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मैं हूँ ‘बेकल’ मगर सुकून से हूँ… पद्मश्री बेकल उत्साही अब स्मृतियां ही शेष

राज्यसभा के पूर्व सांसद और जाने-माने कव‌ि पद्मश्री बेकल उत्साही का शनिवार सुबह द‌िल्ली के राम मनोहर लोह‌िया अस्पताल में निधन हो गया। बलरामपुर के रहने वाले बेकल पद्मश्री और यशभारती जैसे सम्मानों से सम्मानित किए जा चुके थे।
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शुक्रवार को वह दिल्ली स्थित आवास के बाथरूम में गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। ब्रेन हैमरेज के बाद उन्हें दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती करवाया गया। हालत गंभीर होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। शन‌िवार सुबह उनकी मौत हो गई।

बेकल उत्साही एक परिचय:

  • बेकल उत्साही  का जन्म 1928 को बलरामपुर में हुआ था.
  • इनका असली नाम मो॰ शफ़ी खाँ लोदी था.
  • 1945 में एक बार वह देवा शरीफ मजार पर गए वहां के हाफिज ने उन्हें देखकर एक कहावत बोली, बेदम गया बेकल आया.उसी दिन से मोहम्मद शफी खान ने अपना नाम बदलकर बेकल रख लिया.
  • जिगर मुरादाबादी के शिष्य थे बेकल उत्साही.
  • 1952 पंडित जवाहर लाल नेहरू एक कार्यक्रम में शामिल होने गोंडा पहुंचे.वहां बेकल ने ‌‘किसान भारत का’ कविता का पाठ करके नेहरू का स्वागत किया.
  • उनकी कविता से प्रभावित होकर नेहरू ने कहा, ये हमारा उत्साही शायर है। इसके बाद से ही उनका नाम बेकल उत्साही हो गया.
  • बेकल उत्साहीकांग्रेस से जुड़े थे और इंदिरा गाँधी के करीबी माने जाते थे और राष्ट्रीय इंटीग्रेशन कौंसिल के सदस्य भी थे.
  • बेकल उत्साही को 1986 में कांग्रेस ने अपने कोटे से राज्य सभा भेजा था.
  • 1976 में ही बेकल साहब को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.
  • उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार से यश भारती सम्मान भी प्राप्त हुआ.
  • बेकल ने हिंदी, उर्दू में गजलें, नज्में, दोहे और अवधी में गीत भी लिखे और करीब दो दर्जन किताबें भी लिखीं.

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