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राजनीति के ‘अटल’ एम्स में भर्ती, देखें उनकी 20 दुर्लभ तस्वीरें

नई दिल्ली: भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती है। उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है। 93 साल के वाजपेयी लंबे वक्त से बीमार हैं और 2009 से व्हीलचेयर पर हैं। वाजपेयी को सक्रिय राजनीति से संन्यास लिये 13 साल बीच चुका है। लेकिन जब भी भाजपा की उपलब्धि की बात आती है, तो वाजपेयी ही याद आते हैं। भारतीय राजनीति में आज भी वाजपेयी की कमी खलती है।

संसद में जब विपक्षी दल हंगामा करते हैं, कार्यवाही बाधित होता है, संसद नहीं चलती, गंभीर पहल नहीं होती, विषय पर बेहतरीन बहस नहीं होती तो वाजपेयी को याद किया जाता है और कहा जाता है कि वाजपेयी की सरकार होती, तो रास्ता निकल गया होता। अटल एक कुशल राजनेता के साथ ही कवि भी हैं। वह अपने लक्ष्यों को लेकर किस कदर दृढ़ निश्चयी और कभी हार न मानने वाले व्यक्तियों में से थे यह उनकी इस कविता से समझा जा सकता है।

टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?

अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा

काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं।

अटल की इस कविता ने राजनीतिज्ञों से लेकर आम आदमी को राह दिखायी है। यह वह कविता है, जिसके माध्यम से आज भी राजनेता अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं। वाजपेयी ने 90 के दशक में बीजेपी को स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई। यह वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही कमाल था कि बीजेपी के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए, जबकि उन दिनों बाबरी मस्जिद विध्वंस के और दक्षिणपंथी झुकाव के कारण बीजेपी को राजनीतिक अछूत माना जाता था।

25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ। अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी हैं। वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे। साल 1950 के दशक की शुरुआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमाईं और बीजेपी की उदारवादी आवाज बनकर उभरे।

राजनीति में वाजपेयी की शुरुआत 1942-45 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई थी। उन्होंने वामपंथी के रूप में शुरुआत की, लेकिन हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित होकर उन्होंने साम्यवाद से किनारा कर लिया।

हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जनसंघ का साथ पकड़ने से पहले वाजपेयी कुछ समय तक साम्यवाद के संपर्क में भी आए। बाद में दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ाव के बाद जनसंघ और इसके बाद बीजेपी के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों की शुरुआत हुई।

 

ब्रिटिश औपनिवेशक शासन का विरोध करने के लिए किशोरावस्था में वाजपेयी कुछ समय के लिए जेल गए, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कोई मुख्य भूमिका अदा नहीं की।

 

अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। इसके बाद 1957 में वह सांसद बनें।

अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे। वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहें। इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। वहीं वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे थे।

अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह बीजेपी के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।

कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी के देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर बीजेपी का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। हालांकि, उनके आलोचक उन्हें आरएसएस का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं, जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदूवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती है।

साल 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने आलोचना की थी, लेकिन वह बस पर सवार होकर लाहौर पहुंचे। वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ कराई और इसके हुए संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।

बीजेपी के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई। आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुका-छिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई।

अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गई। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को चौंका दिया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था। इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था। हालांकि वह असफल रहा था। लेकिन इस बार भारत न्यूकलियर पावर देश बना। दुनिया के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल सरकार ने इस परीक्षण को अंजाम दिया, जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी जिसके बावजूद अटल सरकार ने देश की जीडीपी में बढ़ोतरी की। पोखरण का परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना वाजपेयी के लिए इस बात की अग्निपरीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं। उस समय वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे।

वाजपेयी ने अनेक बीजेपी नेताओं के रुख के विपरीत स्पष्ट शब्दों में इसकी निंदा की थी। उनकी निजी निष्ठा पर कभी गंभीर सवाल नहीं उठाये गए। वाजपेयी एक जाने माने कवि भी हैं और उनके पार्टी सहयोगी अक्सर उनकी रचनाओं को उद्धृत करते हैं।