अक्सर ही जब हम सोचने बैठते हैं तो हमारे मन में तरह-तरह के सवाल आते हैं. ऐसे में अगर बात करें देवताओं के बारे में हम यह जरूर सोचते हैं कि आखिर देवता कहाँ से आए..?
हम सभी के मन में यह सवाल जरूर आता है कि आखिर भगवान आए कहाँ से. ऐसे में अगर आप भी जानना चाहते हैं तो आज हम आपको बताने जा रहे है कि भगवान शिव कहाँ से आए, उनकी उत्पत्ति कहाँ से हुई..? आइए बताते हैं.
श्रीमद भागवत के अनुसार भगवन शिव के जन्म कि कथा
जब एक बार ब्रह्मा और विष्णु को अहंकार हुआ की वे सबसे श्रेष्ठ है तो भगवान शिव ने एक विशाल ज्योति के रूप में उनके सामने प्रकट हुए , वह ज्योति अत्यंत विशाल थी जिसका कोई छोर नहीं था. भगवान शिव ने ज्योति रूप में उनके सामने एक शर्त रखी की जो भी मेरे छोर को पहले पा जायेगा वह श्रेष्ठ होगा.शिव की इस बात को सुन भगवान विष्णु और ब्रह्मा दोनों उस ज्योति के छोर को ढूढने चल पड़े. परन्तु काफी चलने के बाद भगवान विष्णु समझ गए की यह विशाल ज्योति साधारण नहीं है बल्कि भगवान की माया है.
अतः उन्होंने अपनी हर मान ली परन्तु ब्रह्मा अहंकार में डुबे उस ज्योति के पास आये और बोले की मेने ज्योति का छोर पा लिया है. तब भगवान शिव प्रकट हुए तथा उन्होंने ब्रह्मा जी का झूठ बताते हुए उनका अहंकार चूर किया.
विष्णु पुराण के अनुसार
भगवान शिव का जन्म विष्णु के माथे के तेज से हुआ था तथा ब्रह्म देव भगवान विष्णु के नाभि से प्रकट हुए थे. ऐसा माना जाता है की भगवान शिव का जन्म विष्णु भगवान के माथे होने की कारण शिव सदैव योग मुद्रा में रहते है. भगवान शिव के जन्म की अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव के बाल रूप का वर्णन किया गया है, यह कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है. यह कहानी बेहद मनभावन है. इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी.
उन्होंने इसके लिए तपस्या की. तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए. ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है.
तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’. शिव तब भी चुप नहीं हुए. इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए. इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए. शिव पुराण के अनुसार ये नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे.