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साख पर आंच

images-12राजधानी पटना के पॉश इलाके में वर्षों पुराने प्रतिष्ठित मिशनरी स्कूल में मासूम बच्ची से परिसर के कमरे में दो शिक्षिकाओं द्वारा अप्राकृतिक यौनाचार के वक्त हैवानियत की हदें पार करना माफी योग्य नहीं है। मेडिकल जांच में यह पुष्टि हो चुकी है कि बच्ची के साथ दुराचार किया गया, नाजुक अंगों को इस कदर चोट पहुंचाई गई कि वह ठीक से चल-फिर नहीं सकती। कुकृत्य उसके साथ कई बार किया गया। इस घटना ने मिशनरी स्कूलों की साख को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इन स्कूलों के बारे में अभी तक आम धारणा यह रही है कि अभिभावकों संग इनका व्यवहार भले सख्त हो, परंतु बच्चों को यहां अनुशासन सिखाया जाता है, पढ़ाई के प्रति यहां के शिक्षक सरकारी स्कूलों से कहीं ज्यादा संजीदा रहते हैं। एक और धारणा यह थी इन स्कूलों में अभिभावकों का आर्थिक शोषण नहीं होता है, हालांकि अब यह टूट चुकी है। इन स्कूलों में अब गरीबों के बच्चों के लिए जगह नहीं रहती , फीस हर साल बढ़ाई जाती है, एडमिशन के लिए डोनेशन की बातें भी खूब सामने आती हैं।

केंद्र सरकार के आरटीई (राइट टू एजुकेशन) कानून जिसके तहत पचीस फीसद सीटें गरीब तबके के लिए आरक्षित होनी चाहिए, शायद ही किसी मिशनरी स्कूल में इसका शत-प्रतिशत पालन हो रहा होगा। बिहार में एक समय अच्छी पढ़ाई के लिए सिर्फ मिशनरी स्कूल पर बड़ी आबादी निर्भर थी। इन स्कूलों में एडमिशन के लिए सोर्स-सिफारिश की जाती थी, लेकिन प्रबंधन ध्यान नहीं देता था, सिर्फ प्रतिभा को इंट्री दी जाती थी। बच्चों काटेस्ट औैर अभिभावकों का साक्षात्कार के बाद ही दाखिला दिया जाता था। आज इन स्कूलों में एडमिशन कमाई का जरिया बन चुका है। दिसंबर में ही महंगी दरों पर एडमिशन फॉर्म की बिक्री कर अभिभावकों का शोषण शुरू हो जाता है। यह दाखिला मिलने के बाद मनचाही जगहों से कॉपी-किताबें, पोशाक आदि महंगे दाम पर खरीदने के बाद भी खत्म नहीं होता। ट्रांसपोर्ट के नाम पर मनचाही वसूली अभिभावकों का अलग सिरदर्द है। 

अमूमन मिशनरी स्कूलों के खिलाफ शिकायत को कोई अभिभावक आगे नहीं आता, परंतु किसी मामले में पानी गले तक पहुंचने पर बात बढ़ जाती है। पटना के जिस मिशनरी स्कूल में मासूम बच्ची संग शिक्षिकाओं की गलत हरकत की शिकायत पुलिस में की गई है, उसने आइएएस, डॉक्टर, इंजीनियर समेत देश-प्रदेश को कई प्रतिभाएं दी हैं। ऐसे में इस स्कूल में छोटी बच्ची के साथ टीचरों की घिनौनी हरकत इसकी साख और प्रबंध तंत्र के लिए बड़ी चुनौती है। यौन शोषण के इस मामले में पॉक्सो एक्ट में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद आरोपी शिक्षिकाओं की गिरफ्तारी की गई है। पुलिस ने दोनों शिक्षिकाओं को हिरासत में लेकर पूछताछ के बाद जेल तो भेज दिया है, पर घटना का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है। कायदे से स्कूल प्रबंधन को आगे आकर पुलिस को सहयोग करना चाहिए जिससे भविष्य में स्कूल की प्रतिष्ठा बची रहे। शिक्षिकाओं के निष्कासन की कार्रवाई कर यह संदेश देना चाहिए कि स्कूल में अनुशासन सर्वोपरि है। हालांकि प्रबंधन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। यह स्थिति तब है जब स्कूल के वाइस प्रिंसिपल और प्रिंसिपल तक संदेह के दायरे में आ चुके हैं। पुलिस उनसे भी पूछताछ कर रही है। बिहार बोर्ड में मेरिट घोटाले समेत कई चर्चित मामलों का पर्दाफाश करने में जिस तरह राजधानी पुलिस ने तत्परता दिखाई है, उससे उम्मीद है कि इस प्रकरण में भी वह नतीजे देगी।

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