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सपा-बसपा गठबंधन पर दलितों व पिछड़ों की नजर, चुनावी साल में और गर्माएगा मुद्दा

सपा-बसपा गठबंधन पर दूसरे दलों के दलित व पिछड़े नेताओं की भी नजर लगी हुई है। भाजपा सांसद सावित्री बाई फूले और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं के बोल यूं ही नहीं बदले हैं। वंचितों व गरीबों के मुद्दों को लेकर उनमें बेचैनी है। आधार बचाए रखने के लिए वे दलितों, पिछड़ों की बात उठा रहे हैं। चुनावी साल में दलित-पिछड़ा राजनीति और गरमाने की उम्मीद है।

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव- 2019 नजदीक आ रहा है, गांव, गरीब, किसान, दलितों और  पिछड़ों की चर्चा बढ़ रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अति पिछड़ों, अति दलितों को ओबीसी आरक्षण में अलग से कोटा देने का वादा किया है तो एससी-एसटी एक्ट को निष्प्रभावी बनाने के विरोध में एनडीए के दलित सांसद पीएम मोदी से मिल चुके हैं।

प्रदेश में ताजा मामला डॉ. आंबेडकर का नया नाम डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर करने का है। हालांकि, किसी दल ने इसका विरोध नहीं किया है लेकिन भाजपा विपक्ष पर निशाना साध रही है। कह रही है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने डॉ. आंबेडकर के सही नाम का उल्लेख नहीं किया तो उनके विचारों पर क्या अमल करेंगे?

अपने ही उठा रहे मंशा पर सवाल

आंबेडकर के सहारे दलितों, पिछड़ों में जनाधार बढ़ाने में जुटी भाजपा के कुछ नेता उसकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। बहराइच की सांसद सावित्री बाई फूले आरक्षण पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही हैं तो प्रदेश सरकार के मंत्री ओम प्रकाश राजभर दलितों, पिछड़ों की सुनवाई न होने का आरोप लगा रहे हैं।

दरअसल, गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव के बाद सपा-बसपा गठबंधन ने राजनीति का एजेंडा बदल दिया है। दलित व पिछड़े सियासत का केंद्र बिंदु बन गए हैं। सीएम ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर इस वर्ग को अलग से आरक्षण दिया जाएगा।