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किसको मानें दोषी? सरकार को या स्वयं को

स्कूल में एक खास प्रेरणा शिविर

बात कुछ ही दिनों पहले की है हर बार की  तरह इस बार भी हमारे स्कूल में दाखिले के लिए घर घर गावं-गावं जाकर लोगों से अपने बच्चों के स्कूल में दाखिले के लिए कहा गया  इस बार हम भी साथ ही गए थे पर मुझे ये जानकर बहुत ताज्जुब हुआ की आज भी हमारे गावं में लोग पढाई लिखाई को खेती बड़ी से कम महत्ता देते है दुःख ये बड़े चिंता का विषय है कि जहाँ एक तरफ शहरों में लोग बच्चों को उनके जन्म के साथ ही उनकी पढाई लिखाई के बारे में सोचने लगते है वही गावं में उन्ही बच्चों के स्कूल में दाखिले के लिए उनके अभिभावकों को बार-बार कहना पड़ता है यही नहीं अगर स्कूल में दाखिला करा भी दिया तो अप्रैल मई में गेहूं काटने और धान लगाने के लिए छुट्टी चाहिए कही महुआ बीनने जाना है तो कही आम की बाग़ और तो और बच्चों को स्कूल भी इसी लिए जाना होता है की स्कूल में खाना और कपड़े मिलते है।

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क्या आप और हम जैसे FB और व्हाट्सउप चलने वाले सोच सकते है की अभी हमारे देश की आधी आबादी को पढने की लिए दबाव डालना पड़ता है आखिर हम विकसित कियू नहीं है ? क्या आप जानते है ? शायद कभी भी उस तरह से सोचने का मौका ही नहीं मिला । कही जागरूकता की कमी है तो कही सांसदों की वहीँ एक आठवी की छात्रा से बात की तो उसने बताया वो पढाई बंद कर चुकी थी उससे पढाई बंद करने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरी शादी होने वाली है तो पढाई कर के क्या करना पढ़ के ।

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 जहाँ एक तरफ सुबह होते ही तेज़ रफ़्तार भरी जिन्दगी है वहीँ दूसरी तरफ एक ऐसी समझ जिसका कोई लक्ष्य ही नहीं जीवन का।  शायद उसकी इस सोच के उत्तरदाई हम है कियूंकी जो गावं में समझदार लोग है या समर्थ लोग है वो खुद गावं से बहार रहने लगेंगे अपने पढाई लिखाई के लिए के लिए लेकिन अपने गावं के प्राइमरी स्कूल का ध्यान ही नहीं है । गावं में नौटंकी सब एक साथ बैठके देखतें है लेकिन स्कूल की पेरेंट्स टीचर मीटिंग में जाने के लिए समय नहीं है यही कारण है भारत विकसित होने से कई गुना पीछे है.

FB_IMG_1492624435195भारत  में आज तक की जितनी भी सरकारें या माननीय लोग हमारे बीच आयें इन्होने इस असामनता को दूर करने के क्या कदम उठाये इसका इसका अता पता ही नहीं लिखने को तो बहुत कुछ है पर अंत में बस इतना ही कि जब नीव की तह ही कमजोर है तो माकन गिर ही जायेगा हम आप भी अगर चाहे तो अपने देश के लिए बहुत कुछ कर सकते है बस जरूरत है अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर सोचने की है।

साभार:अनुराधा मिश्रा (फेसबुक वाल से)

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