने से पहले संस्कृति से जुड़ना भी पड़ेगा। इस किताब को वही अनुवादित कर सकता है जो भाषा से भलीभांति परिचित हो, क्योंकि इसमें उर्दू के शेयर और मर्सिया वगैरह हैं जिनका अनुवाद करने में बहुत दिक्कत आएगी।”
वह क्षेत्रीय लेखकों को बढ़ावा नहीं मिलने के सवाल पर असहमति जताते हुए कहती हैं कि साहित्य अकादमी पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसा नहीं है कि क्षेत्रीय लेखकों को बढ़ावा नहीं मिलता। इन्हें काफी प्रमोट किया जाता है। उनकी कृतियां हिंदी में काफी अनुवादित होती हैं बल्कि हिंदी के लेखन को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। हिंदी के लेखकों को बहुत कम लोग जानते हैं, उनका कितना अनुवाद होता है यह भी सोचने की बात है। 
वह लेखकों द्वारा पुरस्कार लौटाए जाने की घटना पर कहती हैं, “अगर सरकार से नाराजगी है, तो चाहे वह लेखक हो या आम आदमी, उसे संवाद से मसला हल करना चाहिए। सरकार को भी यह देखना होगा कि जनता क्या चाहती है? जनता की जरूरतें क्या हैं? सरकार लेखकों या बुद्धिजीवियों को साथ लेकर नहीं चलेगी तो शिकायतें तो होंगी ही।” 
नासिरा ने स्पष्ट किया, “ऐसा नहीं है कि लोग भाजपा से ही नाराज हैं, कांग्रेस से भी नाराज थे। लेखक एक विचारधारा को लेकर नहीं चलते हैं। हम पूरी दुनिया को साथ लेकर चलते हैं।”
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 1948 में जन्मीं नासिरा शर्मा उपन्यास ‘पारिजात’ के लिए वर्ष 2016 के साहित्य अकादमी पुस्कार के लिए चुनी गई हैं। उनकी 10 कहानी संकलन, 6 उपन्यास और 3 निबंध संग्रह प्रकशित हैं। वह हिंदी के अलावा फारसी, अंग्रेजी, उर्दू और पोश्तो भाषाओं पर भी अच्छी पकड़ रखती हैं। 

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