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70 साल बाद भी पड़ोसी जनपदों तक नहीं पहुंची परिवहन सेवा

देव श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी।

      बहराइच, पीलीभीत व हरदोई तक नहीं जाती रोडवेज बस

इसे खीरी का दुर्भाग्य कहे या जनप्रतिनिधियों की उदासीनता कि परिवाहन विभाग 70 साल बाद भी लखीमपुर डिपो में तब्दील करने में नाकाम रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं हाल इतने खराब है कि आज भी पड़ोंसी जनपद बहराइच, पीलीभीत व हरदोई के लिए परिवाहन की एक भी सीधी सेवा नहीं है। ऐसे में खीरी की आवाम विकास से कोसो पीछे हो गई है।

अनुबंधित डिपो और बसों से चल रहा काम 

विकास के पथ पर दौड़ता उत्तर प्रदेश परिवाहन विभाग की कार्यशैली के चलते दौड़़ में पिछड़ता जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं परिवाहन विभाग का हाल ऐसा है कि यहां तैनात होने वाले एआरएम नई योजना को बनाना तो दूर पुराने लागू को लागू तक नहीं कर पा रहे है। कुछ ऐसा ही हाल एआरएम आरके श्रीवास्तव का भी है। आरके श्रीवास्तव के पास लखीमपुर का अतिरिक्त चार्ज है। पूर्व एआरएम वीके गोस्वमी के रिटायरमेंट के बाद गोला के एआरएम राकेश श्रीवास्तव को लखीमपुर का भी चार्ज मिल गया। एक माह से अतिरिक्त चार्ज पर लखीमपुर अनुबंधित डिपो को संभाले हुए है लेकिन इनकी एक मा की कार्यशैली ही विवादित है। अलबत्ता साहब किसी की सुनते ही नहीं है। सत्ता परिवर्तन के बाद पड़ोसी जनपद बहराइच, पीलीभीत व हरदोई के लिए बस सेवा शुरू करने की मांग इनके पास कई बार पहुंची परंतु साहब कुर्सी पर बैठने के बाद मानो लखीमपुर की जनता से कोई इस्तफाक भी नहीं रखते। पड़ोसी जनपद के लिए बस सेवा शुरू करना तो दूर महोदय ने अभी तक इसके लिए अपने उच्चाधिकारियों से कोई भी बात लिखित रूप से नहीं की है।

 

आपको बता दें कि…

  • बहराइच, पीलीभीत व हरदोई तीनों ऐसे जनपद है। जहां से खीरी की आवाम का सीधा रिश्ता है। पड़ोसी जनपद होने के कारण व्यापार सहित शादी, ब्याह जैसे सामाजिक रीतिरिवाज भी इन जनपदों से जुड़े हुए है।
  • ऐसे में लोगों को आए रोज इन जनपदों में आना-जाना पड़ता है। परंतु बस सेवा न होने के कारण लोग प्राइवेट टैक्सियों व डग्गामार वाहन साधनों का सहारा लेने पर मजबूर है। लोगों की इस समस्या से प्रभारी एआरएम कोई इस्ताफक नहीं रखते है।
  • दर्जनों बार बस चलाने की मांग के बावजूद एआरएम साहब इस सम्बंध में किसी का कोई जानकारी ही नहीं देते। सवाल पूछे जाने पर वे उस व्यक्ति से उसकी पहचान व कद पर सवाल जवाब उठाने लगते है।
  • जहां तक उनके इस कृत्य से मीडिया भी अछूता नहीं रहा है। पत्रकारों द्वारा मामले पर सवाल पूछे जाने पर प्रभारी एआरएम ने सीधा जवाब नहीं दिया और उनसे अधिकृत पत्रकार होने की बात कहकर सवालों का जवाब देने से कन्नी काट गए।
  • जिस अधिकारी को उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले में परिवाहन की कमान दी है, उसकी यह कार्यशैली लोगों में आक्रोष का सबब बन गई है। ऐसे में विभाग की चुप्पी भी सरकार के मंसूबों पर पानी फेर रही है।

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