यहां ग्लेशियर के कई छोटे हिस्से तेजी से बर्फ विहीन होने से और जमीन का वानस्पतिक आवरण नष्ट हो रहा है। जानकार इस स्थिति को ग्लोबलवार्मिग के साथ ही वीभत्स ढंग से मानवीय हस्तक्षेप को भी एक कारण मानते है। रविवार को दरके पहाड़ी व ग्लेशियर के खतरे को देखकर लोग एक किमी दूर से ही गंगा के उद्गम को देख पा रहे है।
गंगोत्री हिमालय में हो रहे पर्यावरणीय बदलाव को 60 वर्षो तक अपने कैमरे में कैद करने वाले स्वामी सुंदरानंद कहते है कि गोमुख की हर साल शक्ल बदल रही है। पीछे रुद्रगैरा, केदार, बामक, संतोपंथ, सुरालय, सीता, कालिंदी, सखा, नीलाबंर आदि गंगोत्री ग्लेशियर के बड़े हिस्से बर्फ विहीन हो चुके हैं। पर्दे में बहने वाले गोमुख वाले हिस्से में पानी पीछे की ओर कई जगह बे पर्दा होकर बहने लगा है।
वर्षो से भोजवासा क्षेत्र में वनीकरण कार्य कर रही पर्यावरण विद डा. हर्षवंती बिष्ट का कहना है कि वे इस क्षेत्र के लुप्त हो रहे वानस्पति आवरण को बचाने के लिए भोज पत्र भांगिल पहाड़ी पीपल तथा ठेलू आदि स्थानीय वनस्पतियों का वनीकरण कर रही है। किंतु विभाग और पर्यावरण के लिए चलाई जा रही किसी योजना से उन्हें कभी कोई सहयोग नहीं मिला है।