मकान मालिक ने आतंकवादी को किरायेदार रखने से पहले उसका सत्यापन कराने की जरूरत नहीं समझी तो इलाकाई लोग भी नहीं भांप सके कि उनके पड़ोस में आतंकवादी रह रहा है। वहीं, पुलिस की भी लापरवाही रही, जो इलाके में किराये पर रहने वाले लोगों पर नजर नहीं रख सकी।
एटीएस के अधिकारियों ने बताया कि सैफुल्ला तीन महीने से बादशाह के मकान में किराये पर रह रहा था। मकान के एक हिस्से में वह रहता था, जबकि दूसरे हिस्से में मौलाना कय्यूम परिवार के साथ रहते थे।
मौलाना कय्यूम को भी सैफुल्ला के आतंकवादी होने की भनक नहीं थी। सैफुल्ला न सिर्फ लखनऊ में अपना ठिकाना बनाए रहा, बल्कि देश में तबाही की साजिश रचता रहा। उसके पास संदिग्ध लोग आते-जाते रहे और पुलिस, मकान मालिक व इलाकाई लोग सोते रहे। एटीएस को जब आतंकवादी का पता चला, तब पुलिस ने कार्रवाई शुरू की।
एसएसपी मंजिल सैनी कहती हैं कि मकान मालिक ने सैफुल्ला को किराएदार रखने से पहले उसका सत्यापन नहीं कराया। इसलिए मकान मालिक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, इस मामले में स्थानीय पुलिस की भूमिका की भी जांच होगी। अगर पुलिसकर्मी दोषी पाए गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
किरायेदार ने जिस जनपद में अपना मूल आवास बताया होता है, वहां संबंधित थाना की पुलिस से संपर्क कर उसका सत्यापन करती है। जिन किरायेदारों का सत्यापन होता है, उनका पूरा ब्यौरा थाना में मौजूद रहता है। हालांकि, नगर निगम के टैक्स से बचने के लिए बहुत ही कम मकान मालिक अपने किरायेदारों का सत्यापन कराते हैं। पुलिस भी मकान मालिक की लापरवाही बताते हुए पल्ला झाड़ लेती है।
पुलिस नहीं लेती किरायेदारों के सत्यापन में रुचि
थानों की पुलिस शायद ही कभी किरायेदारों के सत्यापन के काम में रुचि लेती हो। अमूमन सत्यापन के लिए थाना आने वाले लोगों को बहाने बनाकर टरका दिया जाता है। कोई वारदात होने के बाद अधिकारियों को किरायेदारों के सत्यापन की व्यवस्था याद आती है। नए सिरे से आदेश जारी किए जाते हैं, लेकिन अंतत: नतीजा वही ढाक के तीन पात होता है। कुछ दिन बाद ही आलम यह हो जाता है कि सत्यापन के लिए आने वाले लोगों की सुनवाई ही नहीं होती। कई बार सत्यापन के नाम पर लोगों को परेशान भी किया जाता है।
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